फर्रुखाबाद: उत्तर प्रदेश में ऐसे ऐसे अफसर जिला चला रहे है जिन्हें अपने विभाग से सम्बन्धित नियम कानून तक नहीं मालूम| जनता को सुविधा और व्यवस्था क्या ख़ाक दिला पाएंगे| तो क्या क्या उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार ने ऐसे अफसरों को जिलों में केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और रात दिन जनता से अवैध कमाई के लिए जिलों में भेजा है? अगर मारना ही है तो बेहतर होगा कि आम जनता को यू तड़पा तड़पा कर मारने की बजाय सरकार एक साथ झटके से आम जनता का काम तमाम कर पर रहम करे और फिर उन मरे हुए लोगो की बची सारी सम्पत्ति, धन दौलत, मकान जमीन सब पर राज करे|
नजीर देखिये- आम गरीब और कमजोर वर्ग को बेहतर शिक्षा के लिए केंद्र सरकार ने कानून बनाया और उसको चमचमाता नाम दिया- “शिक्षा का अधिकार”| देखने में और सुनने में बड़ा मजबूत अधिकार दिखता है मगर हकीकत में दो साल पहले बना ये कानून अभी फाइलों में कैद है| दिल्ली से लेकर पूरे भारत में जिनके कंधो पर इसे लागू कराने की जिम्मेदारी है वे इस कानून को लागू न कराने की कमाई खाने में लग गए है| कपिल सिब्बल जिनके मंत्र्यालय का ये विभाग है उनके मंत्र्यालय में इस कानून से सम्बन्धित जानकारी मांगने पर वही जानकारी दी जा रही है जो देश के शिक्षा माफिया चाहते है, शिक्षा के अधिकार की पहली विकेट वहीँ से उखड रही है| कभी मौका मिले तो मंत्रयालय के अफसरों और सचिवो को फोन लगाकर तस्दीक कर लीजिये| खबर तो ये भी है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्यूंकि मंत्रियो के भी दो चार स्कूल जो हैं|
बात राज्यों की कर लेते है| उत्तर प्रदेश में पहले तो उत्तर प्रदेश सरकार लम्बे समय तक इस कानून को लागू करने में केंद्र के साथ गिल्ली डंडा खेलती रही| कभी केद्र और राज्य के खर्च के पैमाने को लेकर तो कभी संशाधन को लेकर| देर सवेर मजबूरी में लागू करना पड़ा तो उनके लखनऊ से जिलों में चिट्ठी भेज काम पूरा हो गया| अब जमा इंटरनेट-मेल का है| ये आदेश साल भर पहले मेल से भेजे गए| केवल धन उगाही में लगे जिलों के ज्यादातर बेसिक शिक्षा अधिकारिओ ने ये भी नहीं जान पाए कि ये मेल कब आई| प्रदेश के ज्यादातर बेसिक शिक्षा अधिकारियो को ये भी नहीं मालूम कि शिक्षा के अधिकार में क्या क्या नियम और कानून है और उन्हें कैसे लागू किया जाना है|
बात फर्रुखाबाद के बेसिक शिक्षा अधिकारी कौशल किशोर की कर लेते हैं| उनसे जब जेएनआई ने सवाल जबाब किये तो ये जान कर हम भी चौक गए कि इन साहब को तो शिक्षा के अधिकार की ABCD भी नहीं मालूम ये जनाब बच्चो को शिक्षा का अधिकार कैसे दिलाएंगे| जो उनके उत्तर मिले उसे एक बार आम जनता भी देख ले और फैसला करे कि क्या ऐसे अफसरों को जिला का शिक्षा अधिकारी बनाना जनता के हित में है-
१- जेएनआई का सवाल- शिक्षा के अधिकार कानून के तहत प्राइवेट स्कूल चाहे वो किसी भी संस्था से मान्यता लेकर चल रहे हो क्या वहां स्कूल मैनेजमेंट कमेटी का गठन हो गया है|
कौशल किशोर (जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी)- एक आदेश कुछ दिनों पहले आया था जिसमे परिषद् के सभी विद्यालयों के लिए एबीएसए को लिख दिया गया है कि हे स्कूल में स्कूल मैनेजमेंट कमिटी गठित करा दी जाए|
