सदियों की ठंढी, बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
फ्ररुखाबाद: तिहाड़ के गेट के करीब अन्ना के समर्थन में लोगों का सैलाब की तसवीरें देख कर बरबस ही रामधारी सिंह दिनकर यह पंक्तियां याद आ जाती हैं। देश एक बार फिर 36 साल पुराने इतिहास को दोहराता लग रहा है। अन्ना के अनशन से राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष को अगर जेपी आंदोलन की याद आई तो यह अप्रत्याशित नहीं है।
25 जनवरी 1975 के दिन जब पटना के गांधी मैदान में जेपी ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता सिंहासन खाली करो कि जनता आती है का पाठ किया तो उन्हें सुनने के लिए एक लाख से ज्यादा लोग आए थे। उसी शाम इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी का ऐलान कर दिया था। सरकार को हो ना हो अन्ना को इतिहास का और अवाम की इस ताकत का बेहतर तौर पर पता है। सरकार को हो न हो वो इसके लिए पहले से तैयार थे, उन्हें गिरफ्तार कर सरकार ने उनकी जीत और अपनी शिकस्त पक्की कर दी।
ये महज इत्तेफाक नहीं कि अन्ना बार-बार देश की दूसरी आजादी की बात करते हैं। वो बार बार तानाशाही की याद दिलाते हैं। अन्ना को इतिहास की आवाज और अवाम के मिजाज दोनों का पता है। सरकार नहीं समझ पाई कि अन्ना की जंग सिर्फ संसद से एक बिल पारित करवाने की नहीं थी, असली मसला था अवाम को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एकजुट करना। विवादों से परे अन्ना और घोटालों में घिरी सरकार के बीच जब चुनने की बारी आई तो अवाम को अन्ना के पास आना ही था।
जब आर्थिक उदारीकरण ने गरीबों की कमर तोड़ दी है। महंगाई और बेरोजागरी से लोग बेहाल हैं। खाद्य महंगाई दर ही अभी सिर्फ 15 प्रतिशत से उपर पहुंची है। सामान्य महंगाई दर दस प्रतिशत से नीचे है। भ्रष्टाचार का दानव सर चढ़कर बोल रहा है। आम आदमी को दो टाइम खाने के लिए नहीं है। लेकिन 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये कुछ लोग ही खा गए। परंतु यहां हमारे देश में लोकतंत्र है। जनता अपना फैसला बदल सकती है। महंगाई के जिम्मेदार लोगों को बदल सकती है। लोकतंत्र की यही शक्ति लोगों को उन्मादी विद्रोह से रोकती है।
महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार यदि और बढ़ा तो आने वाले दिनों में भारत में भी वही होगा जो मिश्र और टयूनिसिया में हुआ। परंतु लगता है कि लोगों की भूख की चिंता नेताओं को नहीं, राजनीतिक दलों को नहीं। सिर्फ अपनी राजनीति और कुर्सी की चिंता है। तो फिर यही स्थिति आएगी कि सिंहासन खाली करो, जनता आती है। अभी भी सम्हलने का मौका है।