जिले में लल्लन छाप अधिकारिओ की भरमार

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शरद जोशी के उपन्यासों पर आधारित लोकप्रिय धारावाहिक “लापतागंज” में एक बहुत ही मजेदार चरित्र हैं लल्लन जी| लल्लन जी पीडब्ल्यूडी में काम करते हैं और इस बात पर उन्हें काफी अभिमान भी है| उनका एक खास अंदाज़ है कि जब तक कोई उन्हें सीधे तौर पर कोई बात नहीं कहता है, वे उसे ना तो सुनते हैं और ना उससे अपना कोई मतलब मानते हैं| वे वहीं खड़े रहेंगे, सारी बात उनके सामने होती रहेगी पर उनका कहना होगा कि हमसे क्या मतलब, क्योंकि किसी ने मुझे सीधे तो कहा नहीं है|

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद में भी लगभग यही हाल है| जिला पूर्ति अधिकारी, बेसिक शिक्षा अधिकारी, जिला विद्यालय निरीक्षक, मुख्य विकास अधिकारी, मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी, पुलिस, नगरपालिका के जिम्मेदार अधिकारी सहित जिला श्रम अधिकारी से लेकर बाट माप अधिकारी तक लल्लन जी की तर्ज़ पर चलना पसंद करते हैं| तभी तो जब तब ठीक उनके सामने खड़े हो कर, उनका नाम ले कर, उनको इंगित करके कोई बात नहीं कही जाए, वे यह मानते हैं कि “हमसे तो किसी ने कहा ही नहीं.”

यहाँ इतने ही अधिकारिओ का जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्यूंकि लोकतान्त्रिक प्रणाली में जनता को भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास की योजनाओ के लिए यही अधिकारी सीधे तौर से जिम्मेदार होते हैं| सरकार की प्राथमिकता वाले कार्यक्रम सभी को शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, भरपेट भोजन उपलब्ध करना लोकतान्त्रिक कार्यपालिका की जिम्मेदारी है| एक बेहतर समाज के लिए कानून का पालन करना पुलिस की जिम्मेदारी है|

लल्लन जी फर्रुखाबाद में जमा है लगभग 2 रुपये मूल्य करोड़ का गुटखा का भंडार
बात शुरू करते हैं सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की जो 1 मार्च से लागू होना था| गुटखा और पान मसाला की प्लास्टिक पाउच पैकिंग में रोक| अदालत ने फैसला बहुत पहले सुना दिया था| मगर लागू 1 मार्च से होना था| गुटखा बनाने वालों ने 28 फरवरी तक मशीने चला कर मसाला बनाया और बड़े शहरो से ये माल छोटे शहरो में ट्रांसफर कर दिया| मसाला व्यापर की अर्थगणित ये कहती है मशीन से निकलने से लेकर खाने के शकीनो के मुह में पहुचते पहुचते कम से कम एक महीना लग जाता है| ऐसे में अरबो रुपये का मसाला स्टॉक करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के नियम को लागू करा पाना लोहे के चने चवाने से कम नहीं| फर्रुखाबाद में पान की दुकानों से मसाले के पाउच की सजावट भले ही हट गयी हो मगर हर दुकान में ब्लेक में मसाला उपलब्ध है| आखिर ये दुकानदार मसाला कहाँ से ला रहे है| जिले के लल्लन छाप अधिकारिओ की ख़ुफ़िया फ़ौज क्या कर रही है| ये मसाला थोक विक्रेताओं ने जमा किया है| गोदाम कहाँ है इसका पता लगाना ख़ुफ़िया का काम है| सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार लिंजिगंज बाजार, किराना बाजार, घूमना में ये स्टॉक जगह बदल कर रखे गए है| सबसे बड़ा गोदाम सेन्ट्रल जेल के पास एक पंडितजी के खेत में बनाये गए आलीशान कोठी में विराजमान है| सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना प्रशासन की जिम्मेदारी है फिर भी पान मसाले के पाउच में बिकते रहना लल्लनजी बनना हो सकता है यानि पूछो तो साहब कहे “हमें तो किसी ने न सीधे बताया और न ही शिकायत नहीं की”

लल्लनो की कमी नहीं है, इन्हें देखिये-
पूर्ती विभाग
जिले में शायद ही कोई कोटेदार हो जो ईमानदारी से राशन बाटता हो| गेंहू चावल से लेकर मिटटी के तेल तक और आंगनवाडी से लेकर मिड डे मील तक का राशन कालाबाजारी हो जाता है| जरूरतमंद तक नहीं पहुचता| कोटेदार घटतौली करता है| फर्जी राशन कार्ड रखता है और तमाम लोगो के कार्ड तक कोटेदार के पास पड़े रहते है| मगर साल भर में भ्रष्टाचार पर कितनी लगाम लगा पाए जिला पूर्ति अधिकारी| शायद न के बराबर| सारा जहाँ जानता है मगर साहब को सीधे किसी ने नहीं बताया इसलिए कोटेदारो की कालाबाजारी नहीं रुक पाई, हुए न लल्लन छाप अधिकारी|

