जिस प्रकार गिद्ध हजारो किलोमीटर उचाई से उड़ते हुए भी धरती पर पड़े मुर्दे को देख सकता है वैसे ही नेता सैकड़ो हजारो किलोमीटर दूर से मुद्दे को सूंघ सकता है| वोट और चुनाव के समय ये शक्ति बढ़ जाती है| वैसे शक्ति कम कभी नहीं होती, मगर जो कभी कम दिखती है वो उस नेता की मक्कारी होती है| मक्कारी भी एक प्रकार का नेता का “आवश्यक बल” है जो उसकी सफलता/विफलता में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है| बात मुर्दे और मुद्दे की तलाश की थी सो सुनिए फर्रुखाबादी नेता भी मुर्दे की तलाश में भटकते रहे है ताकि उस पर राजनीति कर चंदा या वोट दोनों में से जो भी हासिल हो रहा हो उसे पाने से नहीं चूकते|
ये फर्रुखाबादी नेता कभी सिटी हॉस्पिटल के इर्द गिर्द मडराते थे जो दिशा बदल कर डॉ जे एम् वर्मा के आर के हॉस्पिटल के इर्द गिरफ़ मडराने लगे| फिर समय बदला इन दोनों अस्पतालों ने नेताओ के मर्म को जान लिया और मुर्दा नेता से छिपाना शुरू कर दिया तो नेताओ ने डॉ के एम् दिवेदी के हॉस्पिटल की तरफ रुख कर लिया| वक़्त बदलते अब शहर में सबसे ज्यादा रकम लगाकर नया ट्रामा सेंटर नाम का अस्पताल खड़ा हो गया जिसे प्रयाग नारायण हॉस्पिटल कहते है, ये फर्रुखाबादी नेता अब इस अस्पताल के विवादित मुर्दे पर अपनी चोच साफ़ कर गिद्ध नजर से मुर्दे के जिन्दा बचे वोट और हॉस्पिटल की तिजोरी पर चंदे के लिए नजर गडाते दिखने लगे हैं|
गत पिछले 15 साल में फर्रुखाबादी नेताओ के बदलते आयाम आँखों देखे है| सबसे पहले आवास विकास क्षेत्र के प्राइवेट सेक्टर का सिटी हॉस्पिटल बना| खाद और सीमेंट के व्यवसायी स्व प्रदीप गंगवार और मनोज गंगवार ने इस हॉस्पिटल को बनबाया| चंदे के कई डॉक्टर इसमें अपनी काली कमाई लगा हिस्सेदार बने बाद में विवाद होने पर एक एक कर अलग होते चले गए|यतार्थ तो ये है जीवन और मौत पर किसी का जोर नहीं चलता मगर कभी कभी विवाद मौत के कारणों को लेकर होता रहता है| ऊपर वाले के खाते में ये दोनों समय निर्धारित हैं| लेकिन आसमयिक मौत पर किसी के प्रियजन के चले के बाद आक्रोश भडकना इस पेशे में लगे लोगो के लिए सामान्य सी बात है| कभी किसी अस्पताल में लापरवाही के कारण मौत का हो जाना या किसी की मौत के बाद भुगतान प्राप्त करने के लिए मुर्दे को परिजनों को न सौपना, ऐसी घटनाएं अक्सर होती रही है| और इन्ही घटनाओं पर नेता, मीडिया और पुलिस अपनी चोच साफ़ करते रहे|
नया अस्पताल खोलने वाला बेचारा चारो तरफ से घिरा होता है| काला धन को सफ़ेद में करने वाले हिस्से पर इनकम टैक्स की नजर होती होती| बाईपास कर बिजली इस्तेमाल करने में बिजली विभाग कि नजर| मुसीबत में फसने पर नेता और पुलिस की नजर होती है| गैर मानको पर हॉस्पिटल चलाने पर स्वास्थ्य विभाग भी आंखे तरेरता है| हॉस्पिटल की नेकनामी और बदनामी करने का ठेकेदार मीडिया भी बीच बीच में गुर्राता है| धीरे धीरे हॉस्पिटल का मालिक इनकम टैक्स, पुलिस, नेता, मीडिया और स्वास्थ्य विभाग सबसे डील करने के गुर सीख लेता है और इन सबको घास डालना बंद कर देता है तो ये सभी गिद्ध प्राणी नए ठिकाने की तलाश में निकल पड़ते हैं| कुछ का महीना बंध जाता है तो कुछ त्योहारी पर संतुष्ट होने लगते है| इन सब के बीच जो नेता है वो भी अपने लिए कुछ न कुछ तलाश लेते है, परिवर्तन उनका भी हो जाता| कुछ सत्ता से पैदल होते ही दंतविहीन हो जाते हैं तो कुछ खुद की पहुच कुंद पड़ते ही चुपचाप घोसले में घुस जाते हैं| इसे “जिसकी लाठी उसकी भैस” भी कह सकते है|
बात नेताओ की चल निकली है तो सुनिए जब नेता किसी मुर्दे के विवाद में हॉस्पिटल में पहुचता है तो कभी उस मुर्दे का भला नहीं हुआ| अलबत्ता नेताजी चमचमाते हॉस्पिटल की तरफ से पैरवी करते हुए मुर्दे के परिजन को कुछ सहायता धनराशी दिलवाकर रफा दफा करते रहे और उसके जाने के बाद उस हॉस्पिटल से जरुरत के हिसाब से अपना काम (कभी नगदी वसूल तो कभी मुफ्त इलाज) निकालते रहे|
किसी जमाने में इन फर्रुखाबादी नेताओ का जमावड़ा छोटी छोटी घटनाओ पर डॉ के एम् दिवेदी के यहाँ भी लगता था| बात बात पर दबंग और कद्दावर नेता महगी गाडियो से हॉस्पिटल पहुच मरीज और डॉक्टर के बीच समझौता कराते दिखते थे| वही नेता और वही अंदाज केवल अस्पताल बदलते रहे| ये कभी डॉ आर के हॉस्पिटल के रहनुमा बनने का प्रयास करते तो कभी सिटी हॉस्पिटल के| आजकल इन नेताओ की नजर आवास विकास तिराहे पर स्थित एक नए नवेले हॉस्पिटल पर है| पिछले दिनों दो बड़ी घटनाओ में इन फर्रुखाबादी नेताओ ने जिस तरह से पीड़ित को दस बीस हजार दिलाकर मामला रफा दफा कराया और उसके बाद ये नेता एक एक कर वहां मौजूद मीडिया को अपना बखान सुनाने में लगे थे- उन्होंने निपटा दिया उसे देख इस इलाके में हुए पिछले 15 साल की तस्वीर साफ़ हो चली|| पिछले 15 साल में जाने कितने निपट गए और आने वाले समय में निपटेंगे? फिर नया हॉस्पिटल पुराना हो जायेगा| हॉस्पिटल मालिक परिपक्व हो जायेगा- नेता, पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, इनकम टैक्स, बिजली विभाग, मीडिया और दबंगों के तीज त्योहारी खाते खुल जायेंगे| मगर जो नहीं होगा वो है- “जमीर बेच कर चल रहे चिकित्सा का व्यवसायीकरण बंद कर सेवा के रूप में स्वीकारने का आत्मबल”