मायावती सरकार के पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) पर आधारित ड्रीम प्रोजेक्ट गंगा एक्सप्रेस-वे पर फिलहाल ब्र्रेक लग गया है। बलिया से नोएडा तक बनने वाले इस प्रोजेक्ट के डवलपर को लंबे समय तक केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय से क्लीयरेंस नहीं मिला तो उसने अपनी लगभग 894.75 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी सरकार से वापस ले ली। गारंटी वापस लिए जाने के पीछे की वजह मौजूदा सरकार का कार्यकाल खत्म होने और बसपा की सरकार दोबारा बनने की अनिश्चितता से जोड़ कर भी देखा जा रहा है।
असल में 40 हजार करोड़ की लागत से इस प्रोजेक्ट की एनओसी और अन्य औपचारिकताओं के लिए पहले तो डवलपर अपने स्तर पर प्रयास करता रहा, लेकिन जब केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने यह कहा कि एनओसी के लिए आवेदन उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस-वे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (यूपीडा) को ही करना है, तो मामला फिर फंस गया। अब यूपीडा एनओसी के लिए अपने स्तर पर सक्रिय है, लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा परफॉर्मेंस गारंटी वापस करने के साथ अब यह साफ हो गया कि प्रोजेक्ट फिलहाल लटक गया है। अगली सरकार में अगर यह प्रोजेक्ट आगे बढ़ा तो नए सिरे से समझौता पत्र तैयार करना होगा।
प्रोजेक्ट का भविष्य अब नई सरकार के हाथ में है। अगर बसपा सत्ता में लौटती है तो यह प्रोजेक्ट तेजी से आगे बढ़ सकता है। अगर गैर बसपा सरकार बनी तो प्रोजेक्ट की समीक्षा कर रद्द भी किया जा सकता है। हालांकि संभव यह भी है कि प्रोजेक्ट आगे बढ़ाया जाए। एक्सपे्रेस-वे के लिए इनलाइनमेंट का काम काफी हद तक पूरा हो चुका है। नोएडा से बलिया तक बनने वाले आठ लेन के गंगा एक्सप्रेस- वे की राह में आने वाले 17 जिलों के 1239 गांवों की जमीन अधिग्रहीत होनी है।