फर्रुखाबाद: बेशरम इसलिए कह रहे है क्योंकि कुछ भी लिखो, कुछ भी कहो इन पर असर नहीं पड़ता| बुधवार को राजेपुर का पूर्व माध्यमिक विद्यालय निबिया पर इसलिए ताले लटके रहे क्योंकि वहां के शिक्षक ऑडिट कराने गए थे| एक नहीं सब गए गए थे| जानकारी ये निकल कर आई है कि इन दिनों बेसिक शिक्षा में ऑडिट चल रहा है और एक एक कर सभी स्कूल के हेडमास्टर और इंचार्ज अपने अपने दस्ताबेज प्रमाणित कराने के लिए बीआरसी जाते है और स्कूल में कई बार उस दिन ताला लटक जाता है| बच्चे स्कूल में आते है और लौट जाते है| उन्हें पूर्व में स्कूल बंद होने की सूचना नहीं होती| चूँकि स्कूल बंद रखने का नियम जो नहीं है| मगर उस दिन फाइलों में पढ़ाई भी होती है और मिड डे मील भी बनता है| दोषी कौन था इसके लिए अंत तक पढ़े|
तो बुधवार को पूर्व माध्यमिक विद्यालय इसलिए बंद था क्योंकि वहां की हेड अर्चना कुमारी सहायक अध्यापिका संध्या कुमारी के साथ राजेपुर विकास खण्ड मुख्यालय स्थित बीआरसी स्कूल का लेखाजोखा लेकर उसका ऑडिट कराने गयीं है। मतलब ऑडिट के लिए स्कूल बंद था| उसी समय जब बीआरसी राजेपुर जाकर पता किया जाता है तो वहां तो एबीआरसी केन्द्र पर सन्नाटा पसरा हुआ था| महज एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही था| पूंछे जाने पर उसने बताया कि बीआरसी केन्द्र प्रभारी नये आये है इसलिए उसे उनका नाम नहीं मालुम है। ऑडिट के लिए गांव निविया का पूर्व माध्यमिक विद्यालय बंद है इसके जबाव में अमुक कर्मचारी ने बताया कि यह परम्परा विकास खण्ड क्षेत्र में वर्षों पुरानी है| तो ऑडिट के नाम पर स्कूल बंद और बच्चे बैरंग वापस घर को चले गए| अब ऑडिट हुआ कि नहीं इसका कोई जबाब देने वाला नहीं तो किससे पूछे? बरहाल प्राथमिक शिक्षा में सर्व शिक्षा अभियान में शिक्षको की मदद और शिक्षण गुणवत्ता को बढ़ाए रखने के लिए बीआरसी, एनपीआरसी और एबीआरसी जैसे पदों का सृजन किया गया है मगर ये सब शिक्षको को मदद करने की जगह निगरानी तंत्र बन कर रह गए है| यानि शिक्षको पर शक करके, उनकी कमियां और कमजोरियां तलाश करते है और उसके बाद क्या होता होगा ये सब जग जाहिर है| इसी की मलाई अफसर खाते है|
क्या शिक्षक सिर्फ शक करने के लिए बना है?
ऑडिट के नाम पर 1500 रुपये से लेकर 5000 रुपये की वसूली होती है| ऐसे प्रमाण है| फिर ऑडिट का क्या मतलब| ऑडिट के बाद आज तक किसी की नौकरी तो गयी नहीं| जबकि एक सैकड़ा शिक्षक स्कूल में पढ़ाने इसी फर्रुखाबाद में नहीं जाते| नेताओ से लेकर अफसरों और सरकारी बाबुओ के परिजन तक इसमें आते है| फिर ऑडिट के नाम पर बच्चो को सजा क्यों? और बच्चो से पहले शिक्षक को सजा क्यों? ऑडिट के नाम पर स्कूल बंद हो जाना गंभीर विषय है| क्या ABRC या NPRC को ऐसी स्थिति में स्कूल नहीं खोलना चाहिए?
उत्तर प्रदेश में शिक्षको को बच्चो को स्कूल में पढ़ाने के लिए वैसे ही भेजा जाता है जैसे एक हवाई जहाज को किसी पायलट को उड़ाने को दे दिया जाए और कह दिया जाए अब सब तुम अकेले जानो हम ग्राउंड स्टाफ आपकी कोई मदद नहीं कर सकते| ग्रामीण क्षेत्रो में बच्चो को स्कूल में लाना और उन्हें छुट्टी तक रोके रखना राई से तेल निकालने से कम नहीं होता| इन स्कूलों में गरीब घरो के बच्चे ही पढ़ने आते है| इनके माँ बाप को शिक्षा के महत्त्व के बारे में कोई जागरूकता नहीं है| उनके लिए तो दो जून की रोटी का इंतजाम ही शिक्षा और सब कुछ है| ऐसे में क्या शिक्षको की मदद के लिए पूरे तंत्र को नहीं लग्न चाहिए| कभी सुना है कि बेसिक शिक्षा अधिकारी किसी स्कूल में बच्चो को पढ़ाने जाते हो? दफ्तर में बैठकर खाली शिक्षको की कमजोरियां तलाशना और उनसे अपने हित कैसे साधे जाए इसमें ही पूरा तंत्र लगा रहता है|
शिक्षक एक पायलट की तरह काम करता है-
जरा सोचो जब कोई पायलट हवाई जहाज उडाता है तो उसके साथ पूरा ग्राउंड स्टाफ और सिस्टम लगा होता है| पायलट पर विश्वास करके ही उसे हवाई जहाज उड़ाने दिया जाता है| और जब वो हवा में होता है एक एक पल उसका हाल लिया जाता है और मदद के लिए ग्राउंड स्टाफ हमेशा तैयार रहता है| उस पर शक नहीं किया जाता| उस पर यात्रा कर रहे सभी यात्रियों की जिम्मेदारी होती है| मगर यदि हम शक करेंगे तो क्या वो उड़ान भर सकेगा| शायद नहीं| वैसे ही ग्रामीण भारत में बेसिक प्राइमरी और जूनियर शिक्षा का अध्यापक एक पायलट की तरह है| जिस पर उन बच्चो को पढ़ाने की जिम्मेदारी है| वो बच्चे जिन्हें कोई दिशा देने वाला नहीं होता| गरीब परिवेश में माँ बाप के पास कोई बड़ा चिंतन नहीं होता| वहां ये शिक्षक काम करते है| एक शिक्षा विभाग को चाहिए कि उसकी मदद करे न कि शक| ऑडिट में स्कूल न बंद हो इसकी जिम्मेदारी ABRC और NPRC पर तय होनी चाहिए| आखिर इनका यही मूल काम है और इसी के लिए इनका चयन होता है|