वर्तमान समय में हिंदी की स्थिति चिंतनीय

FARRUKHABAD NEWS

फर्रुखाबाद:(नगर संवाददाता) अभिव्यंजना के तत्वावधान में तीन पुस्तकों का
लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके साथ ही हिंदी के गिरते स्तर पर चिंता भी व्यक्त की गयी|
रविवार को नगर के एनएकेपी महाविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ दिल्ली से आये मुख्य अतिथि अनिल शर्मा जोशी, अध्यक्ष वैश्विक हिंदी परिवार कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. राम बाबू पाठक, राष्ट्रीय कवि डॉ. शिवओम अम्बर, संस्था प्रमुख डॉ. रजनी सरीन, प्राचार्या डॉ शशि किरण सिंह ने संयुक्त रूप से मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया ।
कार्यक्रम में डॉ. संतोष पाण्डेय की पुस्तक ‘मरघट’ और गुरुदेव गाथा के साथ रमेश तिवारी विराम जी की ‘सुधीमाल’ का लोकार्पण किया गया। मुख्य अतिथि अनिल जोशी नें कहा कि मरघट पुस्तक में जिस मृत्यु के भय की बात की गई है उसे साधारण जीवन में समझ पाना बहुत ही मुश्किल है| जनपद हरदोई जनपद से आये पूर्व प्राचार्य विशिष्ट अतिथि डॉ. ब्रह्म स्वरूप पाण्डेय ने कहा कि पुस्तक मरघट हमें यह सोचने कहने के लिए मजबूर करती है की हमारा शरीर अलग है और हमारी आत्मा अलग है,उन्होंने मरघट पुस्तक को आध्यात्मिक चिंतन का सोपान बताया । अभिव्यंजना संस्था प्रमुख डॉ. रजनी सरीन ने कहा कि मरघट में संग्रहित कविताओं को मनन कर एकात्मभाव की अवधारणा को अपना कर हम सभी के लिए एक बेहतर जीवन और सामाजस्यपूर्ण दुनियां बनाने की दिशा में काम सकते हैं। यह पुस्तक वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश देती है। भारती मिश्रा ने
अभिव्यंजना संस्था का परिचय दिया । राष्ट्रीय कवि डॉ. शिवओम अम्बर ने कहा कि संतोष पाण्डेय ने सन्यास की सीमा को छुआ है| उन्होंने कहा कि हमारे चिंतन उपनिषद है मरघट। डॉ राज.कुमार सिंह ने कहा कि हिंदी को काठ के तख्त से उतारकर ठोस धरती पर उतारना अति आवश्यक है । आज हिंदी की स्थिति चिंतनीय है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर हिंदी का उतना प्रचार प्रसार नहीं हुआ जितना होना चाहिए था। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. राम बाबू पाठक ने की संचालन महेश पाल सिंह उपकारी ने किया ।
डॉ. हरिदत्त द्विवेदी, चंद्र देव शास्त्री, रविंद्र भदौरिया, सुधांशु दत्त द्विवेदी, सुरेंद्र पाण्डेय, अरविंद दीक्षित, नवनीत गुप्ता , दिलीप कश्यप, राम मोहन शुक्ल, रामावतार शर्मा इंदु,भारती मिश्रा, स्वेता दुबे, डॉ. प्रभात अवस्थी, अनुराग दीक्षित, अनिल प्रताप सिंह, वैभव सोमवंशी, अनुभव सारस्वत आदि रहें ।