फर्रुखाबाद:(दीपक शुक्ला) ऊंगलियों के हुनर से ए ‘अकमल’ शक्ल पाती है चाक पर मिट्टी, अकमल इमाम का यह शेर जिला जेल में निरुद्ध कैदी कुलदीप पर सटीक बैठता है |जहाँ उसने जेल की सलाखों के पीछे अपनी योग्यता के हुनर को तपाकर खुद को पारस बनाया, कुलदीप आज लखपति है| जोअन्य कैदियों के लिए प्रेरणाश्रोत है|
बंदी कुलदीप 14 नवंबर 2017 से जेल में निरुद्ध है, बंदी कुलदीप की योग्यता स्नातक है। बंदी को जेल अधीक्षक भीमसैन मुकुंद ने बंदियों के प्रार्थना पत्र लिखने के लिए बंदी मित्र के रूप में कार्य पर लगाया था। बंदी के कार्य और लगन को देखते हुए बंदी को अचल प्रताप सिंह, सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने 19 मई 22 को जेल में स्थापित “लीगल एड क्लिनिक” पर बंदी कुलदीप को पैरा लीगल वॉलियटर के रूप में कार्य पर लगाया । बंदी ने पूरे परिश्रम और लगन से कार्य किया । वर्तमान में संजय कुमार सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा बंदी कुलदीप के पारिश्रमिक का भुगतान करके जेल अधीक्षक को जानकारी दी गई कि पैरा लीगल वॉलिंटियर कुलदीप के पारिश्रमिक का भुगतान कर दिया गया है । जेल अधीक्षक ने बंदी कुलदीप के बैंक खाता का स्टेटमेंट निकलवाया । बैंक स्टेटमेंट के अनुसार बंदी कुलदीप के बैंक खाते में पैरा लीगल वॉलियंटर का पारिश्रमिक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से रुपया एक लाख चार हजार की धनराशि हस्तांतरण की गई है । जेल अधीक्षक ने जब बंदी कुलदीप को दी तो बंदी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । अन्य बंदियों में भी ईमानदारी से कार्य करने के प्रति एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है । कारागार में अन्य कार्यों में भी लगे बंदी बहुत खुश और प्रफुल्लित है । जेल अधीक्षक ने बताया की अन्य कार्यों में लगे बंदियों को भी पारिश्रमिक का भुगतान नियमानुसार किया जाता है । जेल अधीक्षक ने बताया की उन्होंने अपनी जिला कारागार फतेहगढ़ पर तैनाती के दौरान कोरोना काल के अपूर्ण अभिलेखों को पूर्ण करवाकर अब तक एक करोड़ से अधिक का भुगतान विभिन्न बंदियों के खातों में जमा करके किया गया है । बंदी जेल में रहते हुए अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे है । अपने बच्चों की स्कूल की फीस भर रहे है । वकील की फीस देकर अपने केस की पैरवी करवा रहे । अनेकों ऐसे बंदी जेल के पारिश्रमिक से जुर्माना जमा करके जेल से रिहा हो चुके है। जेल से रिहा होने के बाद भी बंदी अपने पारिश्रमिक का चेक जेल से ले जाते है और अपने बैंक खातों में जमा करके धनराशि प्राप्त करते है । जो बंदी जेल में बंद है वो अपनी आवश्यकता अनुसार पारिश्रमिक की धनराशि अपने परिवार जनों को चेक के माध्यम से ही भिजवा देते है । समय-समय पर ऐसे चेक जिलाधिकारी, सचिव डीएलएसए के द्वारा वितरित कराये गए है । अभी तक पारिश्रमिक के रूप में अधिकतम पचास हजार का भुगतान जेल अधीक्षक ने किया था । सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा किया गया किसी कैदी का ये पारिश्रमिक अधिकतम है , जो कि एक लाख चार हजार है ।