आखिर जनलोकपाल से क्यों कन्नी काट रहे हैं माननीय

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फरूखाबाद: जन लोकपाल बिल में आखिर ऐसा क्या है जो हमारे माननीय सांसद चाहे वह किसी भी राजनैतिक दल से संबद्ध हों, उनको इससे डर लगता हे। आखरि कौन सी वजह है जो देशभर में व्यापक जनसमर्थन के बावजूद केंद्र सरकार और सारे विपक्षी दल इसे बिच्छू की तरह छूने तक से कतरा रहे हैं। वह कौन से कारण हें कि हमारे माननीय जनलोकपाल विधेयक को पारित करना तो दूर इसको सदन के पटल पर रखने व इस पर बहस करने तक से कतरा रहे हैं। हमने उन कारणों की बिंदुवार पड़ताल की तो माननीय की चिंता का कारण समझ में आया, और यह भी समझ में आया कि विगत 42 वर्षों से इस बिल को क्यों पारित नहीं किया जा सका। विदित है कि लोकपाल बिल सबसे पहले 1969 में चौथी लोकसभा में पेश किया गया था। इसके बाद इसे 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 व 2008 में भी पेश किया गया। इतनी बार लोकसभा में पेश होने के बावजूद यह राज्‍यसभा तक नहीं पहुंच सका।

सरकारी लोकपाल विधेयक

जनलोकपाल विधेयक

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा। प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी भी मामले की जाँच शुरू करने का अधिकार रखता है।
सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्शदात्री संस्था बन कर रह जाएगी। जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी।
सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी।
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा। जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे।
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे। जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा। चार की कानूनी पृष्टभूमि होगी। बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा।
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति। प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, कानून और गृहमंत्री होंगे। प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे।
सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। जनलोकपाल बिल में कम से कम पाँच साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है। साथ ही दोषियों से घोटाले के धन की भरपाई का भी प्रावधान है।