जिज्ञासा: परिवार के लिए सबसे जरूरी…

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परिवार में किया गया आचरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसमें पूरे परिवार का जीवन और बच्चों का भविष्य छिपा होता है। ऐसा कहते हैं मनुष्य की आदतें उसके परिवार में निर्वस्त्र रहती हैं।

घर के बाहर तो ओढ़ी शराफत, ढोंग, छल, दिखावा यह सब करके वह अपने आचरण को बचा ले जाता है, लेकिन घर में आदमी अपने दुर्गुणों के साथ खुलकर खेल लेता है। इसलिए देखा जाता है कि घरों में दुर्गुणी सदस्य किसी बीमारी से कम नहीं होते। सारे परिवार को दुख देते हैं।

ऐसी बीमारियों का इलाज शुरुआत में ही करना ठीक रहता है। देर होने पर गुंजाइश भी खत्म हो जाती है। आचरण को अच्छा रखने के लिए सभी धर्मों ने एक सहारा शास्त्रों को भी बताया है। शास्त्र पढऩे से विचारों की अस्पष्टता खत्म होती है, भ्रम दूर होता है, सोच परिपक्व हो जाती है। लेकिन शास्त्रों के साथ एक खतरा यह है कि इन्हें अज्ञान और निज स्वार्थ से नहीं पढऩा चाहिए। तर्क और जिज्ञासा हो इसमें कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि कुछ शास्त्र तो लिखने वाले ने अपनी दिव्यता की स्थिति में पहुंचकर ही लिखे हैं। उनके शब्द शत्प्रतिशत निर्दोष रहते हैं। झंझट शुरु होती है हमारी व्याख्या से।

हर शास्त्र की हम अपनी व्याख्या अपने निज स्वार्थ को रखकर शुरु कर देते हैं और सबकुछ बिगड़ ही नहीं जाता बल्कि विकृत भी हो जाता है। चूंकि हमारी व्याख्या हमारी सुविधा से होती है और पहली सुविधा आदमी यह चाहता है शास्त्र पढ़कर ज्ञान मिल जाए आचरण में उतारना जरूरी नहीं है।

इसलिए परिवारों में शास्त्र अध्ययन का परिणाम आचरण होना चाहिए, क्योंकि घरों में केवल वाणी से बच्चे नहीं सुधारे जा सकते। अपने आचरण को इतना दिव्य बनाना पड़ेगा जैसे दीपक से दीपक जल सके। पुरानी पीढ़ी जब ऐसी ही ज्योति नई पीढ़ी को दे पाएगी तब इसी का नाम सदाचरण होता है।