फर्रुखाबाद: वर्ष 2008 की तरह इस बार भी आलू के सड़कों पर सड़ने की स्थिति बनती नजर आ रही है। भंडारण शुल्क अधिक होने व बाजार में भाव न चढ़ने के कारण किसान शीतगृहों में पड़े अपने आलू निकालने से हिचकिचा रहे हैं। इस स्थिति में शीतगृह मालिकों की मजबूरी होगी कि वह अपने खर्चे पर आलू को निकलवाकर फिंकवा दें। ऐसे में आलू सड़कों के किनारे सड़ना तय है।
पिछले वर्ष अच्छे मौसम के चलते जनपद में 10.25 लाख मीट्रिक टन से अधिक आलू का रिकार्ड उत्पादन हुआ। जनपद के 61शीतगृहों में करीब 5.5 लाख मीट्रकि टन आलू का भंडारण हुआ। पर पड़ोसी राज्यों से आलू की कोई डिमांड न आने तथा निर्यात की कोई गुंजाइश न होने के कारण बाजार में आलू का भाव नहीं चढ़ा। इस कारण शीतगृहों से आलू निकासी की दर काफी सुस्त रही। जिला आलू विकास अधिकारी एमसी भारती के अनुसार करीब 40% आलू निकाला जा चुका है जबकि शेष आलू अभी शीतगृहों में पड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि यद्यपि लगभग 30 प्रतिशत आलू बीज के लिये उपयोग हो जायेगा।
आलू भंडारण का समय शासन द्वारा बढ़ाकर 30 नवंबर तक निर्धारित कर दिया है। परंतु अगर भाव न चढ़ा तो अक्टूबर के बाद शीतगृह मालिक अपने खर्चे पर आलू को शीतगृहों से निकालकर बाहर फिंकवाने को मजबूर होंगे। दरअसल अक्टूबर के बाद उन्हें अगले सीजन के लिए शीतगृह की मरम्मत आदि करवानी होती है। शीतगृह मालिकों को यह भी चिंता सता रही है कि आलू निकासी न होने पर उनका भंडारण शुल्क तो जाएगा ही, भंडारित आलू के एवज में उन्होंने किसानों को जो कर्ज दिया है, उसकी वापसी में भी दिक्कतें आएंगी।
यूपी पोटैटो एक्सपोर्ट फैसिलिटेशन सोसायटी के सदस्य सुधीर शुक्ला ने बताया कि बंपर पैदावार के बावजूद अगर सरकारों का रवैया आलू किसानों के प्रति इसी तरह उदासीन रहा तो आने वाले दिनों में प्रदेश में न केवल आलू की खेती काफी कम हो जाएगी बल्कि लागत न निकलने के कारण किसान आत्महत्या को मजबूर होंगे। आलू को लेकर आत्महत्या की एक घटना पिछले ही महीने आगरा के शमसाबाद इलाके में हो भी चुकी है। उन्होंने बताया कि भंडारण दर 135-140 रुपए प्रति कुंतल की बजाय 60 रुपए प्रति कुंतल से अधिक नहीं होनी चाहिए।