-फंसते दिखे तो पत्रावलियां ही गायब दिखा दीं:
फर्रुखाबाद: आम आदमी की शिकायत अव्वल तो कोई सुनता नहीं और यदि वह गले ही पड़ जाये या किसी आला अधिकारी तक पहुंच जाये तो मामला जांच के नाम पर ठंडे बस्ते में पड़ जाता है। और किस्मत से अगर जांच में कोई अधिकारी ईमानदारी से जांच कर प्रकरण में कार्रवाई की संस्तुति कर दे तो उस पर कार्रवाई फाइलों में डंप हो जाती है। ताजा प्रकरण जनपद के दो सर्वाधिक चर्चित विभागों बेसिक शिक्षा व बाल विकास विभाग से संबंधित हैं। बेसिक शिक्षा विभाग ने तो जिलाधिकारी के निर्देश पर हो रही जांच को संबंधित पत्रावलियों को गायब बता कर मामला ही समाप्त कर दिया। रही बात बाल विकास विभाग की सो जांच में ढेरों अनियमित्ताओं की पुष्टि के बावजूद उस पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब इसे व्यवस्था कहें, या अधिकारियों द्वारा जनता की शिकायतों के निस्तारण का नायाब तरीका समझें।
बेसिक शिक्षा विभाग के एक सेवानिवृत शिक्षक की विधवा पत्नी अपनी पेंशन के लिए एड़ियां रगड़ रगड़ कर थक गयी तो उसने थक हार कर आत्मदाह की घोषणा कर दी। मीडिया में खबरें आयीं तो प्रशासन के कान पर कुछ जूं रेगी। जिलाधिकारी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश मुख्य विकास अधिकारी को सौंप दिये। सीडीओ ने जांच अपने मातहत अधिकारी जिला विकास अधिकारी को दे दी। डीडीओ अशोक कुमार सिंह चंद्रौल ने जिलाधिकारी के आदेश के क्रम में जांच शुरू की। वह बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्याल पहुंचे तो बीएसए ने उनको भाव देना तो दूर कार्यालय से ही चले गये। श्री चंद्रौल उनके कार्यालय में बाकायदा लिखित रुप से संदर्भित जांच और उससे संबंधित अभिलेखों की मांग के लिये पत्र दे आये। इस बात को लगभग दो माह होने को हैं। आज तक बेसिक शिक्षा अधिकारी ने एक भी वांछित अभिलेख नहीं दिया है। श्री चंद्रौल ने बताया कि बीएसए कार्यालय से जानकारी मिली है कि अभिलेख गायब है। उन्होंने बतायाक कि इस संबंध में जिलाधिकारी को तदनुसार अवगत करा दिया जायेगा।
बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की भर्ती के संबंध में मनमानी और वसूली की शिकायतें की गयी। कई बार शिकायतों के बाद शिकायतकर्ता एक बसपा के छुटभैये नेता के संपर्क में आया तो उसने बात डीएम तक पहुंचा दी। डीएम साहब ने तत्काल जांच के आदेश कर दिये। संयोग यह कि यह जांच भी सीडीओ के माध्यम से जिला विकास अधिकारी को ही मिल गयी। उन्होंने जांच शुरू की। पहले तो महीनों तक अभिलेख उपलब्ध कराने को लेकर ही उहापोह की स्थिति बनी रही। मामला चूंकि विकास भवन से ही संबंधित था सो दो तीन माह में फाइले मिल गयीं। जांच हुई तो उसमे अनियमित्ताओं और मनमानियों का भानुमती का ऐसा पिटारा खुला लोगों ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं। जांच के बाद भी मामला न खुलता परंतु शिकायतकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत जोंच रिपोर्ट मांग कर सार्वजनिक कर दी। मजे की बात तो यह है कि समाचार पत्रों में जांच रिपोर्ट का एक एक शब्द छप जाने के बाद भी आज तक प्रकरण में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। शिकायतकर्ता बेचार मजबूर है, डीएम साहब बीमार हैं, उनसे किसी की मुलाकात नहीं हो सकती, बेचार जाये तो जाये कहां?