फर्रुखाबाद: आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के बैनर तले आइनी हुकूक बचाओ तहरीक का जलसा-ए-आम अपनी तमाम कोशिशो के बाद भी बसपा प्रायोजित कार्यक्रम होने की हकीकत छुपा नहीं सका। मंच से मजहबी एकता के आह्वान व नारा-ए-तकबीर की रह रह कर उठने वाली सदाओं के पीछे का मकसद लगभग सबके सामने साफ था। रही बची कसर मुज्फ्फर रहमानी जैसे बसपा समर्थकों की मंच पर मौजूदगी व उनके आवास पर मौलान की दावत न पूरी कर दी।
शहर के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में बसपा प्रत्याशी के केंद्रीय चुनाव कार्याल से चंद कदम की दूरी पर अयोजित कार्यक्रम को आयोजकों ने ऊपरी तौर पर गैर राजनैतिक दिखाने का भरसक प्रयास किया। प्रशासन ने अयोजकों को कार्यक्रम की अनुमति में भी किसी राजनैतिक दल या वयक्ति का उल्लेख न करने की हिदायत दे रखी थी। वक्ताअओं को भी इस विषय में जानकारी दे दी गयी थी। बसपा के घोषित प्रत्याशी या पदाधिकारियों ने भी जलसे से “उचित दूरी” बनाये रखी। इसके बावजूद जलसे के मंच से मजहबी भाई चारे व एकता के आह्वान और जलसे के बीच से रह-रह कर उठने वाली नारा-ए-तकबीर के नारों से धर्म के नाम संगठित होने का संदेश साफ तौर पर कार्यक्रम की सार्थकता की ओर इशारा कर रहा था। रही बची कसर जफरयाब जीलानी जैसे चतुर वक्ता ने भाषण से पूरी कर दी।