शिक्षा विभाग
इस विभाग के दो खंड है| एक प्राथमिक शिक्षा का दूसरा उच्च शिक्षा का| प्राथमिक शिक्षा बेसिक शिक्षा अधिकारी देखते है और उच्च शिक्षा को जिले स्तर पर चलने की जिम्मेदारी जिला विद्यालय निरीक्षक की है| जिला विद्यालय निरीक्षक इन दिनों जिले में बोर्ड परीक्षा कराने की तैयारी कर रहे है और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी वर्षांत में साल भर का पैसा चंद दिनों में खर्च दिखा कर बजट उपभोग बनाने में जुटे है| उस पैसे से कितना शैक्षिक विकास हुआ इसका सवाल उनसे मत पूछिए, कह देंगे मैं तो एक महीने पहले ही जिले में आया हूँ| शिक्षक पढ़ाने से दूर रहे, बिना प्रश्न पत्र के सत्र परीक्षा हो गयी, मिड डे मील में घटिया खाना बिना मीनू के रोज बन रहा है| दागदार और नियम विरुद्ध चयनित एनजीओ मुख्यालय पर मिड डे मील का भैस सहित खोया कर रहे हैं| जनपद के लगभग एक सैकड़ा स्कूलों में ताला पड़ा है मगर लल्लन छाप साहब को किसी ने सीधे शिकायत नहीं की सो कारवाही कैसे हो और व्यवस्था कैसे सुधरे| हाँ प्रदेश की मुख्यमंत्री को फर्जी रिपोर्ट बनाकर सभी स्कूलों में गुणवत्ता सहित चकाचक बात रहे मिड डे मील की रिपोर्ट भेजना वो भी नहीं भूले| इन लल्लन जी ने जो मुख्यमंत्री को रिपोर्ट भेजी है उसके मुताबिक जिले में शत प्रतिशत सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे लाभान्वित है और शत प्रतिशत स्कूलों में खाना बनता है|

उच्च शिक्षा के पालनहार जिला विद्यालय निरीक्षक है जिनकी लल्ल्नता तो इसी से साबित हो जाती है कि इस बार डिबार विद्यालय भी बोर्ड परीक्षा के केंद्र बना दिए गए| 17 मार्च से जिले में बोर्ड परीक्षा में धडल्ले से नक़ल होगी और इन लल्लनो को दूंदे नहीं मिलेगी| अब अगर कहें कि जिले में नक़ल नहीं होती तो ये शायद उस तरक्की को गली देना होगा जिसकी दम पर एक स्कूल खोल नक़ल का व्यापार शुरू करने वाले अरबो रुपये के विभिन्न प्रकार के कॉलेज बनाने की हैसियत में आ गए| यही नक़ल माफिया हर साल छात्रो के हिस्से की अरबो रुपये की छात्रवृति से लेकर शुल्क प्रतिपूर्ति डकार दिनों दिन अमीर होते जा रहे है और गरीब बच्चे बेचारे भटकते रहते हैं मगर साहब का तुर्रा ये की उन्हें तो किसी ने शिकायत नहीं की|

