इंडिया है मेरी जान…जानवरों के चारे से भूख मिटा रहे हैं यहां के लोग!

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बांदा। ‘गरीबी पत्थर से भी ज्यादा कठोर होती है।’ यकीन न हो तो बुंदेलखण्ड के उन गांवों में जाइए, जहां लोग पेट की आग बुझाने की खातिर जलभराव वाली जमीन में उगे चारा ‘पसही’ के धान इकट्ठा करने की योजना बना रहे हैं। अब गरीब-गुरबा इस चारे के चावल से धान की फसल आने तक अपनी भूख मिटाएंगे।

वैसे, बुंदेलखण्ड के लोग पिछले कई साल से सूखे की मार झेल रहे हैं। इस साल रुक-रुक कर हुई बारिश से किसानों को काफी राहत मिली है। लेकिन वे गरीब क्या करें, जिनके पास एक विस्वा भी जमीन नहीं है। वे तो सिर्फ किसानों के घर ‘बनी-मजूरी’ से गुजर करने के आदी हैं।

धान की रोपाई के बाद अब किसानों के घर भी कोई काम नहीं बचा। ऐसी स्थिति में गरीब जिंदा रहने के लिए कुछ तो करेगा ही, इसलिए उनकी नजर जलभराव वाले पोखर, नाले पर टिक गई है। जलभराव की भूमि में स्वत: ‘पसही’ नामक चारा उगता है। चाकरी करने वाला गरीब अपने किसान से ऐसी भूमि बलकट या बटाई में बरसात की शुरुआत में ही ले लेता है और पसही की जानवरों से रखवाली में जुट जाता है।

यह सब बांदा जनपद में कुछ ज्यादा ही हो रहा है। अतर्रा तहसील के तेन्दुरा गांव की 65 वर्षीया रमसखिया बताती है कि ‘वह अपने किसान से हर साल एक पोखर बलकट लेती है, करीब डेढ़ क्विंटल पसही का धान उसे मिल जाता है। उसके पास एक भी विस्वा कृषि भूमि नहीं है।’

इस गांव में करीब पांच दर्जन ऐसे परिवार हैं, जो धान की फसल आने तक पसही के चावल खाकर गुजारा करेंगे। इसी गांव में करीब डेढ़ दशक तक एक सामंत के यहां बंधुआ मजदूर रहे बंधना रैदास का परिवार छोटे से घरौंदा में रहता है। बंधना पैर से विकलांग है तो पत्नी बुधिया आंखों से लाचार है, पर वह भी आहट के जरिए पसही के धान इकट्ठा करेगी।

बंधना ने बताया कि उसके घर में ‘अनाज का एक दाना नहीं है, पड़ोसियों की बदौलत गुजारा चल रहा है। कोई सरकारी सुविधा नसीब नहीं है, गांव में अब मजदूरी भी नहीं लगती।’ चौसड़ गांव की प्रधान रह चुकीं 70 साल की दलित महिला गंगिया का कहना कि ‘उनके गांव के महंत रामशरण दास का करीब 25 बीघा खेत परती पड़ा रहता है। उसमें बेहिसाब पसही उगती है, महंत के करिंदे गरीब-गुरबों के बीच बंटवारा कर देते हैं। कई परिवारों का दो माह पेट पलता है।’

आमतौर पर ‘पसही’ को ग्रामीण धान की प्रजाति का चारा मानते हैं, यह अब पकने की स्थिति में है। बांदा के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह का कहना है, “यह धान की अविकसित किस्म है, चावल भी सुगंधित व स्वादिष्ट होता है। यदि इसके बीज को संशोधित कर दिया जाए तो किसानों को बेहद फायदा होगा।”