यूपी में माया की सत्ता में हार के बाद मायावती का नया चेहरा दिखाई दिया| प्रेस कांफ्रेंस कर पत्रकारों को सवाल पूछने का मौका 5 साल बाद मायावती ने दिया| काश कि मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान पत्रकारों को सवाल पूछने देती तो उन्हें अपनी पार्टी की हकीकत जरुर पता चल जाती मगर मायावती का इतिहास में एक तानाशाही मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित हुई| मायावती 5 साल तक सिर्फ बोली, सुनना उनके खाते में दर्ज नहीं हुआ| ऐसा आजादी के 60 साल में यूपी के पत्रकारों ने नहीं देखा|
मायावती जब लखनऊ में होती तो बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस बुलाती| लिखा हुआ पढ़ती और सवाल पूछने से पहले पत्रकारों को चाय और लंच की दावत देकर फुर्र हो जाती| जब तक कैमरा में फूटेज बनाने के लिए कैमरा घुमाता उन्हें अधिकारी चमचे कैमेरो में खीसे नपोरे नजर आने लगते| हाल यही उनके जिलों के दौरों के भी होता| मीडिया को स्थानीय पुलिस ऐसे दूर रखती जैसे यूपी मीडिया के कर्मी कुख्यात आतंकवादी ओसामा के चेले चपाटे हो| ऐसा मायावती के निर्देशों पर होता रहा| सुरक्षा का सवाल कम सवालों से डर ज्यादा|
हार के बाद मायावती की प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के कानो में आवाज पड़ी- एक एक कर पूछो सभी सवालों का जबाब दूँगी| पत्रकार अवाक थे| कहीं सपना तो नहीं देख रहे| एक मित्र पत्रकार ने बताया कि जब सब कुछ बुझ गया तब सवाल पूछते भी संकोच लगता है| सोचो किसी के घर में गमी (कोई मर जाए) हो और उससे सवाल पूछे ये कुछ असहज लगता है| सो पत्रकारों ने सवाल भी गिने चुने ही पूछे| वैसे माया जब सुनने के लिए बोली तो पत्रकारों को सवाल ही याद नहीं आये| क्यूंकि मायावती की प्रेस कांफ्रेंस में सवालों की कभी जुरुरत नहीं पड़ी और किसी पत्रकार की जुर्रत नहीं हुई| सो माया की प्रेस में बेमतलब मगजमारी की जरुरत नहीं पड़ी| तभी तो सवालों से पहले माया ने पत्रकारों पर ही अपनी हार का जिम्मेदार ठहरा दिया| उन्होंने कहा कि मेरी हार में आप मीडिया वालो का भी बड़ा हाथ है| बहनजी मीडिया का भी हाथ होता है ये बात हारने के बाद जान पायी काश पहले ही जान पाती तो तस्वीर ही दोस्सारी होती| माया कहती रही कि उनका दलित वोट अख़बार नहीं पढ़ता, टीवी नहीं देखता| इसीलिए दलितों के आलावा अन्य वोटो ने टीवी देखी अख़बार पढ़े और माया की सत्ता चली गयी| असल में मीडिया माया के साथ नहीं थी| रहती भी कैसे माया भी तो कभी मीडिया के साथ नहीं रही| अब जबकि अखिलेश मुख्यमंत्री बनने जा रहे है मायावती देख ले कि छोटे से छोटा पत्रकार भी मुख्यमंत्री से सवाल पूछेगा और मुख्यमंत्री सहज होकर जबाब देगा| असल में मीडिया की यूपी में फिर से आजाद होने की भी खबर है| मायावती को छोड़कर आजतक ऐसा कोई मुक्यमंत्री नहीं हुआ जिसने मीडिया के सवालों का जबाब नहीं दिया| मीडिया मतलब जनता की आवाज होता है| मीडिया तो नारद का रोल निभाती है| निंदा करती है| अच्छे कामो का प्रचार करती है| मगर माया को निंदक बर्दास्त नहीं थे| उन्हें तो सैंडिल घिसने वाले ही पसंद थे जो कम से कम मीडिया के लोग नहीं बन सके, इस बात का हमें गर्व है| माया ने जनता से दूरी बना ली तो जनता ने भी जबाब वही दे दिया तो कैसा गम|
चलो अच्छा हुआ नहीं मिलना, न तुम खाली और न हम खाली||
अब यूपी छोड़ कर दिल्ली जाओ या नॉएडा में अपनी मूर्तियाँ निहारो आपकी मर्जी-
पंकज दीक्षित