कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को द्विअर्थी बयानों में महारत पर साधुवाद

Uncategorized

 

केंद्र सरकार के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की विदेशी शिक्षा व उनके पैत्रक राजनैतिक गुणों को भले ही किसी भी रूप में प्रस्तुत किया जाये, परंतु हाल में उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनलोकपाल बिल व आरटीआई बिल पर जिस तरह की द्वअर्थी बयानबाजी की है, उससे एक पारदर्शी नायक पर एक शार्प डिप्लोमेट की छवि भारी पड़ गयी है। परंतु इस बार श्री खुर्शीद यह भूल गये कि वह जिन मुद्दों की बात कर रहे हैं वह गरीबी, बेरोजगारी या आरक्षण जैसे आम मुद्दे नहीं, वरन देश के प्रबुद्ध वर्ग के चिंतन से निकले मुद्दे हैं। मीडिया में भ्रामक बयान देने के बाद सुर्खियो में आने के तीसरे ही दिन वह फिर बैकफुट पर नजर आते हैं। परंतु शायद यही कामयाब डिप्लोमेसी है- टू स्टेप फारवर्ड, वन स्टेप बैकवर्ड। उनके मीडिया में छाये रहने से जनपदवासियों का सीना गर्व से ऊंचा हो जाता है। श्री खुर्शीद के इन तेवरों से उनके राजनैतिक आकाओं की नजर में उनकी हैसियत भले ही बढ़ जाती हो परंतु जो लोग उनके बयानों को निहितार्थों को समझ सकते हैं उनको इन बयानों के पीछे की नंगी सच्चाई साफ नजर आ जाती है।

श्री खुर्शीद ने विगत दिनों जनलोकपाल बिल पर बयान दिया था कि केंद्र सरकार संसद के शीत सत्र में ही जनलोकपाल बिल से संबंधित कानून परित करने का बिल पेश करेगी। मीडिया में आयी खबरों से देश भर में खुशी की लहर दौड़ गयी। टीम अन्ना की भी उम्मीदे सरकार से जाग गयीं। परंतु जैसे जैसे उनके बयान के निहितार्थ समाने आये, हकीकत और सरकार की नियत भी सामने आ गयी। लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिये जाने की मंशा को राहुल गांधी के सर पर मढते हुए जो स्पष्टीकरण आये उनको सुनकर लोग बरबस ही कह उठे कि “ न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेंगी” अर्थात जब सरकार के पास दो तिहाई बहुमत ही नहीं है तो वह कानून में संशोधन कैसे कर सकती है। अब अगर बिल अपने किसी प्राविधान के कारण गिरा तो कह दिया जायेगा कि विपक्ष ने सहयोग नहीं किया, इस लिये जनलोकपाल बिल पारित नहीं हो सका। सांप भी मर जाये, लाठी भी न टूटे।

ठीक इसी प्रकार का बयान अब कानून मंत्री ने सूचना का अधिकार कानून में संशोधन पर दिया है। इसमें ऊपरी तौर पर तो कहा गया है कि कानून में कोई परिवर्तन नहीं किया जायेगा, परंतु धीरे से यह भी जोड़ दिया गया कि कानूनों में आवश्यकता के अनुरूप समय समय पर संशोधन करना मजबूरी हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर गोपनीयता के कानून का हवाला तक दे डाला गया। खैर हम तो अपने सांसद की फोटो ही मीडिया में देख कर खुश हो जाने वालों में हैं।