निराश्रित घायल महिला को दवा व खाने के लाले, किया वार्ड में कैद

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फर्रुखाबाद: रविवार दोपहर इमरजेंसी गेट के बाहर पैर में कीड़े पड़ जाने से असहनीय दर्द से तड़प रही एक विक्षिप्त महिला को जेएनआई में समाचार प्रकाशित होने के बाद लोहिया अस्पताल में भर्ती तो कर लिया, लेकिन उसे अस्पताल कर्मियों ने अपने सर पर बोझ समझ अस्पताल की तीसरी मंजिल पर कोने में मौजूद एक कक्ष में कैद कर रखा है। अर्थात कमरे के बाहर से चिटखनी लगा दी गयी है। प्राथमिक उपचार के नाम पर उसके घाव पर सिर्फ पट्टी लपेटकर खानापूरी कर दी गयी है। स्थिति यह है कि महिला के घाव से खून रिस-रिस रहा है व टप-टप टपक करवार्ड के फर्श पर फैल रहा है।

शायद किसी ने सही ही कहा है कि समस्या का हल संसाधनों, भवनों व उपकरणों पर नहीं संस्थान को चलाने वालों की भावना पर  निर्भ्रर करत है। करोड़ों रुपये की लागत से बने  राम मनोहर लोहिया अस्पताल में कल JNI की पहल से पीड़ित महिला को जेएनआई की पहल पर सीएमएस एके पाण्डेय द्वारा आदेश दिये जाने पर कर्मचारियों ने भर्ती तो कर लिया लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए| क्योंकि कर्मचारी जानते हैं कि पीड़ित महिला न तो अपना नाम बता पाती है और न ही किसी भी बात का विरोध कर सकती है बस इसी का फ़ायदा उठाकर अस्पताल कर्मियों ने उसे मीडिया कर्मियों की नजर से महिला से बचाने के लिये अस्पताल कर्मियों ने तीसरी मंजिल के कक्ष में समझकर फेंक दिया है| बाहर से ताला भी लगा दिया है।

सोमवार सुबह जब JNI की टीम ने पीडिता के बारे में डाक्टरों से जानकारी लेनी चाही तो अस्पताल का हर कर्मचारी जानकारी देने से कातरता दिखा। कोई बोला कि महिला को ओटी भेजा गया है. दूसरा कोई कह रहा था कि एक्स रे के लिये भेजा गया है|

फिर क्या JNI टीम ने अस्पताल का एक-एक कोना छानने की ठान ली| काफी प्रयास के बाद जेएनआई के रिपोर्टर ने एक सुनसान से वार्ड में महिला को कराहते पड़े ढूंड लिया| लोहिया अस्पताल की तीसरी मंजिल के एक कोने में बने जनरल बार्ड संख्या एस-8 में किसी महिला की दर्दनाक चीखे सुनायी पडी| गेट बाहर से बंद था| दरबाजा खोलने पर अन्दर का नजारा देख दिल दहल गया उसमे वही महिला दर्द से चीख रही थी| और उसके पैर से खून टपक रहा था और महिला असहाय पडी कराह रही थी| यह देखकर आसपास मरीजों के तीमारदारों की भीड़ लग गयी और सभी की जुबान पर अस्पताल कर्मचारियों की लापरवाही देखकर आश्चर्य हो रहा था|

कर्मचारियों से जब इस सम्बन्ध में बात की गयी तो उन्होंने बताया कि अस्पताल में दवाएं उपलब्ध नहीं हैं जैसे तारपीन का तेल जो कीड़े पड़ जाने पर घाव पर डाला जाता है व खाने की व्यवस्था उछाधिकारियों के द्वारा की जा सकती है| फिलहाल पीड़ित की अस्पताल में सुनने वाला कोई नहीं है| हर कर्मचारी अपने आपको महिला के उपचार में सहयोग न करने के चक्कर में कन्नी काटते दिख रहा था| २४ घंटे से भूंखी प्यासी महिला अकेली सुनसान कमरे में लेटी थी| जिससे यह लग रहा था कि अस्पताल कर्मचारी उस महिला की मौत का इन्तजार कर रहे हैं| किन्तु अगर उसका सही समय पर अभी भी इलाज कर दिया जाए तो पीड़ित अपने पैरों पर चल फिर सकती है लेकिन इस बात की फ़िक्र किसी को नहीं|