जिला विकास कार्यालय
इस कार्यालय में छोटे बड़े कई प्रकार के लल्लन हैं| शुरुआत उपरी मंजिल से करते है जहाँ जिला पंचायत राज अधिकारी बैठते है| सबसे ऊपर बैठने के बाद भी इन्हें कुछ दिखाई नहीं पड़ता है| जिले भर के गाँव और उनके स्कूल गंदे पड़े है| नन्हे मुन्ने बच्चे बेचारे स्कूल में पढ़ाई का सबक भले ही न सीख पाए मगर सुबह सुबह झाड़ू लगाते मिल जायेंगे| जिले भर में गठित ग्राम पंचायतो में भारी अनिमियतता है| न तो महिलाओं को और न ही अनुसूचित जाति के जागरूक लोगो को ग्राम पंचायत समितिओं में भागीदारी दी गयी है| कई हारे हुए प्रधान अभी भी पुराने बही खाते देने को तैयार नहीं हैं| मिड डे मील के खाद्यान और कन्वर्जन कास्ट का करोडो रुपये डकार जाने के बाद भी पिछले चुनाव में इन्हें बकाया नही का प्रमाण पत्र जारी होता रहा| यही करोडो रुपये डकारने के बाद भी साहब ने इसे वापस वसूलने की कोई सार्थक कोशिश नहीं की| कुछ पूछोगे तो जबाब यही मिलेगा “उन्हें सीधे किसी ने शिकायत नहीं की”
इनके ऊपर के साहब के तो इससे भी बुरे हाल है| इनके दफ्तर में मिड डे मील बनाने वाली दागी एनजीओ से निजाद पाने के लिए दिसम्बर 2010 माह से ही नयी एनजीओ के आवेदन वाली फ़ाइल किसी बेजुबान अर्थशास्त्र के ठीक न बैठ पाने के कारण धूल फाक रही है| मनरेगा कार्य के लिए जिले भर में बने जॉब कार्डो में फर्जीवाड़े की भरमार है| मगर साहब से सीधे किसी ने नहीं कहा| केंद्र सरकार के दो साल पुराने आदेश के बाद भी जिले में आधे से ज्यादा जॉब कार्ड धारको के बैंक खाते नहीं खुले| विकास का हाल तो कागजो में फर्राटा भर रहा था मगर मायावती के केवल दो सड़क पर दौड़ी गाड़ियों ने निवर्तमान जिलाधिकारी को जिले से वापस लखनऊ दफ्तरी करने के लिए पंहुचा दिया| मगर साहब से किसी ने अभी तक कहा नहीं कि आवास विकास कालोनी स्थित सरकारी लोहिया अस्पताल के आसपास की सडको का इतना बुरा हाल है कि बेचारी प्रसूता रिक्शे पर बैठ घर से चलती है मगर सडको के इतने गड्डे झेलते झेलते बेचारी अस्पताल के गेट तक आते आते ही जननी हो जाती है और खबरे छपती है स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ कि “”फिर सड़क/रिक्शे पर हुआ प्रसव””| अब दोष किसका विकास विभाग का या फिर स्वास्थ्य विभाग का| मगर लल्लन जी से ये आज तक किसी ने नहीं कहा होगा|
इसी विकास कार्यालय में एक दफ्तर है जिला कृषि अधिकारी का जिनकी जिम्मेदारी है किसानो की सेवा करना| अब साल भर किसान बेचारा यूरिया या तो ब्लेक में खरीदता है या फिर लाइन में लगे रहकर खाली हाथ वापस लौट जाता है| जिले के खाद माफिया जमकर मनमानी करते है और खबरे अखबारों में भी छपती है मगर शायद ये सीधे शिकायत के इन्तजार में लल्लन बने रहना ही अपनी शान समझते है|

जिला स्वास्थ्य विभाग

इस विभाग के तो क्या कहने| प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का चुनावी क्षेत्र| व्यवस्था का आलम ये कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों की कमी का रोना तो इनके मंत्री तक पिछले चार साल से रो रहे है मगर व्यवस्था कुछ भी नहीं कर पाए| जिले में एक दर्जन एम्बुलेंस पेट्रोल पी रही है मगर किसी गरीब की प्रसूता को आज तक नसीब नहीं हुई| गरीब की जोरू को तो तांगे पर ही आना पड़ेगा| जिले में टीकाकरण का व्यापक दौर चला| लगभग 3 करोड़ से ज्यादा की धनराशी टीकाकरण के विभिन्न मदों में खर्च हो गयी मगर रामपुर गाँव की प्रसूता तो टीकाकरण के अभाव में ही चल बसी| गाड़ियाँ दौड़ी, स्वास्थ्य मेले लगे, स्वास्थ्य का भारी भरकम बजट खर्च हुआ| राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जिले का सबसे बड़ा बजट इस विभाग ने खर्च किया| छोटे बड़े कार्यक्रम को मिलकर लगभग 87 योजनायें चली मगर जनता तक कितनी नहीं पहुची इसकी शिकायत सीधे मुख्या स्वास्थ्य अधिकारी से किसी ने नहीं की लिहाजा लल्लन साहब ने कोई कारवाही नहीं कर पायी| सब कुछ ठीक ठाक खीचने का प्रयास तो किया मगर वित्तीय वर्ष के अंत में मायावती ने स्वास्थ्य विभाग को नाकारा बता सारी मेहनत का जायका ही बिगड़ दिया| अब बेचारे लोहिया अस्पताल को दिन रात चमकाने में लगे है, मगर अन्दर की बात ये है कि वित्तीय वर्ष के अंत में लखनऊ से दर्जनों चिठियाँ बजट खर्च करने और उपभोग भेजने की आ चुकी है सो उन्हें उपभोग दिखाना है और जहाँ तहां दिखाना भी है सो विकास कार्य ने तेजी पकड़ ली है मगर पत्रकार सहित तमाम लोग यही समझते रहे हैं कि डॉ साहब अब मेहनत कर रहे हैं|