यक्ष प्रश्न? रावण का अंतिम संस्कार किसने और कैसे किया?

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फर्रुखाबाद: भारत में सदियो से हर साल रावण को जलाया जाता है| रामलीला खेलते हुए रावण को मारते और जलाते हुए राम को दिखाया जाता है| मगर ये परम्परा सही नहीं है| रावण राम के हाथो मारा जरूर गया था मगर रावण का अंतिम संस्कार उसके छोटे भाई विभीषण ने किया था| इसी के साथ रावण की मौत दिन के कौन से पहर में हुई इस बात का भी रहस्य है| आमतौर पर शाम के समय दसहरा के दिन रावण को राम के हाथो मारा जाना और जल जाना दिखाया जाता है| मगर वास्तविकता में रावण की मौत दिन के चौथे पहर में हुई थी| कई अनसुलझे सवालों पर जेएनआई की विशेष प्रस्तुति-

वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण तेजस्वी विश्वश्रवा का पुत्र व पुलस्त मुनि का पोता था| विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी| वरवर्णिनी के कुवर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला (अशुभ समय – कु-बेला) में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये।

राक्षस राज रावण के गुण-
१- रावण एक अति बुद्धिमान व्राह्मण व शंकर जी का परम भक्त था|
२- वाल्मीकि जी ने रावण को चारों वेदों का ज्ञाता और महान विद्वान् बताया है|
३- राम के वियोग में दुखी सीता से रावण ने कहा ” हे सीते यदि तुम मेरे प्रति काम भाव नहीं रखती हो तो मै तुझे स्पर्श नहीं कर सकता| शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेष है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।

वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपने रामायण में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥

रावण के अवगुण

वाल्मीकि रावण के अधर्मी होने को उसका मुख्य अवगुण मानते हैं। उनके रामायण में रावण के वध होने पर मन्दोदरी विलाप करते हुये कहती है, “अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।” तुलसीदास जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। उन्होंने रावण को बाहरी तौर से राम से शत्रु भाव रखते हुये हृदय से उनका भक्त बताया है। तुलसीदास के अनुसार रावण सोचता है कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक वैर करूंगा और प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर भव-बन्धन से मुक्त हो जाऊंगा।

रावण के दस सिर का रहस्य –

रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात् शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे – आसुरी माया से बने हुये। मारीच का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।

रावण कैसे मरा ?

रामनुज कहँ रामु कहँ अस कहि छांडेसि प्रान|
धन्य धन्य तव जननी कह अंगद हनुमान ||

राम के छोटे भाई लक्ष्मण कहाँ है? राम कहाँ है ? ऐसा कहकर मेघनाद ने प्राण छोड़ दिए| अंगद और हनुमाना कहने लगे तेरी माता धन्य हैं ( जो तू लक्ष्मण जी के हाँथ मरा और मरते समय राम लक्ष्मण को स्मरण करके उनके नामों का उच्चारण किया) |

बिनु प्रयास हनुमान उठायो | लंका द्वार राखि पुनि आयो ||
तासु मरन सुनि सुर गंधर्बा | चढ़ी बिमान आये नभ सर्वा ||

हनुमान जी ने मेघनाथ के मृत शरीर को बिना परिश्रम के ही उठा लिया और लंका के दरबाजे पर रखकर लौट आये| मेघनाथ के मरने की खबर सुन देवता और गंदर्भ बिमानों पर चढ़कर आये|

अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए | लछिमन कृपा सिन्धु पहि आये ||
सूत बध सुना दसानन जबहीं | मुरुछित भयऊ परेऊ माहि तबही||

देवता और सिद्ध स्तुति करने चले गए तब लक्षमण जी कृपा के समुद्र श्री राम जी के पास आये| रावण ने ज्यों ही पुत्र बध का समाचार सुना त्यों ही वह मूर्छित होकर प्रथ्वी पर गिर पडा|

पुत्र की मौत का समाचार सुनकर रावण क्रोध से लाल हो गया और तत्काल पवन के सामान तेज चलने वाला रथ सजाया| लड़ाई का बिगुल फूंक गया| सभी अतुलनीय वीर बलवान ऐसे चले मानो काजल की आंधी चली हो|

