सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के मंत्री शिवपाल सिंह यादव के लेखपाल भर्ती की रिश्वतखोरी के संबंध में दिया गया हालिया बयान का पोस्टमार्टम हो रहा है| सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया जो आ रही है वो है-
अतुल मिश्रा-
“चाचा कह रहा है तहसीलदार एसडीम एँव डीएम आदि अधिकारी लेखपाल भर्ती मेँ पैसे ले रहे, पर ये कह कर घूसखोरी रोक रहा या “घूस किसे देना है ये बता रहा” हा हा हा हा हा हा हा हा” सुपवा कहे तो सुपवा चलनीयो से कहे, जेमे बहत्तर छेद।
प्रभात सिंह
पैसा इस बार भी चलने की उम्मीद है रेट है 8 खास के लिए 10 थोडा दूर के लिए 11 से 13,14 तक उनके लिए जो किसी हद तक जा सकते हैं। परीक्षा तो बिना किसी उंच नीच के करवाई जा सकती है लेकिन.. गैर सरकारी लुक छिपी वाले मुलाजिमों के लिए पैसे लेकर काम करवाना कोई बड़े जोखिम का काम नहीं है।
ये प्रतिक्रियां कोई एक दिन में नहीं तैयार हुई| सरकारों पर से जनता का उठता विश्वास इसका परिचायक है| प्रदेश स्तर की नौकरियों में भ्रष्टाचार कोई एक प्रदेश की कहानी नहीं है| राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में स्थानीय सरकारी नौकरी में रिश्वत चलती है ये अब आम बात है कोई आश्चर्य नहीं| इसमें विश्मय!कारी चिन्ह लगाने की कोई जरुरत नही| परंपरागत मीडिया नोटिसों के डर से ऐसी खबरे छापे न छापे| सोशल मीडिया पर नेताओ के चाल चरित्र के बारे में खूब दिल खोल कर छप रहा है|
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के दौर में हुई सरकारी भर्तियों में विवाद और चर्चा अहम रही है, कितनो को मिली इस पर कोई विश्वास नहीं कर रहा| ये कड़ुआ सच है| हो सकता है कि को कोई नेता और सत्ताधारी दल का कोई छुटभैया कार्यकर्ता मुझे विरोधी पार्टी से समर्थित कार्यकर्ता बता दे| बसपा और भाजपा की सरकारों में ऐसे आरोप मुझ पर पहले भी लगते रहे है| सरकार की नीतियों पर जनता का रुख लिखना एक स्वछंद पत्रकारिता को पुनर्जीवित करने का प्रयास होता है और होना चाहिए| बात यूपी में सरकारी नौकरियों की चल रही है|
सिपाही से लेकर शिक्षको की भर्ती में रोड़ा| शिक्षा मित्र वापस| राज्य सेवा चयन आयोग को क्रुद्ध बेरोजगार अहीर सेवा चयन आयोग लिख दे तो सवाल उठता ही है| क्या पूरे यूपी में सब अखिलेश यादव के विरोधी हो गए| मंत्री और संत्री मंचो पर सार्वजानिक रूप से स्वीकार करते हुए अपने प्रशासन की आलोचना करते है| इन्हे सुधारने के बारे में कभी नहीं बताते| हाँ एक आध अमिताभ ठाकुर और सूर्य प्रकाश जैसे जरूर सुधारे जा रहे है|
लोकतंत्र में जनता का सरकार पर विश्वास बने रहना सबसे जरुरी है| जनता का मतलब केवल एक विशेष जाति और समुदाय भर से नहीं होता| स्वस्थ लोकतंत्र में लेखक, चिंतक, आलोचक और विपक्ष सभी आवश्यक है| जिन मुद्दो को लेकर जनता सरकार बदल देती है वे मुद्दे कभी ख़त्म नहीं होते| सोशल मीडिया अब सशक्त हो रहा है| आखिर शिवपाल सिंह यादव ने जो बात कही है कि तहसीलदार और एसडीएम लेखपाल भर्ती के लिए वसूली कर रहे है तो उनके पास कोई पक्की खबर जरूर होगी| एक जिम्मेदार कैबिनेट मिनिस्टर के नाते उन्होंने सोच समझ कर ही बयान दिया होगा| मगर सोशल मीडिया में इसके बदले में प्रतिक्रिया आई है उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता| आखिर जनता क्यों कहने लगी- मंत्री जी गुस्सा हो रहे हो या “बता रहे हो कि रिश्वत किसे देना है”? जाहिर है सरकार के बारे में आम जनता की राय ईमानदार सरकार की नहीं है| जनता की इस प्रकार की अभिव्यक्ति सरकार की छवि पर लगे हुए दाग को प्रदर्शित करती है| अब सत्ता के लिए “ये दाग अच्छे है या फिर इन्हे धोना है” इस पर फैसला युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को करना है|