फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) किसी नें खूब कहा है कि बिष दें लेकिन विश्वास ना दें| लेकिन नगर की जनता के साथ वर्षों से विश्वास घात किया जा रहा है| विकास के नाम पर केबल नगर की जनता के साथ छलावा नही तो और क्या हुआ नगर का एक मात्र पार्क बदहाली के आंसू वहा रहा है| नगर की जनता के लिए शुकून की एक जगह भी आज अनदेखी का तालाब बन गयी गयी| कई बार भाषणों और मीडिया की सुर्खियों में पटेल पार्क आया लेकिन उसे आज तक उसे धरातल पर नही उतारा जा सका| या तो उनकी चली नही या उन्होंने जनता को चला दिया|
दरअसल शहर के पल्ला स्थित सरदार पटेल के नाम से पार्क बना हुआ है| पटेल पार्क वर्षो से दुर्दशा का शिकार बना हुआ है। सरकारें आईं और चली गईं। नेताओं द्वारा भी इसको चुनावी मुद्दा बनाया जाता रहा। सत्ता संभालते ही सभी दल के नेता पार्क के प्रति उदासीन दिखाई दिए। जिसके चलते पार्क का कायाकल्प नहीं हो सका। नगर पालिका ने इसके लिए एक करोड़ 42 लाख रुपये की कार्ययोजना स्वीकृत कर दी थी। कुछ दिन काम चला लेकिन दीवारों पर सीमेंट रगड़ा गया| इसके बाद बीते कुछ महीनों से वह काम भी बंद हो गया| जबकि दीवार व फुटपाथ निर्माण के लिए 30 लाख रुपये का टेंडर हुआ था| लेकिन शहर के जिन्मेदार सेनापति की तरफ से उफ़ नही हुई| जबकि इसमे टहलने का पाथ, फुलवारी, लाइटिंग, बाउंड्रीवाल की मरम्मत आदि काम होना था। ठेकेदार ने काम भी शुरू कराया, मगर चंद ईंटें डालने के बाद बंद हो गया। अब पालिका और प्रशासन की अनदेखी के चलते सात माह से कोई काम नहीं हुआ। वहीं अब ठेकेदार ईंटे भी उठा ले गया| आज कूड़ा, जलभराव, गंदगी और अराजकतत्वों का जमावड़ा है। आवारा मवेशियों पूरे पार्क में गंदगी और अपना कब्जा है| लेकिन पिछले पांच सालों में केबल मुद्दों में ही रहा| अब फिर विधान सभा चुनाव है प्रत्याशी जी फिर घर-घर जा रहें है लेकिन विकास के नाम पर वोट मांगने से क्यों कतरा रहें है यह पूंछनें की जरूरत है और उन्हें जबाब देनें की| शहर में एक विकास का कार्य हुआ हो तो जरूर बात दें पटेल पार्क तो दूर की बात है|
यहीं से सुभाष चन्द्र बोस ने फूंका था आजादी का बिगुल
दरअसल आजादी से पहले 1940 के आस-पास यह पार्क आस्तित्व में था| वहीं 1950 के दशक के आते-आते पार्क के अंदर चिड़िया, हिरन, बहुत प्रकार के पक्षी बिहार करते है| यही से सुभाष चन्द्र बोस नें अंग्रेजो की गुलामी के खिलाफ बिगुल फूंका था| लेकिन आज बदहाली ही नजर आती है|