रावनु रथी बिरथ रघुवीरा | देख बिभीषण भयऊ अधीरा ||
अधिक प्रीती मन भा संदेहा | बंदी चरन कह सहित स्नेहा ||

युद्ध के मैदान में रावण और राम आमने सामने खड़े हैं| रावण को रथ पर और राम को बगैर रथ पर देखकर बिभीषण को संदेह हो गया कि राम बगैर रथ के रावण से कैसे जीत सकेगें| देवताओं ने भगवान् राम को बिना रथ के युद्ध करते देखा तो उनके ह्रदय में भारी दुःख उत्पन्न हुआ है| इन्द्र ने तुरंत अपना रथ मातलि के साथ भेजा| श्री राम रथ पर सवार होकर युद्ध के लिए तैयार हो गए|

युद्ध में बाण ऐसे चले मानों पंख वाले सर्प उड़ रहे हों| उन्होंने पहले सारथी और घोड़ों को मार डाला फिर रावण के रथ को चूर चूर कर दवाजा औरर पताकाओं को गिरा दिया| तब रावण बड़ी जोर से गरजा परन्तु अन्दर से रावण भगवान् राम के सामने दुर्बल हो चुका था| रावण ने भी नाना प्रकार के अस्त्र चलाये लेकिन सारे अस्त्र भगवान राम के सामने निष्फल हो गए|

श्री राम जी ने उसके दसों सिरों में दस दस बाण मारे जो आरपार हो गए और सिरों से रक्त के नाले बह चले| रक्त बहते हुए ही बलवान रावण दौड़ा उसने फिर धनुष पर बाण संधान किया| श्री रघुवीर ने बीस बाण मारे और बीसों भुजाओं समेत दसों सर काटकर जमीन पर गिरा दिए|

पुनि पुनि प्रभु काटत भुज सीसा | अति कौतुकी कोसलाधीसा ||
रहे छाई नभ सिर अरु बाहू | मानहुं अमित केतु अरु राहू ||

भगवान् राम बार बार रावण की भुजाओं व सिरों को काट रहे हैं क्योंकि कोसलपति श्रीराम जी बड़े कौतुकी है| आकाश में सिर और बाहु ऐसे छा गए हैं मनो असंख्य राहू और केतु हैं|

काटे सिर नभ मारग धावहिं | जय जय धुनि करि भय उपजावहिं ||

काटे हुए सिर आकाश मार्ग से दौड़ते हैं और जय जय की ध्वनि करके भय उत्पन्न करते हैं| भगवान् राम बोले ” हे मूर्ख नीच , दुर्बुद्धि तूने देवता, मनुष्य, मुनि , नाग सभी से विरोध किया | तूने आदर सहित शिवजी को सिर चढ़ाया इसी के बदले एक एक कर करोड़ों सिर पाए|

हनुमान जी विशाला पर्वत लेकर रावण की तरफ दौड़े और रावण का रथ, घोड़े, सारथी का संहार कर डाला और उसके सीने पर लात मारी| लेकिन रावण खडा रहा उसका शरीर कांपने लगा| इसे दौरान यह द्रश्य देख रहे देवताओं पर रावण बुरी तरह झपटा| देवताओं को व्याकुल देख अंगद ने रावण का पैर पकड़ लिया|

इसी दौरान भगवान् राम ने रावण के नाभि में तीर मारा इससे उसका अमृत कुंड सूख गया | दूसरे तीस बाण कोप करके उसके सिरों और भुजाओं में लगे| बाण सिरों और भुजाओं को लेकर चले| रावण का रुंड (धड ) प्रथ्वी पर नाचने लगा|

डोली भूमि गिरत दसकंधर | छुभित सिन्धु सरि दिग्गज भूधर ||
धरनी परेऊ द्वौ खंड बढ़ाई | चापि भालु मरकत समुदाई ||

रावण के गिरते ही प्रथ्वी हिल गयी | समुद्र नदिया, दिशाओं के हांथी और पर्वत क्षुब्ध हो गए| रावण धड के दोनों टुकड़ों को फैलाकर भालू और वानरों के समुदाय को दबाता हुआ गिर पडा| रावण का तेज प्रभु के अन्दर समा गया| सभी देवता गण पुष्प वर्षा करके प्रसन्न हुए|