फर्रुखाबाद: महात्मा गांधी इस देश के राष्ट्रपिता थे। उनके लंबे राजनैतिक अनुभव व इस अनुभव के आधार पर प्राप्त उपलब्धियों को नकारा नहीं जा सकता। यही कारण है कि गांधी जी के जीवन के तीन “सूत्र बुरा मत देखो, बुरा मत सुना, बुरा मत कहो” आज भी कहीं न कहीं लिखे दिख जाते हैं। यह अलग बात है कि आज लोगों का इस पर उतना विश्वास नहीं है जितना गांधी जी को था। परंतु हमारे जिलाधिकारी ने कुछ विवशतावश और कुछ विश्वासवश इस पर भरोसा किया और एक बार फिर साबित कर दिया कि गांधीजी आज भी उतने ही प्रासांगिक हैं, जितना आज से 70 वर्ष पूर्व थे। डीएम साहब दुर्घटना में घायल होने के बाद से लगभग दो माह से अपने कैंप कार्यालय से ही जिले की कमान संभाले हैं, और इस दौरान अभी तक कोई बड़ी समस्या नहीं आयी है। बड़े बड़े अधिकारी जिनके निरीक्षण के लिये आमतौर पर डीएम आगे पीछे चक्कर काटा करते हैं, निरीक्षण करके न सिर्फ लौट गये बल्कि जाते जाते डीएम साहब को उनकी कार्यकुशला के लिये बंगले पर ही जाकर बधाई भी देकर चले गये। गांधीवाद जिंदाबाद।
जिलाधिकारी की सांकेतिक उपस्थिति मात्र से ही जनपद के सभी कामकाज सुचारु रूप से चल रहे हैं। यह तब है जब जनपद में कोई नगर मजिस्ट्रेट नहीं है। अपर उपजिलाधिकारी रविंद्र कुमार को भी उनके स्थानांतरण के क्रम में कार्यमुक्त किया जा चुका है। उपजिलाधिकारी सदर अनिल ढींगरा भी स्थानांतरणाधीन है। उल्लेखनीय है कि इस दौरान कानून व्यवस्था की भी कोई स्थिति उत्पन्न नहीं हुई। अपनी चिकित्सीय विवशतावश के कारण डीएम साहब दौरो व निरीक्षणों पर नहीं जा पा रहे हैं। विवशतावश ही सही गांधीवाद का पहला सूत्र “बुरा मत देखो” का पालन तो ही जाता है। आम जनता और पत्रकारों को भले ही उनके महीनों से दर्शन न हुए हों, सीडीओ व एडीएम के साथ उनके कैंप कार्यालय में आयोजित गंभीर बैठकों के चित्र अवश्य समाचार पत्रों में महीने में कम से कम एक दो बार तो छप ही जाते हैं। अब जाहिर है कि इन अधिकारियों की भी स्वास्थ्य लाभ कर रहे जिलाधिकारी को अधिक कुछ बताकर परेशान करने की मंशा नहीं होती। आम जनता व पत्रकारों से न मिलने के कारण वह गांधीवादी सूत्र संख्या दो “बुरा मत सुनो” का पालन कर पाते हैं। विकास भवन के अधिकांश कामचोर टाइप अधिकारी अपने निठल्लेपन पर पर्दा डालने के लिये सरकारी फाइलों के कैंप कार्यालय पर डंप होने के बहाने बनाते सुने जाते हैं, परंतु यदि जनपद मे सबकुछ ठीक ठाक है तो इन अधिकारियों के बहाने स्वयं ही झूठे साबित हो जाते हैं। ऐसे में जाहिर है जिलाधिकारी के लिये किसी को बुरा कहने की आवश्यकता ही नहीं है। सो गांधीवाद का तीसरा सूत्र बुरा मत कहो का पालन भी हो रहा है।
इसके बावजूद कुछ बिंदु ऐसे अवश्य हैं जिन पर जिलाधिकारी की सीधी नजर न होने के कारण कुछ भ्रष्ट अधिकारी आसानी से मनमानी कर रहे हैं। मासूमों के मध्याह्न भोजन बनाने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं के अनियमित चयन और उनके द्वारा किये जारहे भ्रष्टाचार का मध्याह्न भोजन प्राधिकारण के उपनिदेशक संतोष कुमार द्वारा भंडाफोड़ का दिये जाने के बावजूद उनके दोबारा चयन की पत्रावली विगत एक वर्ष से विकास भवन की किसी अलमारी में डंप पड़ी है। इस दौरान तीन सीडीओ बदल चुके हैं। परंतु नये चयन की कार्रवाई नहीं हो सकी है। राजनैतिक संरक्षण प्राप्त कुछ भ्रष्ट संस्थायें मूंछों पर ताव दे रहीं हैं।
विगत वर्षों में की अनियमितताओं को छिपाने के लिये की गयी कटौती के चलते माह जुलाई में जो खाद्यान्न स्कूलों को भेजा गया वह एक सप्ताह भी नहीं चल सका। विद्यालय जाने वाले मासूम भूखे ही घर लौट रहे हैं।
शिक्षकों के स्थानांतरण समायोजन के लिये विगत एक सप्ताह से अधिक से सौदेबाजी चल रही है। भूल सुधार के नाम पर रोज शाम को शिक्षा विभाग के अधिकारी प्रस्ताव में “फ्लूड” (सफेदा) लगा रहे हैं। जनपद के लगभग आधा सैकड़ा पूर्व माध्यमिक विद्यालय बंद पड़े हैं। इनमें छात्र नामांकन तक की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। लोक निर्माण विभाग के खातो पर रोक के चलते मनरेगा तक के काम बंद पड़े हैं। शराब की ब्लैक के नाम पर बाजार में खुली लूट जारी है। विवाह अनुदान, परिवारिक लाभ योजना व वृद्धावस्था/विधवा पेंशन के नाम पर लाभार्थियों के चयन के नाम पर खुला खेल फर्रुखाबादी जारी है। थाने और चौकियों की नीलामी की सी स्थिति है। बालू खनन के के नाम पर धड़ल्ले से अवैध वसूली जारी है। स्वास्थय सेवायें ध्वस्त पड़ी है। पीड़ित शिकायते लेकर तो आते हैं परंतु उनपर कार्रवाई क्या होती है, यह कोई नहीं जानता। जिलाधिकारी की स्वच्छ छवि और उनके साथ हुए हादसे के कारण जनता की सहानुभूति उनके साथ है। शायद यही कारण है कि जनता धैर्य से काम ले रही है। परंतु यह सब लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य गांधीवाद को नीचा दिखाना कदापि नहीं है।