लखनऊ: उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार शाहजहांपुर के पत्रकार जगेन्द्र सिंह के हत्यारोपी राज्यमंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा के साथ अफसरों के साथ बदसलूकी करने वाले राज्यमंत्री कैलाश चौरसिया के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने को लेकर पसोपेश में है। दोनों प्रकरण में प्रदेश में कहीं न कहीं लगातार आंदोलन जारी है लेकिन सरकार इनके खिलाफ कार्रवाई करने से बच रही है। अब तो लगने लगा है कि जातीय संतुलन साधने में सरकार प्रदेशभर से उठ रही आवाज की अनसुनी कर रही है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जगेन्द्र के परिवार को न्याय दिलाने की बात कहकर उम्मीद जतायी थी, परंतु अभी तक कार्रवाई न होने से सरकार के खिलाफ आक्रोश उबलने लगा है। पत्रकार जगेन्द्र सिंह ने मरने से पहले तहसीलदार के सामने बयान दिया था। जगेन्द्र का मृत्यु पूर्व बयान वाट्सएप के जरिये प्रदेश, देश के साथ देश के बाहर लोगों के बीच है। जगेन्द्र ने मंत्री को आरोपित किया है और विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट में उन्हें सजा दिलाने के लिए यह बयान काफी है। अदालतें मानती हैं कि आखिरी समय में व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलता। इतनी किरकिरी के बावजूद सरकार आखिर वर्मा पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है। असल में राम मूर्ति सिंह वर्मा लोध जाति के हैं और 20 जिलों में लोध जाति का प्रभाव है। मुख्यमंत्री की पत्नी डिंपल यादव के संसदीय क्षेत्र कन्नौज में भी लोध जाति है और राममूर्ति वर्मा का अपनी बिरादरी में प्रभाव है। इस वजह से सरकार चाहते हुए भी वर्मा पर कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। यही स्थिति कैलाश चौरसिया के भी साथ है। राज्य के अफसर और उनके विभिन्न संगठन जिलों-जिलों में आंदोलन कर रहे हैं लेकिन कैलाश चौरसिया भी जस के तस बने हुए हैं। पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी सपा सरकार के लिए पिछड़ी जातियों का संतुलन साधना मजबूरी है।
राममूर्ति सिंह वर्मा तथा कैलाश चौरसिया के प्रकरण पर सपा के थिंक टैंक माने जाने वाले प्रोफेसर राम गोपाल यादव के साथ ही कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने इनके खिलाफ कोई सुबूत मिलने पर ही कार्रवाई की बात कही है। अब जैसे-जैसे प्रकरण पुराना होता जाएगा, सुबूत मिलना काफी कठिन हो जाएगा। राममूर्ति सिंह वर्मा के खिलाफ मजबूत गवाह मानी जाने वाली एक महिला ने गवाही देने से इन्कार कर दिया है।