वाराणसी: वैसे तो सारे विश्व में ‘फर्स्ट अप्रैल’ मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है लेकिन धार्मिक नगरी वाराणसी में उस दिन मनाया जाने वाला ‘महामूर्ख मेला’ अपने आप में अनोखा होता है। हजारों की भीड़ के बीच शहर के लोगों को दूल्हा दुल्हन बनाया जाता है, फिर शादी के तुरन्त बाद तलाक भी हो जाता है…।
महामूर्ख मेला गंगा के किनारे स्थित डा0 राजेन्द्र प्रसाद घाट के मुक्तागंज में रात में आयोजित होता है जहां पर बड़ी संख्या में नगर के साहित्यकारों, पत्रकारों एवं मस्तमौला लोगों का जमावड़ा होता है।
हालिया घटनाक्रमों पर महफिल सजती है। बेवकूफी भरी बातों व हरकतों से सराबोर यह मेला ठेठ बनारसी अंदाज में होता है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष धर्मशील चतुर्वेदी के अनुसार महामूर्ख मेला के जरिये शहर के हास्य कलाकारों को जागरूक करने के साथ ही साथ कोशिश होती है कि नयी पीढ़ी भी हास्य से संस्कारित हो।
हजारों की भीड़ के बीच शहर के लोगों को दूल्हा दुल्हन बनाया जाता है। शादी के तुरन्त बाद तलाक हो जाता है। मूर्खता की शपथ लेने के बाद शुरू होने वाले इस आयोजन में जीवन की सबसे बड़ी बेवकूफी मानते हुए दूल्हा दुल्हन की बारात गाजे बाजे के साथ पहुंचती है।
अनापशनाप मंत्रों से ‘सप्तपदी’ के बाद दोनों स्टेज पर आते हैं तथा इसके तुरन्त बाद तलाक हो जाता है। इस कार्यक्रम की खासियत यह है कि जिन्हें हंसना नहीं आता और जो तनाव के शिकार हैं उनके लिए यह महामूर्ख मेला वरदान बनता है।
महामूर्ख मेला की शुरूआत 1966 में दशाश्वमेध घाट के सामने बजडे से हुई थी। बाद में स्थान बदला लेकिन 1986 से यह लगातार राजेन्द्र प्रसाद घाट पर हो रहा है।