आखिर जनलोकपाल बिल पर संसद में बहस के लिये मामला नियम 193 व 184 के बीच क्यों फंसा हुआ है। नियमानुसार नियम 193 के तहत नोटिस दिया जा सकता है इस पर वोटिंग नहीं हो सकती, जबकि नियम 184 के तहत चर्चा के बाद मतविभाजन का प्राविधान है।
गौरतलब है कि सरकार जनलोकपाल मुद्दे पर चर्चा से पहले टीम अन्ना से अनशन खत्म करने के बारे में आश्वासन चाहती थी. संसद में चर्चा नियम 184 के तहत मतदान का भी प्रावधान है. कामकाज से संबंधित अन्य संसदीय नियमों की तरह ही नियम 184 लोकसभा का हिस्सा है इसमें अंतर सिर्फ इतना है कि इसमें चर्चा हो जाने के बाद मतदान का प्रावधान है. ये बात अहम है कि इस मतदान में हार से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है और सरकार के वज़ूद पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है. नियम 184 के तहत चर्चा करने की कुछ शर्तें होती हैं—जैसे कि यह बहस किसी एक मुद्दे पर ही होगी. अपमानसूचक अथवा व्यंग्यात्मक लहजे का इस्तेमाल निषिद्ध होगा. अदालत में विचाराधीन मामलों पर बहस नहीं होगी. संसदीय समिति के अधीन मामले भी इस नियम के तहत नहीं लाए जा सकते. लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति से संसद सदस्य इस चर्चा में हिस्सा लेते हैं.
परंतु अब सरकार नियम 193 के तहत चर्चा कराने के लिये कह रही है। जाहिर है इससे मामला केवल सरसरी चर्चा पर ही समाप्त हो जायेगा। इसमें मत विभाजन न होने के कारण यह भी स्पष्ट नहीं हो सकेगा कि कौन राजनैतिक दल इसके पक्ष में है व कौन इसके विपक्ष में।