चूं-चूं करती आई चिडिय़ा, चना का दाना लाई चिडिय़ा। घर आंगन में फुदकती चिडिय़ों की अठखेलियों की तस्वीर उकेरतीं ये लाइनें कुछ समय पहले तक वास्तविकता थी, लेकिन विकास के नाम पर हरियाली पर चला आरा अब इन्हें किताबों और लेखों में ले आया है। जैसा कि आप सबको विदित है की गौरैया आजकल अपने अस्तित्व के लिए हम मनुष्यों और अपने आस पास के वातावरण से काफी जद्दोजहद कर रही है। ऐसे समय में हमें इन पक्षियों के लिए वातावरण को इनके प्रति अनुकूल बनाने में सहायता प्रदान करनी चाहिए। तभी ये हमारे बीच चह चहायेंगे। गौरैया की घटती संख्या के कुछ मुख्य कारण है – भोजन और जल की कमी, घोसलों के लिए उचित स्थानों की कमी तथा तेज़ी से कटते पेड़ – पौधे। गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस – पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े – मकोड़े ही होते है। लेकिन आजकल हम लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़ – पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते है जिससे ना तो पौधों को कीड़े लगते है और ना ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है। इसके अतिरिक्त गौरया शिकारियों के निशाने पर आ गई है, जो उन्हें कामोत्तेजक और गुप्त रोगों के पक्के इलाज के लिए दवा के रूप में बेचते हैं। इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हजारों पक्षी हमसे रूठ चुके है और शायद वो लगभग विलुप्त हो चुके है या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे है। हम मनुष्यों को गौरैया के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही होगा वरना यह भी मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। इसलिए हम सबको मिलकर गौरैया का संरक्षण करना चाहिए।
इंसान और गौरया के बीच का रिश्ता कई सदियों से चला आ रहा है और ऐसा कोई पक्षी नहीं है, जो इंसान की रोजमर्रा की जिन्दगी से गौरया की तरह जुड़ा हो। ये ऐसा पक्षी है, जो हमारी बचपन की मधुर यादों को तरोताजा कर देता है और अपनी उपस्थिति से घरों में भी ताजगी भर देता है। कई पक्षी दर्शक और पक्षी विज्ञानी अपनी यादों के बारे में चाव से बताते हैं कि किस तरह गौरया की उड़ान में उनमें पक्षियों को निहारने की उत्सुकता भरी होती है। का घौंसला लगभग पड़ोस के हर घर, सामाजिक स्थान जैसे बस स्टॉप और रेलवे स्टेशनों पर देखने को मिलता था, जहां वो झुंड में रहती हैं और अनाज और छोटे-मोटे कीड़ों पर बसर करती हैं।बदकिस्मती से गौरया अब लुप्त होने वाली प्रजाति बन गई है। जिस तरह से अन्य सभी पौधे और जानवर जो कि पहले बहुतायत संख्या में थे और आज एक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं, उसी तरह से गौरया की संख्या भी उनकी प्राकृतिक श्रेणी से घटती जा रही है।