फाइलों और नारों तक सीमित रह गया शिक्षा अधिकार अधिनियम

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फर्रुखाबादः केन्द्र सरकार की ओर से 1 अपै्रल 2010 से लागू बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम अभी भी उत्तर प्रदेश में फाइलों और नारों तक ही सीमित है। अधिनियम लागू होने के दो वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक प्रदेश सरकार ने औपचारिक रूप से इस कानून को अंगीकार ही नहीं किया है। सरकारी दफ्तरों में चाय बांटते व सड़कों के किनारे कूड़ा बीनते बच्चे अनिवार्य शिक्षा की हकीकत वयां कर रहे हैं। वहीं पब्लिक स्कूल के नाम पर मान्यता के नियमों की धज्जिया उंड़ा रहे निजी स्कूल मोटी फीस वसूलने में पीछे नहीं हैं।

विदित है कि केन्द्र सरकार ने विगत एक अपै्रल 2010 से भारत में शिक्षा को बच्चों का मौलिक अधिकार स्वीकार कर लिया है और इसके लिए इसी तिथि से बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू कर दिया है। इसे केन्द्र, राज्य सरकारों के बीच की खींचतान कहें या सुविधा की राजनीति। इस अधिनियम के लागू होने के दो वर्ष बाद भी अभी तक उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे औपचारिक रूप से आंगीकार नहीं किया है। मामला इस अधिकार को लागू करने में होने वाले व्यय की सहभागिता का हो या प्राइमरी स्कूलों में तैनात शिक्षकों की अर्हता का मुद्दा हो। कुल मिलाकर शिक्षा के अधिकार अधिनियम को आज तक पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है।

सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत आने वाले बजट से नये विद्यालय भवन और अतिरिक्त कक्षाकक्ष तो बन गये परन्तु बच्चों को स्कूल तक लाने, उनका विद्यालय में ठहराव सुनिश्चित करने के लिए विद्यालय में मध्यान्ह भोजन, पेयजल सुविधा, शौचालय आदि की व्यवस्था कागजी कार्रवाइयों तक ही सीमित रह गयी। यही कारण है कि सरकारी कार्यालयों तक में किशोर चाय की केतली लिए घूमते नजर आते हैं। जिलाधिकारी कार्यालय के सामने ही गरीब बच्चे कूड़ा बीनते नजर आते हैं परन्तु इस ओर ध्यान देने को कोई राजी नहीं है।

शिक्षा अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत मान्यता नियमों में परिवर्तन और उन्हंे कड़ाई से लागू किये जाने के आदेश के बावजूद अभी भी शहर में दुकानों और कोठरियांे तक में स्कूल संचालित हैं। तथाकथित निजी पब्लिक स्कूल फीस के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम वसूल रहे हैं व गरीब छात्रों को निःशुल्क दाखिले से इंकार कर रहे हैं।

शिक्षा अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों को स्कूलों में मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित न करने के आदेश के बावजूद अभी भी पुराना ढर्रा लागू है।

प्रदेश में नई सरकार के गठन के बाद शिक्षा अधिकार अधिनियम के लागू होने के प्रति लोग उम्मीद से देख रहे हैं।