फर्रुखबाद: जिलाधिकारी के निर्देश पर की गयी जांच में बालविकास एवं पुष्टाहार विभाग में गोरखधंधे का खुलासा हो गया है। इस बात की पुष्टि हो गयी है कि आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की नियुक्ति में शासनादेशों की जमकर धज्जियां उड़ायी गयीं। मनमानी और गुपचुप ढंग सी गयी नियुक्तियों में जनसामान्य को आवेदन करने तक से वंचित कर दिया गया। मजे की बात है कि विज्ञापन प्रकाशन के छह माह बाद गलत आरक्षण चार्ट को जिलाधिकारी को विश्वास में लेकर अनुमोदित करा लिया गया।
बालविकास एवं पुष्टाहार विभाग का नाम आते ही आम आदमी के सामने बंद पड़े आंगनबाड़ी केंद्रों व मासूम कुपोषित बच्चों के लिये आने वाला कीमती पुष्टाहार के जानवरों के चारे के तौर पर उपयोग होने की तसवीर सामने आ जाती है। विभाग के अंदर केंद्र बंद रखने के लाइसेंस के तौर पर अधिकारियों द्वारा अल्प वेतन भोगी सहायिका व कार्यकत्रियों के शोषण की कहानी अलग है। हाल ही में बच्चों के लिये केंद्रो पर पका पकाया गर्मा गर्म भोजन दिये जाने की योजना के अंतर्गत आने वाली धनराशि से नगद वसूली की दास्तां तो और भी रोचक है। सबसे बड़ा खेल विभाग में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की भर्ती में होता है।
हाल ही में चयन के विषय में जिलाधिकारी को शिकायतें मिली थीं व उन्होंने इस संबंध में जांच के आदेश दिये थे। आंगनबाड़ी चयन में अनियमित्ता की शिकायतों के संबंध में जिलाधिकारी के आदेश पर जिला विकास अधिकारी अशोक कुमार सिंह चंद्रौल द्वारा की गयी जांच में जो तथ्य सामने आये हैं वह बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की ख्याति के एन अनुरूप ही हैं। तीन पेज की विस्तृत जांच रिपोर्ट के अंत में निश्कर्ष के तौर पर डीडीओ ने जो कुछ लिखा है वह काफी चौंकाने वाल है। उन्होंने लिखा है कि “उपरोक्त से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि आंगनबाड़ी केंद्रों एवं मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों हेतु कार्यकत्री व सहायिका के चयन में अपनाई गयी प्रक्रिया शासनादेशों में निहित प्राविधानों के प्रतिकूल पायी गयी तथा रिक्तियों का व्यापक प्रचार प्रसार ग्राम वार मजरा सहित आरक्षण का उल्लेख करते हुए नहीं किया गया, जिससे जनसामान्य आवेदन करने से वंचित रह गया। अत: संपूर्ण चयन प्रक्रिया व्यापक रूप से जनहित में निरस्त करने के योग्य है।”