हर वर्ष की भांति पूरा भारत ब्रिटिश उपनिवेश शासन से हमारी आजादी की वर्षगांठ मना रहा है। लोग ई-मेल , एसएम्एस आदि के द्वारा लोगों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें भेज रहे हैं |यह ऐसा दिन है जब हम अपने महान राष्ट्रीय नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों, जिन्होंने विदेशी नियंत्रण से भारत को आजाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्यौछावर कर दिए , को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं |
याद रहे कि हमारी आजादी की लड़ाई ‘ स्वतंत्रता-संघर्ष के इतिहास’ में एक अनोखा अभियान था , जिसमें ताकत और रक्त रंजित बल प्रयोग नहीं था बल्कि सत्य और अहिंसा के परम सिद्धांत के माध्यम से जीता गया था । जिसने पूरी दुनिया को एक नया रास्ता दिखाया था ।
भारत की आजादी का संघर्ष मेरठ के कस्बे में सिपाहियों की बगावत के साथ 1857 में शुरू हुआ। आगे चलकर 20वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस तथा अन्य राजनैतिक संगठनों द्वारा महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता का एक देशव्यापी आंदोलन चलाया गया। महात्मा गांधी ने समय के सर्वाधिक विरोधी अभियानों में देखे गए हिंसापूर्ण संघर्ष के विपरीत सविनय अवज्ञा अहिंसा आंदोलन को सशक्त समर्थन दिया। उनके द्वारा विरोध प्रदर्शन के कुछ तरीकों में शामिल थे मार्च पास्ट, प्रार्थना सभाएं, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और भारतीय वस्तुओं को प्रोत्साहन।
इन विधियों की सरलता को भारतीय जनता ने समर्थन दिया तथा स्थानीय अभियान शीघ्र ही राष्ट्रीय आंदोलन बन गए। इनमें से कुछ मुख्य आयोजन असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, नागरिक अवज्ञा अभियान और भारत छोड़ो आंदोलन थे। जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब उप निवेश शक्तियों के नियंत्रण में अधिक समय तक नहीं रहेगा और ब्रिटिश शासकों ने भारतीय नेताओं की मांग को मान लिया। जल्दी ही निर्णय लिया गया कि यह अधिकार भारत को सौंप दिया जाए और 15 अगस्त 1947 को भारत को यह अधिकार सौंप दिया गया।
14 अगस्त 1947 को रात 11.00 बजे संघटक सभा द्वारा भारत की स्वतंत्रता को मनाने की एक बैठक आरंभ हुई, जिसमें अधिकार प्रदान किए जा रहे थे। जैसे ही घड़ी में रात के 12.00 बजे भारत को आजादी मिल गई और अब यह एक स्वतंत्र देश बन गया। तत्कालीन स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण ‘नियति के साथ भेंट’ दिया।
“जैसे ही मध्य रात्रि हुई, और जब दुनिया सो रही थी भारत जाग रहा होगा और अपनी आजादी की ओर बढ़ेगा। एक ऐसा पल आता है जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर जाते हैं. . . क्या हम इस अवसर का लाभ उठाने के लिए पर्याप्त बहादुर और बुद्धिमान हैं और हम भविष्य की चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं?”