निष्कर्ष- सवाल जिले में चल रहे प्राइवेट पब्लिक गैर मान्यता वाले सरकारी स्कूल के लिए पूछा था, जनाब ने जबाब दिया उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूल के बारे में| (क्यूंकि शिक्षा के अधिकार के तहत सभी प्राइवेट स्कूलों में भी स्कूल मैनेजमेंट कमिटी गठित होनी है नए सिरे से चाहे वो सीबीएसइ बोर्ड से मान्यता लिए हो चाहे वो उत्तर प्रदेश शिक्षा परिषद् से| और सभी का रिकार्ड जिला शिक्षा अधिकारी के यहाँ होना आवश्यक है जिसे जनता दर्शन के लिए रखा जाना है| उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा में जिला शिक्षा अधिकारी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी होता है)
दूसरी बात जो जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने बताई कि परिषदीय विद्यालयों में इसका गठन करने के लिए लिखा गया है| जनाब को ये भी नहीं मालूम कि अंतिम तारीख 31 जुलाई 2011 थी| सवाल जबाब हुआ 3 अगस्त 2011 को| यानि कि अब तक कोई गठन नहीं हुआ या यूं कहे उन्हें नहीं मालूम|
2- जेएनआई का सवाल- शिक्षा का अधिकार कानून कहता है कि हर प्राइवेट स्कूल कम से कम 25 प्रतिशत बच्चो को मुफ्त शिक्षा प्राप्त कराएगा| क्या फर्रुखाबाद के प्राइवेट स्कूल्स में ऐसा नियम का पालन करा दिया गया है|
कौशल किशोर- हाँ ऐसा कुछ सुनने में आया था कि एक तिहाई बच्चो को मुफ्त शिक्षा देने के लिए विद्यालय वाध्य होंगे| अब कोई आदेश वादेश आये तब देखेंगे| अभी तक तो कोई आदेश आया नहीं| यही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि वो फरबरी में जिले में आये है उनसे पहले आदेश आया होगा तो उन्हें पता नहीं|
निष्कर्ष- जनाब कहते है कि अभी तक कोई आदेश नहीं आया| आपको बता दे कि कौशल किशोर फर्रुखाबाद में भले भी पिछले बेसिक शिक्षा अधिकारी आर एस पी त्रिपाठी के विकेट गिरने के बाद आये हो मगर ये जहाँ से आये थे वहां भी ये जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद से ही आये थे| और न भी उस पद से आये हो उस विभाग के तो है जो शिक्षा के लिए बना है क्या अफसरों को अपने विभाग के किसी कानून और नियम के बारे में इतनी भी जानकारी नहीं होनी चाहिए?
तो जनाब बीएसए फर्रुखाबाद के मुताबिक जनपद के प्राइवेट स्कूल पब्लिक ने अभी तक शिक्षा के अधिकार वाले कानून के तहत अपना काम करना शुरू नहीं किया है|
3- जेएनआई का सवाल- क्या बच्चो से गर्मियों की छुट्टियो के दौरान ट्यूशन फीस ली जानी चाहिए? क्यूंकि जिन लम्बे समय के लिए बच्चो को पढ़ाया ही नहीं गया उन दिनों की फीस उनके अभिभावक क्यूँ दे? सवाल ख़ास तौर से प्राइवेट स्कूल के लिए पूछा गया जिनकी मान्यता सीबीएसइ बोर्ड या आईसीएसइ बोर्ड देता है|
कौशल किशोर- इस बारे में मुझे जानकारी नहीं है| ऐसा हुआ है तो लिख कर दीजिये जाँच करा लेंगे?
निष्कर्ष- उनसे जानकारी माँगी थी, जनाब जाँच की बात करने लगे| शिकायत की बात सुनते ही अफसरों के मुह जैसे पानी आने लगता है| शिकायत आएगी तो जाँच होगी| जाँच होगी तो मालदार पार्टी से कुछ माल बटोरने का नया मौका मिल जायेगा? ये है शिकायत और जाँच का खेल| सब कुछ कहा मगर ये स्पष्ट नहीं कर पाए कि नियम क्या है| जबकि सीबीएसइ बोर्ड हो या आईसीएससी ये शिक्षा और परीक्षा के नियम तो बनाते है मगर फीस लेने के मापदंड और तरीके सम्बन्धित राज्य सरकार निर्धारित करती है ऐसा नियम स्पष्ट इन बोर्डो ने अपनी मान्यता देने की नियमवाली में लिखा है| मगर उत्तर प्रदेश के अफसरों को नहीं मालूम कि नियम और कानून क्या है|
मालूम भी कहाँ से होगा रात दिन शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की बजाय दिमाग तो कुर्सी पर जमे रहने और मंत्रो और प्रदेश स्तर के अधिकारियो के लिए माल बटोरने में लगा रहता है|
जनता अपनी राय लिखे-