रह गुजर से वोट मांग ले नेता, तेरी सुनने को अब मुझे फुर्सत नहीं!

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गंगा किनारे का फर्रुखाबाद जिला, आम चुनाव की जश्ने बारात का समां और देश के कानून मंत्री की सियासी इज्जत का इम्तहान| ये तीनो ही बाते अपने आप में इतनी अहमियत रखती है कि तीनो को एक दूसरे से जोड़ा भी जा सकता है और अलग भी किया जा सकता है| हिन्दुओ की सबसे बड़ी आस्था गंगा नदी और उसके तट पर स्थापित शिवालयों में घंटा बजाने वालों ने भी तीन साल पहले एक मुसलमान की 14 साल का बनबास दूर करने की फरियाद न केवल सुनी बल्कि उसे फर्रुखाबादी होने का फक्र भी कराया था| एक बेहतरीन जीत दिलाकर उसे सांसद बनाया था| ये गंगा जमुनी तहजीब का बेहरतीन नमूना था|

ठीक तीन साल बाद उसी फरियादी की सियासी इज्जत एक बार फिर उनकी पत्नी ने दाव पर लगायी है| लुईस खुर्शीद ने अबकी बार अपना नाम पोस्टरों और बैनरों में “लुईस सलमान खुर्शीद छपवाकर” बड़ा कर लिया है| तब देश की निचली संसद के लिए नुमायन्दा चुनने का वक़्त था अब सूबे में नयी सरकार के गठन के लिए नुमायन्दगी तय की जानी है| हिंदुस्तान के कानून मंत्री और फर्रुखाबाद के सांसद सलमान खुर्शीद की पत्नी कांग्रेस की टिकेट पर चुनाव मैदान में है| पति पत्नी और बेटा सब मिलकर जनता से वोट मांग रहे है| मगर लगता है कि मतदाता अब देहरी से बाहर निकल कर इस्तकबाल करने को भी तैयार नहीं है|

तीन साल बाद तीनो बाते बिलकुल वैसी की वैसी है| गंगा के तट पर वही फर्रुखाबाद है, चुनाव का मौसम है और कानून मंत्री की इज्जत का इम्तिहान एक बार फिर है| मगर जो बदल गया वो मतदाता का विश्वास है| तस्वीरे कहती है कि मतदाता का अब नेताओं पर भरोसा नहीं रहा| अन्ना, रामदेव और श्री श्री रविशंकर की छीछालेदर जो कांग्रेस के लोग करते रहे उसे गंगा किनारे के उस मतदाता ने भी देखा था जिसने पिछले चुनाव में सलमान को इज्जतदार जीत का हार पहनाया था| चतुर व् वाक्पुटता के सहारे बेहतरीन दलीलों से तुम भले ही खामोश कर लेते हो| मगर बात है कि जेहन से निकलती नहीं, कि गरीब और जरूरतमंद के हिस्से को तुम नेताओ की वजह से ही लूटा जाता रहा है| जिसे थानेदार बनाकर भेजा था वही कफ़न लुटवाता चला!

तस्वीरे जो कांग्रेस पार्टी की ओर से प्रत्याशी के जनसम्पर्क की आई है, लगता है कि बोल पड़ेगी| शायद अब वही मतदाता कह रहा है- रह गुजर से वोट मांग ले नेता, तेरी सुनने को मुझे अब फुर्सत नहीं|