फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो)छठ पूजा प्रकृति को समर्पित पर्व है जिसमें सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। लोक आस्था का यह महापर्व छठ हर वर्ष कार्तिक महीने में मनाया जाता है। इस पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन महिलाएं (व्रती) गंगा समेत पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। सुविधा न होने पर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करते हैं। इसके बाद सूर्य देव और कुल की देवी की पूजा करती हैं। इसके बाद भोजन ग्रहण करती हैं। भोजन में अरवा चावल की भात, चने की दाल और कद्दू की सब्जी खाती हैं।
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चुतर्थी तिथि 05 नवंबर को देर रात 12 बजकर 15 मिनट तक है। व्रती महिलाएं अपनी सुविधा अनुसार समय पर स्नान-ध्यान कर सूर्य देव की पूजा-उपासना कर सकती हैं। इसके बाद चावल, दाल और सब्जी भोजन में ग्रहण कर सकती हैं। नहाय-खाय के साथ ही छठ पूजा की शुरुआत होती है। इसके
अगले दिन खरना मनाया जाता है। वहीं, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। जबकि, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
छठ पूजा की तिथियां
नहाय खाय: पांच नवंबर छठ पूजा के पहले दिन, श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं और केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। महिलाएं दिन भर व्रत रखती हैं।खरना: छह नवंबर को दूसरे दिन, व्रती दिन भर निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में खीर, रोटी और फल खाए जाते हैं।
संध्या अर्घ्य: सात नवंबर तीसरे दिन, व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।
सुबह का अर्घ्य: आठ नवंबर चौथे दिन, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रती अपना व्रत संपन्न करते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं। छठ पूजा के दौरान प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, फलों और नारियल का प्रयोग किया जाता है। ये सभी प्रसाद शुद्ध सामग्री से बनाए जाते हैं और सूर्य देवता को अर्पित किए जाते हैं।
पूर्वांचल विकास समिति के अध्यक्ष केदार शाह नें जेएनआई को बताया कि कमेटी की तरफ से छठ पूजा की पूरी तैयारी पांचाल घाट पर की गयी है| श्रद्धालुओं के लिए बेहतर प्रबन्ध कराने का प्रयास किया गया है|