फादर्स डे: पिता की बदलती छवि

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संतान के लिए पिता के प्यार और काम को हमेशा मां के बाद ही आंका जाता है। बच्चे के लिए भी पिता का स्थान मां के बाद ही आता है। असल में, कुदरत ने भी इस मामले में महिलाओं को ज्यादा अधिकार और जिम्मेदारी दी है। गर्भधारण की सबसे बड़ी जिम्मेदारी कुदरत ने स्त्री को दी है, पुरुष को नहीं। यही वजह है कि मां का स्थान सर्वोपरि होता है।

मां के साथ बच्चे की भावनाएं जुड़ी होती हैं। जिस तरह मां के लिए कहा जाता है कि पूत कपूत हो सकता है लेकिन माता कुमाता नहीं होती, ऐसी कोई कहावत पिता के लिए नहीं बनी है। मां से नफरत करने वाली संतान शायद ही आपको कोई मिले लेकिन ऐसे कई लोग आपको मिल जाएंगे, जिनके मन में पिता के प्रति नाराजगी है।

दरअसल इसके पीछे कारण भी हैं। पारंपरिक रूप से देखें तो पुरुष घर से बाहर रहते थे। उन्हें कठोर और अनुशासन प्रिय माना जाता रहा है। पिता की छवि कुल मिलाकर बहुत ही प्रैक्टिकल होती है। जब बच्चा कोई गलती करता है तो वह मां के आंचल के नीचे शरण ले सकता है और उसके मन में पूरा यकीन रहता है कि मां उसे कुछ नहीं कहेगी।

दरअसल पिता खुद समाज में रोज संघर्षों से रूबरू होता है और उसी समाज में अपने बच्चे को जीने लायक बनाता है। उसे यह चिंता रहती है कि जिन संघर्षों से वह गुजरा है उनका सामना बेटा कर पाएगा या नहीं। पिता का प्यार दूसरी तरह से जाहिर होता है। वह अपने बेटे को कंफर्टेबल नहीं होने देता। मां बच्चे के सिर पर हाथ फेरती है, उसकी पसंद का खाना बनाती है, उसे लोरी सुनाकर सुलाती है।

इस व्यवहार में बच्चा अपने आप को कंफर्टेबल महसूस करता है, जबकि पिता के साथ ऐसा कुछ नहीं होता। पिता के प्रेम का प्रस्तुतिकरण मां से एकदम अलग होता है। इसकी भी वजह है। बेटे से हर पिता की अपेक्षा जुड़ी होती हैं, जबकि बेटी से उसकी कोई अपेक्षा नहीं होती। हर पिता इस बात को लेकर भावुक रहता है कि बेटी तो पराया धन है।

इस वजह से कहीं न कहीं पिता अपने बेटे के लिए ज्यादा प्रैक्टिकल हो जाता है। यह एक आम ह्यूमन टेंडेंसी है कि जब आपको कोई व्यवहारिक सवाल पूछेगा तो वह सवाल और इंसान दोनों ही आपको पसंद नहीं आएंगे।

दरअसल पिता अपने बेटे को जीवन संघर्ष के लिए तैयार करते हुए उससे ऐसे ही व्यवहारिक सवाल करता है इसी वजह से दोनों के बीच तनाव पैदा होता है। अब देश के सोशल फैब्रिक में काफी परिवर्तन आ रहा है। महिलाएं बाहर जाकर काम करने लगी हैं।

मां भी अब अपने बच्चों से व्यवहारिक सवाल करने लगी है। वहीं पिता के बच्चों के प्रति प्रेम के प्रस्तुतिकरण का तरीका भी बदलने लगा है। इस वजह से यह रिश्ता भी अब ज्यादा माइल्ड हो गया है। अब पिता का रिश्ता भी अपने बच्चे से यूनीक होता है।

पिता का रोल हमेशा से बहुत मुश्किल रहा है। हमेशा अनुशासन पसंद और कठोर दिखने वाले पिता की रिलेशनशिप में अब टेंडर, लव और केयर भी आ गया है।

मैं हमेशा से सोचता था कि अगर पिता के रोल में ममत्व भी जुड़ जाए तो वह कंप्लीट हो जाएगा और अब ऐसा होने लगा है। पिता की पारंपरिक छवि काफी हद तक बदल रही है और यह सकारात्मक बात है।