रक्षा बंधन हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। कालांतर में रक्षा बंधन का पर्व राखी के नाम से जाना जाने लगा। राखी का त्योहार कब से मनाया जा रहा है इसके बारे में कुछ स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता लेकिन भविष्यपुराण में वर्णित एक कथा में इसका एक उदाहरण अवश्य मिलता है। यह कथा इस प्रकार है-
भविष्यपुराण की एक कथा है कि एक बार देवता और दानवों में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ, पर देवता विजयी नहीं हुए । तब इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास गए । गुरु बृहस्पति ने कहा – युद्ध रोक देना चाहिए। तब उनकी बात सुनकर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने कहा कि कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है, मैं रक्षासूत्र तैयार करूंगी। जिसके प्रभाव से इनकी रक्षा होगी और यह विजयी होंगे। इंद्राणी द्वारा व्रत कर तैयार किए गए रक्षासूत्र को इंद्र ने स्वस्तिवाचन पूर्वक ब्राह्मïण से बंधवाया। इस रक्षा सूत्र के प्रभाव से इन्द्र के साथ समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
क्या है रक्षा बंधन का अर्थ?
श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है। रक्षा-बंधन दो शब्दों से मिल कर बना है- रक्षा और बंधन। रक्षा का अर्थ है बचाना, सावधानी, सुरक्षा और बंधन का अर्थ है जिससे बांधा जाए। अर्थात् सुरक्षा के भाव से किसी से जुडऩा रक्षाबंधन है।
संस्कृति शब्द रक्षिका का अपभ्रंश शब्द राखी है। इसका अर्थ होता है रक्षा करना। हमें सुरक्षा मिलती है- प्रज्ञा से, प्रेम से, पवित्रता से। इन पर्वों पर हम वेद शिक्षा आरंभ करते हैं, यज्ञोपवीत पहनते हैं और रक्षासूत्र बंधवाते हैं। श्रावण पूर्णिमा को मनाए जाने वाला यह त्योहार भारतीय लोक जीवन में भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है।
किंतु इस दिन मात्र बहन ही भाइयों को राखी बांधती है, ऐसा आवश्यक नहीं है , बल्कि त्योहार मनाने के लिए धर्म के प्रति आस्था होना आवश्यक है। इसलिए इस पर्व में दूसरों की रक्षा के धर्म-भाव को विशेष महत्व दिया गया है। इस प्रकार यह दिन हमारी ज्ञान प्राप्ति की इच्छा और विचारों की पवित्रता के भाव को व्यक्त करता है।