साध्वी चिदर्पिता के जीवन में कुछ भी सामान्य नहीं रहा है. इसलिए मुझे उनके बारे में कुछ जानने की उत्सुकता रहती है और जब भी समय मिलता है, तभी उनकी आत्मकथा सुनने बैठ जाता हूं। उनके जीवन के बारे में जैसे-जैसे पता चलता जाता है, वैसे-वैसे उत्सुकता व सवाल और बढ़ते जाते हैं, लेकिन वह एक-एक सवाल का पूरी ईमानदारी से जवाब देती रहती हैं। प्रत्येक जवाब सुनने के बाद मेरे दिमाग में विस्फोट से होने लगते हैं। अगर आप इस सबसे अब तक अनभिज्ञ होंगे, तो यह सब पढ़ कर आप भी स्तब्ध रह ही जायेंगे।
उत्सुकता के क्रम में मैंने कल दोपहर अपनी पत्नी साध्वी चिदर्पिता गौतम से अचानक पूछ लिया कि स्वामी जी ( उनके गुरू, आध्यात्मिक हस्ती स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, पूर्व गृह राज्य मंत्री, भारत सरकार) की क्या दिनचर्या थी, वह धार्मिक और राजनीतिक गतिविधियों में कैसे सामंजस्य बैठाते थे? मेरे सहज भाव से पूछे गये सवाल का ऐसा जवाब मिलेगा, यह मैंने सोचा भी नहीं था। स्वामी जी उनके गुरु हैं, लेकिन उनकी छवि को बचाने के लिये, वह पति से झूठ कैसे बोल देतीं, सो उन्होंने हमेशा की तरह सब कुछ ईमानदारी से ही बताना शुरू किया। स्वामी जी सुबह चार बजे उठते हैं, दैनिक क्रिया से निवृत होने के बाद स्नान किये बिना घूमने निकल जाते हैं और वापस आकर नाश्ता करते हैं। इस पर मैंने पूछा कि आश्रम में तो नित्य प्रार्थना होती है, वह उसमें नहीं जाते? साध्वी जी ने सकुचाते हुए और न बोलने की जगह सिर हिलाते हुए बताया कि व्यस्तता के चलते वह प्रार्थना में नहीं जा पाते। मैंने फिर पूछा कि पूजा कब करते हैं, क्योंकि सन्यास में तो प्रतिज्ञा की जाती है कि मैं ईश्वर ध्यान के बिना अन्न ग्रहण नहीं करूँगा। इस पर उन्होंने कहा कि मिलने वाले बहुत लोग पहले से ही रहते हैं, तो देर हो जाती थी, इसीलिए वह पूजा-पाठ नहीं कर पाते, वह इतने पर भी अपने गुरू महाराज को ही श्रेष्ठ घोषित करने का प्रयास करती दिख रही थीं। अब मैं अपनी भोली पत्नी को कैसे समझाता कि सुबह चार बजे उठकर आराम से तैयार होकर और विधिवत पूजा-अर्चना के बाद भी लोगों से मिलने बैठा जा सकता है, लेकिन उनकी अध्यात्मिक प्रकृति है ही नहीं, क्योंकि मैंने स्वयं शंकराचार्य जी और अन्य कई बड़े सन्यासियों के साथ नेताओं को भी अति व्यस्तता के बाद भी पूजा-अर्चना करते देखा व सुना है।
खैर! मेरे मन में उनकी जो छवि थी, वह धुलती जा रही थी और मैं अपलक एक-एक शब्द बड़े ध्यान से सुनता जा रहा था। उन्होंने बताया कि चाय पीने के बाद वह तीन-चार अखबार पढ़ते हैं, इसके बाद घर में काम करने वाले स्कूल के किसी भी कर्मचारी से पूरे शरीर पर तेल से मालिश कराते हैं। मैंने फिर टोका कि किसी भी कर्मचारी से मतलब? तेल लगाने के लिए तो अलग आदमी होते हैं, तो उन्होंने कहा कि वह बहुत सरल हैं और किसी से भी लगवा लेते हैं। यह जानकर तो मैं वास्तव में अचेत वाली अवस्था में पहुंच गया कि वह घर में काम करने वाले छोटे लड़कों के साथ सफाई करने वाली और बर्तन धोने वाली महिलाओं से भी मालिश कराते हैं, साथ ही महिलाओं से ही तेल लगबाने में अधिक रुचि रखते हैं और महिलायें भी तेल लगाने को आतुर रहती हैं, क्योंकि स्वामी जी इनाम भी देते हैं।
