फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) शरदीय नवरात्र के प्रथम दिवस यानी गुरुवार की भोर से ही दुर्गा मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी। शहर के देवी मंदिर में सुबह की आरती हुई, जहां भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। माता रानी के जयकारों से मंदिर गूंज उठा। मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्तों का आना जारी है।
शहर के बढ़पुर स्थित माता शीतला देवी मंदिर, गुरुगाँव देवी मन्दिर, फतेहगढ़ के भोलेपुर वैष्णो देवी मन्दिर, फतेहगढ़ के गमा देवी आदि मन्दिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ नजर आयी| इसके साथ ही जनपद के अन्य दुर्गा मंदिरों में भक्तों का तांता लगा है। गुरुवार को नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की गयी। घर- घर कलश स्थापित कर मां की पूजन की गयी। नवरात्र को लेकर शहर के मंदिरों में तड़के से ही श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने पहुंचे।
कलश स्थापना तिथि और मुहूर्त
कलश स्थापना मुहूर्त, द्वि-स्वभाव कन्या लग्न के दौरान है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अक्तूबर 03, 2024 को 12:18 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – अक्तूबर 04, 2024 को 02:58 बजे
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त
कन्या लग्न प्रारम्भ – अक्तूबर 03, 2024 को 06:15 बजे
कन्या लग्न समाप्त – अक्तूबर 03, 2024 को 07:21 बजे
कलश स्थापना मुहूर्त – 06:15 ए एम से 07:21 ए एम
अवधि – 01 घण्टा 06 मिनट
कलश स्थापना अभिजित मुहूर्त – 11:46 ए एम से 12:33
अवधि – 00 घण्टे 47 मिनट
मां शैलपुत्री का स्वरूप
देवी शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं। माता ने श्वेत रंग के वस्त्र ही धारण किये हुए हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। मां का यह रूप सौम्यता, करुणा, स्नेह और धैर्य को दर्शाता है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं। मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना करने से चंद्र दोष से मुक्ति भी मिलती है।
माता शैलपुत्री को अर्पित करें ये वस्तुएं
माता की पूजा और भोग में सफेद रंग की चीजों का ज्यादा प्रयोग करना चाहिए। माता को सफेद फूल, सफेद वस्त्र, सफेद मिष्ठान अर्पित करें। माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की आरती उतारें और भोग लगाएं।
नवरात्रि के पहले दिन प्रातः स्नान कर निवृत्त हो जाएं।
फिर मां का ध्यान करते हुए कलश स्थापना करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री के चित्र को स्थापित करें।
मां शैलपुत्री को कुमकुम (पैरों में कुमकुम लगाने के लाभ) और अक्षत लगाएं।
मां शैलपुत्री का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
मां शैलपुत्री को सफेद रंग के पुष्प अर्पित करें।