गाड़ियों की हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट के नाम पर उत्तर प्रदेश में कुछ घोटालेबाज अफसर जनता से 15 सौ करोड़ लूटने की तैयारी में थे। ऐन मौके पर हाईकोर्ट ने उनकी मंशा पर पानी फेर दिया। इस घोटाले की साजिश मायावती सरकार के दौरान शुरु हुई थी। हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच और घोटालेबाज अफसरों से जुर्माना वसूलने के आदेश दिए हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि माया के ये घोटालेबाज अफसर अब अखिलेश की कोर टीम में दिख रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कोर टीम में शामिल जीतेंद्र कुमार के खिलाफ परिवहन विभाग में 15 सौ करोड़ रुपए के नंबर प्लेट घोटाले का ताना बाना बुनने का आरोप है। इलाहबाद हाईकोर्ट इस घोटाले के सीबीआई जांच के आदेश चुका है।
जितेंद्र कुमार के साथ सीनियर आईएसएस अफसर माजिद अली भी इस घोटाले के आरोपी हैं। आरोप है कि दोनों अफसरों ने मिलकर इस घोटाले की साजिश रची। उस वक्त माजिद अली परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव थे जबकि जितेंद्र कुमार परिवहन कमिश्नर। फिलहाल अखिलेश सरकार ने माजिद को सहकारिता विभाग का प्रमुख सचिव बना दिया है तो जितेंद्र माध्यमिक शिक्षा विभाग के सचिव के तौर पर काम कर रहे हैं। तमाम आरोपों के बावजूद ये अखिलेश की कोर टीम में शामिल होने में कामयाब हुए। लेकिन मंगलवार को हाईकोर्ट के आदेश ने इन्हें बेनकाब कर दिया।
सीबीआई जांच के अलावा इलाहबाद हाईकोर्ट ने जीतेंद्र कुमार और सीनियर आएएस माजिद अली समेत परिवहन विभाग के अफसरों पर 25 लाख का जुर्माना भी लगाया है। एडवोकेट गौरव भाटिया ने बताया कि जो करार हुआ था उसे रद्द कर दिया गया है।
परिवहन विभाग में 15 सौ करोड़ के इस घोटाले का जाल मायावती सरकार में बुना गया। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हर राज्य को अपने यहां इस्तेमाल होने वाली गाड़ियों में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगवाना जरुरी हो गया। लेकिन इसमें भी घोटाले बाजों ने काली कमाई का पूरा इंतजाम कर लिया। मायावती सरकार के दौरान ठेके की प्रक्रिया शुरू की गयी और नंबर प्लेट लगाने का ठेका शिमनैट कंपनी को दिया गया। हर नंबर प्लेट की कीमत तय की गई 270 रूपए। हैरानी की बात ये है कि इसी कंपनी ने दूसरे राज्यों में 90 रूपये प्रति नंबर प्लेट की दर से ठेका लिया था। लेकिन यूपी ने उसे तिगुनी किमत पर खरीदने की तैयारी की।
घोटाले का ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा। यही खुलासा हुआ कि अधिकारियों ने शिमनैट कंपनी को ठेका देने के लिए सारे नियम कानून ताक पर रख दिए। अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने ठेका देने का पैमाना ऐसा रखा जिसकी वजह से कई कंपनियां दौड़ से बाहर हो गई। ठेका शिमनैट कंपनी को मिला। आरोप है कि डील पर कोई भी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर दस्तखत के लिए तैयार नहीं हुआ। इसी वजह से कुछ ही महिनों में चार ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बदले गए। पांचवें कमिश्नर जितेंद्र कुमार के दस्तखत से ये डील फाइनल हुई। वो भी चुनाव आचार संहिता लगने के एक दिन पहले। यही नहीं आरोप ये भी है कि लीगल विभाग ने दो बार शिपनैट कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दी। लेकिन वो रिपोर्ट भी बदल दी गई। सवाल ये कि क्या अखिलेश सरकार जल्द से जल्द इन अफसरों पर कार्रवाई करेगी?