राज्य निर्वाचन आयोग ने जारी की अधिसूचना, पहले की तरह पार्टी सिंबल पर होंगे निकाय चुनाव

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लखनऊ: भले ही अभी यह साफ नहीं है नगरीय निकाय चुनाव कब होंगे लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग ने एक बात साफ कर दी है कि जब भी चुनाव होंगे वह पूर्व की भांति दलीय आधार (पार्टी सिंबल) पर होंगे। आयोग ने बुधवार को दलों के प्रतीक आरक्षित करने व प्रतीकों के आवंटन के संबंध में अधिसूचना जारी कर दी। आयोग की इस अधिसूचना को लेकर कुछ इस तरह का भ्रम पूरे प्रदेश में फैला कि निकाय चुनाव की अधिसूचना हो गई है जिस पर आयोग के अफसरों को सफाई देने के लिए सामने आना पड़ा।

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश नगर पालिका (सदस्यों, पार्षदों, अध्यक्षों और महापौरों का निर्वाचन ) नियमावली-2010 बनाकर दलविहीन निकाय चुनाव कराए जाने की व्यवस्था की थी। नियमावली के नियम 4(2) में इस तरह की व्यवस्था होने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने भी निकाय चुनाव में महापौर व अध्यक्ष पद के लिए 50 और पार्षद-सदस्य पद के लिए 75 मुक्त प्रतीक चिह्न तय कर संबंधित अधिसूचना इस साल फरवरी-अप्रैल में जारी कर दी थी। चूंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पांच मई 2011 को दलविहीन निकाय चुनाव कराए जाने संबंधी नियमावली के उक्त नियम को संविधान के विपरीत बताते हुए नियमावली को ही निरस्त किया जा चुका है इसलिए अब पूर्व की भांति दलीय आधार पर चुनाव कराए जाने की एक बार फिर व्यवस्था लागू हो गई है। वैसे दलविहीन चुनाव के मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर रखी है लेकिन उस पर सुप्रीमकोर्ट ने स्टे नहीं दिया है।

ऐसे में राज्य निर्वाचन आयुक्त राजेन्द्र भौनवाल ने बुधवार को चार अलग-अलग अधिसूचना जारी करते हुए जहां पूर्व में मुक्त प्रतीक जारी करने संबंधी अधिसूचना को संशोधित कर दिया है वहीं निकाय चुनाव के लिए मान्यता प्राप्त 14 राजनीतिक दलों के संबंधित प्रतीकों को उनके लिए आरक्षित कर दिया है। आयोग में पंजीकृत अमान्यता प्राप्त दलों के लिए भी 15 प्रतीक तय किए गए हैं। पंजीकृत अमान्यता प्राप्त दल उक्त प्रतीकों में से किसी एक पर पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए आयोग में आवेदन कर सकें जिसे आयोग नियमानुसार उन्हें आवंटित करेगा। संयुक्त निर्वाचन आयुक्त जेपी सिंह ने बताया कि पूर्व में जो मुक्त प्रतीक तय किए गए थे अब वे निर्दलीय निकाय चुनाव लड़ने वालों के लिए रहेंगे। सिंह ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद आयोग को तो उक्त अधिसूचना जारी करनी ही थी। उन्होंने बताया कि उक्त अधिसूचना के बाद इस तरह का भ्रम पैदा होने की उन्हें सूचना मिली है कि जैसे निकाय चुनाव कराए जाने की अधिसूचना हो गई है। सिंह ने साफ किया कि निकाय चुनाव की अधिसूचना तो पहले सरकार को करनी होती है। चूंकि निकाय चुनाव संबंधी मामला अभी हाईकोर्ट में लंबित है इसलिए सरकार भी कहां अभी अधिसूचना करने जा रही है।