क्या वाकई में फर्रुखाबाद की अदालतों में ‘पेशी’ बंद हो जाएगी?

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>फर्रुखाबाद: अन्ना के आन्दोलन के साथ कन्धा से कन्धा मिलकर चलने का वादा करने वाले फतेहगढ़ कचहरी के वकीलों ने अन्ना के समर्थन में चल रही हड़ताल मंगलवार को वापस ले ली| जिला बार एशोसियेशन की आम सभा की बैठक में हड़ताल की समाप्ति के साथ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास हुआ कि आगे से तारीख लेने के लिए लगने वाली 10/- रुपये की नियमित घूस न देकर भ्रष्टाचार को ख़त्म करने की और पहला कदम उठाया जायेगा| अगर इस पर कोई झंझट हुआ तो बार इस बात की लिखित शिकायत सम्बन्धित अदालत के जज से करेगा|

अधिवक्ता दीपक दिवेदी ने जेएनआई को बताया कि बार एशोसियेशन की आम सभा में तारीख पर लगने वाली घूस जिसे कचहरी की भाषा में पेशी कहा जाता है उसे बंद करने का प्रस्ताव राजवीर सिंह कटियार सहित लगभग 70 से ज्यादा वकीलों ने हस्ताक्षर करके प्रस्तुत किया जिस पर पूरी सभा में सर्व सम्मति से इसे बंद कर एक नयी शुरुआत करने की कसमे खायी गयी| सभा में फैसला लिया गया कि हर वकील इस बात पर नजर रखे कि कोई मुवक्किल से भी घूस न पड़ पाए और न ही वो खुद पेशी के पैसे दे| ये नाजायज है और इससे बड़ा कचहरी में कोई भ्रष्टाचार नहीं है|

फतेहगढ़ में कुल 23 अदालते हैं जिसमे लगभग 50 के आस पास बाबू मुवक्किल को तारीख देने का काम करते है| औसतन एक बाबू 50 से 80 तक फाइलें निपटाता है और पूरी कचहरी में एक अनुमान के मुताबिक कम से कम 10/- प्रति फ़ाइल के ही हिसाब से कुल पेशी की रिश्वत लगभग 20000/- प्रतिदिन हो जाती है| चौकाने वाली बात ये है कि अदालतों से आने वाला विभिन्न प्रकार का राजस्व (शुल्क, जुरमाना आदि) इस रकम से कम होता है| यानि भ्रष्टाचार की रकम सरकार के खाते में जाने वाली रकम से कहीं ज्यादा हो चली है| वकील इसके पीछे तर्क देते है- महगाई के साथ रिश्वत की रकम में तो बढोत्तरी हो जाती है मगर जुरमाना अंग्रेजी के ज़माने का ही चल रहा है| 10 रुपये के नोट की तलाश हो तो शाम ढले कचहरी में चले जाइए जितनी जरुरत हो मिल जाएगी|