इतने बड़े अध्यात्मिक गुरू को महिलाओं से तेल लगवाने में कोई संकोच नहीं है, यह जान कर मैं वास्तव में अभी तक आश्चर्य चकित हूं। अब मेरी उनके प्रति धारणा बदल चुकी थी, सो सवाल भी वैसे ही करने लगा, तो पता चला कि तेल लगवाते समय ही महंगी शराब भी पीते हैं और दिन भर के लिए मस्त हो जाते हैं। मैंने पूछा कि लाकर कौन देता है? इस सवाल पर साध्वी जी ने बताया कि एक महाशय कस्टम विभाग में उनकी सिफारिश पर ही लगाये गये थे, वही विदेश से उनकी पसंद के ब्रांड लाकर देते हैं। यह जानकारी आश्रम में अंदर काम करने वाले लगभग सभी कर्मचारियों को भी है, पर उनकी कृपा पर कर्मचारियों की रोजी-रोटी चलती है, इसलिए कोई किसी से चर्चा तक नहीं करता। मेरे लिए हर जानकारी नई थी, सो चर्चा बंद करने का मन ही नहीं कर रहा था। मैं हर सवाल के साथ अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए ध्यान से सब सुनता जा रहा था। तेल लगवाते समय शराब पीते हैं, फिर स्नान करते ही नाश्ता करते हैं और स्कूल या कॉलेज में बने अपने कार्यालय में जाकर बैठ जाते हैं। दोपहर में लौटकर भोजन करते हैं और फिर बिस्तर पर लेटने के बाद कोई कर्मचारी महिला या पुरुष उनके पैर दबाता रहता है और वह सोते रहते हैं। शाम को उठकर फिर चाय पीते हैं और कोई मिलने वाला हो तो उससे मिलते भी हैं। अधिकांश लोग शाम को ही शराब पीते हैं, इसलिए मैंने जिज्ञासावश पूछा कि स्वामीजी शराब सुबह क्यों पीते हैं? अभी और चौंकना बाकी था, क्योंकि वह शराब सुबह इसलिए पीते हैं कि शाम की चाय के बाद भांग का गोला गटकते हैं और सुबह तक उसी के नशे में मस्त रहते हैं। भांग कौन लाकर देता है? जवाब मिला कि बहुत दिन तक जौनपुर के प्रतिनिधि बनारस से डिब्बा भेजते थे, पर जब से राजनीतिक कद घटा है, तब से उन्होंने भेजना बंद कर दिया है और शाहजहाँपुर से ही भांग का बना चूर्ण मंगा लेते हैं, जो स्कूल में काम करने वाला कोई कर्मचारी लाकर दे देता है। इतना सब सुनने के बाद भी मैं उनसे संध्या पूजन की अपेक्षा अब भी कर रहा था, तभी फिर सवाल किया। जवाब में फिर वही संकोचपूर्ण न ही मिली। मेरी पत्नी के साथ उन्होंने कभी कुछ असत्य व्यवहार किया था, इसका मन में गहरा क्षोभ था, पर इसके अतिरिक्त भी समाज में जो जगह थी, उसको लेकर सकारात्मक भाव था, लेकिन यह सब सुनने के बाद आध्यात्मिक गुरु के साथ अनेक धार्मिक और शैक्षिक संस्थाओं के अध्यक्ष और भारत के गृहराज्य मंत्री के दायित्व तक पहुंचने वाली मेरे मन में जो छवि थी, वह तार-तार हो गयी। मैं यह भी सोच रहा था कि यह तो एक दिन की सामान्य दिनचर्या ही है, जिसने मेरे दिमाग की चूलें हिला दी हैं। ऐसा व्यक्ति जब इरादे से कुछ गलत करता होगा, तो मानवता तो आसपास भी नहीं रहती होगी। एक दिन ऐसा है, तो साल के तीन सौ पैंसठ दिन कैसे होते होंगे? फिर भी ऐसे लोग आदरणीय हैं। गाय की खाल में स्वयं को ढक कर ऐसे भेडिय़े करोड़ों मासूमों से धर्म, आस्था और श्रद्धा के नाम पर स्वयं की पूजा कराते हुए देश और समाज को लूट रहे हैं। यह सब जान कर क्षण भर के लिए पत्नी पर भी क्रोध आया कि यह सब जानते-समझते हुए वह चुप क्यूं थी? फिर ध्यान आया कि वह एक भारतीय नारी हैं, भगवान की तरह पूजने वाले अपने गुरू की, वह कैसे निंदा कर सकती थी? आज मैं ही कुछ गलत करने लगूं, तो वह मुझे भले ही सौ बार मना करें/रोकें, पर सार्वजानिक रूप से मेरी निंदा नहीं करेंगी। ….जब यह सोच मन में आयी, तो उन पर तरस भी आया कि इस सात्विक आत्मा ने कैसे वो सब देखा होगा/सहा होगा? जो भी हो, पर ईश्वर कृपा ही है, जो वह उस लंका से भी बुरी राक्षसी साम्राज्य से दूर आ चुकी हैं, जिसका स्वामी रावण से भी बड़ा राक्षस है।
लेखक बी.पी.गौतम स्वतंत्र पत्रकार हैं. अभी हाल में ही साध्वी चिदर्पिता और बीपी गौतम एक दूजे के हुए हैं
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