फर्रुखाबाद: बेसिक शिक्षा का एक स्कूल जो खुलता नहीं है, वहां 239 बच्चे पंजीकृत हैं और उसमे से 200-230 बच्चे प्राधिकरण की सबसे उन्नत निगरानी प्रणाली के रिकॉर्ड में खाना खा रहे हैं| सबको वजीफा मिला है| वहां तैनात एक शिक्षा मित्र पास के दूसरे स्कूल में पढ़ाता है और स्कूल की हेड सहायक अध्यापिका कानपुर में बैठ शिक्षिका बनने की आकांक्षा पूरी कर रही है| उत्तर प्रदेश की बेसिक शिक्षा की मैडम स्कूल नहीं जाती, पति मिड डे मील प्राधिकरण को स्कूल में बनने की सूचना फ़ोन से भेजते हैं| मिड डे मील प्राधिकरण के पास दर्ज मोबाइल नंबर मैडम के पास नहीं उनके इंजिनियर पति के पास रहता है| और वे ही उस फ़ोन से स्कूल में बच्चो के भोजन खाने की चकाचक सूचना भेजते है| सवाल ये है कि जब स्कूल में खाना बना नहीं तो खाया क्या 230 भूतों ने था? ये वाकया दिनांक 23 मार्च 2010 का है|
मध्याह्न भोजन प्राधिकरण की ओर से परिषदीय विद्यालयों में बच्चों को मिलने वाले भोजन की सही-सही जानकारी करने के लिये प्रारंभ कर रही एमआईएस योजना को भी बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों ने ठेंगा दिखा दिया है। लखनऊ स्थित प्राधिकरण के प्रदेश मुख्यालय से आने वाले फोन पर दूसरे शहरों में बैठे शिक्षक वहीं से फर्जी सूचना देकर बेवकूफ बना रहे हैं। हद तो यह है कि कुछ महिला शिक्षिकाओं के तो पति ही यह जिम्मेदारी निभा देते हैं।
जनपद के विकास खंड राजेपुर के ग्राम किराचिन का एक स्कूल है माखन नगला। यह स्कूल अपनी एक अक्सर गायब रहने वाली शिक्षिका मंजू चौधरी के कारण पहले भी काफी चर्चित रहा है। मंजू चौधरी को लंबी अनुपस्थिति के कारण गांव के बच्चों का भविष्य चौपट हो रहा है। एक बार सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी ने इनके विरुद्ध कार्रवाई के लिये लिखा तो कुछ माह तक वेतन रुका रहा, परंतु बाद में बेसिक शिक्षा विभाग की परंपरा के अनुसार वेतन आहरित कर दिया गया। मंजू चौधरी को दो माह पूर्व निलंबित भी किया जा चुका है। हाल ही में उनको बहाल कर दोबारा इसी गांव में तैनात कर दिया गया है। परंतु उनकी कार्यप्रणाली में रत्ती बराबर भी परिवर्तन नहीं हुआ है। बुधवार को जेएनआई संवाददाता ने विद्यालय जाकर देखा तो मंजू चौधरी नदारद थी। ग्राम प्रधान को फोन लगाया तो उनके भतीजे अनिल ने फोन उठाया। अनिल ने बताया कि मंजू चौधरी कभी कभार ही आती हैं।
मध्याह्न भोजन प्राधिकरण को भेजी गयी टेलीफोन सूची में दर्ज मंजू चौधरी के मोबाइल नंबर पर फोन किया तो उनके पति महेंद्र प्रताप चौधरी ने फोन उठाया। पहचान छुपा स्वयं को एक एनजीओ कार्यकर्ता बताकर श्री चौधरी से बात शुरु की तो श्री चौधरी ने बातों के दौरान बताया कि वह कानपुर में एमईएस (सैन्य अभियंत्रण सेवा) में सेक्शन इंजीनियर हैं। उन्होंने बताया कि श्रीमती चौधरी कानपुर आयी हुई हैं, उनका फोन अब श्री चौधरी ही उपयोग करते हैं। यह पूछने पर कि मध्याह्न भोजन प्राधिकरण से काल आने पर बच्चों की संख्या कैसे बताते हैं? वह चुप हो गये।
श्री चौधरी की चुप्पी का राज जानने के लिये जेएनआई ने मध्याह्न भोजन प्राधिकरण में अपने सूत्रों से जानकारी की तो पता चला कि माखन नगला स्कूल से आज भी बच्चों की संख्या का डाटा प्राप्त हुआ है। यानी नदारद शिक्षक मध्याह्न भोजन प्राधिकरण के मुंह पर फर्जी सूचनाओं के तमाचे लगा रहे हैं। यह तो एक मिसाल है। दरअसल यह जनपद सैकड़ों मंजू चौधरियों से पटा पड़ा है। एक पूर्व बीएसए के अनुसार गायब रहने वाले और खराब भवन निर्माण कराने वाले शिक्षक तो दरअसल विभाग के लिये दुधारू गाय हैं। कानपुर, लखनऊ, झांसी में रहने वाली जाने कितनी शिक्षिकायें अपनी मोटी तनखाह का एक भाग नियमित रूप से विभागीय अधिकारियों को पहुंचाती रहती हैं। कुछ शिक्षक भी इसी प्रकार ठेकेदारी या कोई अन्य व्यवसाय संभाले हैं। बेसिक शिक्षा विभाग से उनको नियमित मोटी पेंशन मिलती ही रहती है।