फर्रुखाबाद:शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र सिंह को इसलिए ज़िंदा जला दिया गया, क्योंकि उसने प्रदेश के मंत्री राममूर्ति वर्मा के कामकाज पर सवाल उठाए थे। कोई ढाई सौ किलोमीटर दूर श्रावस्ती जिले के टीवी पत्रकार संतोष कुमार विश्वकर्मा के खिलाफ वहां के डीएम श्रीमान जुबैर अली हाशमी इसलिए कार्यवाई चाहते हैं क्योंकि उसने प्रदेश के ताकतवर सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव से सवाल पूछने की हिमाकत की थी।
जी हां, ये यूपी है। यहां कानून का नहीं बल्कि बाहुबली मंत्रियों का राज चलता है। शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र की गलती क्या थी कि उसे जान से हाथ धोना पड़ा? जगेंद्र एक ई-अखबार चला रहे थे जो फेसबुक पर ‘शाहजहांपुर समाचार’ के नाम से आज भी मौजूद है। पढ़ने पर आपको पता चलेगा कि वे अपने शहर से जुड़ी तकरीबन सभी छोटी-बड़ी खबरें इसपर देते थे। मुश्किल तब हो गई जब उन्होंने स्थानीय विधायक और सपा सरकार में मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ खबरें लिखीं।
वर्मा और उनके आदमियों पर एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बलात्कार का आरोप लगाया। ये घटना यूपी के सारे अखबारों में प्रमुखता से छपी। इनमें दैनिक जागरण, हिंदुस्तान और अमर उजाला जैसे अखबार शामिल हैं। जगेंद्र ने अपने ई-अखबार शाहजहांपुर समाचार में भी इसे प्रकाशित किया। इससे पहले भी वे वर्मा की संपत्तियों और उनके कथित भ्रष्टाचार के बारे में लगातार लिखते रहे हैं। जाहिराना तौर पर मंत्री राममूर्ति वर्मा जगेंद्र से बेहद खफ़ा थे।
सबसे पहले 28 अप्रैल को जगेंद्र के साथ मारपीट हुई, जिसमें उनका पैर तोड़ दिया गया। बकौल जगेंद्र, वे सरकार के आला अफसरों से मिले और अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई। उनके मुताबिक उसके बाद उल्टे पुलिस ने खुद उन्हीं के खिलाफ लूट, अपहरण और हत्या की साजिश का मामला दर्ज कर दिया। 22 मई को शाम पांच बजे उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया, ‘राममूर्ति वर्मा मेरी हत्या करा सकते हैं। इस समय नेता, गुंडे और पुलिस सब मेरे पीछे पड़े हैं, सच लिखना भारी पड़ रहा है ज़िंदगी पर …… विश्वस्त सूत्रों से सूचना मिल रही है कि राज्य मंत्री राममूर्ति वर्मा मेरी हत्या का षड़यंत्र रच रहे हैं और जल्द ही कुछ गलत घटने वाला है।‘
31 मई को जगेंद्र की कई ख़बरों में से दो पोस्ट राममूर्ति वर्मा के खिलाफ हैं। एक में वे सवाल उठाते हैं:-‘राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा के पास कहां से आई अरबों की संपत्ति? दूसरी खबर में वे लिखते हैं:-‘बलात्कारियों को बचाने में जुटे सपा नेता।’ ये सब जगेंद्र के ई अखबार पर आज भी उपलब्ध है। इसका लिंक है, https://www.facebook.com/spnnewsb और अगले ही दिन एक जून को पुलिस उनके घर जा धमकती है। वे अंदर से दरवाजा बंद करके कहते हैं कि चले जाओ, वर्ना मैं आत्महत्या कर लूंगा। उनकी पुकार को अनसुना कर पुलिस वाले दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुस जाते हैं। पेट्रोल में सराबोर जगेंद्र परिवार के सामने ही जल जाते हैं। पुलिस कह रही है कि आग खुद उन्होंने लगाई, जबकि जगेंद्र के परिवार के मुताबिक आग पुलिस ने लगाई। असलियत क्या है ये जांच से पता पड़ेगा। मगर क्या वही पुलिस ठीक जांच कर सकती है जिस पर जलाने का आरोप है?
जगेंद्र को लखनऊ में भर्ती कराया जाता है। जहां आठ जून को वो मौत से हार मान लेते हैं। यहां महत्वपूर्ण ये है कि मौत से पहले मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में जगेंद्र ने सीधे-सीधे पुलिस को अपनी हत्या का ज़िम्मेदार ठहराया है। इसमें उन्होंने राममूर्ति वर्मा का नाम भी लिया है।राममूर्ति वर्मा के खिलाफ मामला तो दर्ज हुआ है। इसके अलावा उनपर कोई कार्यवाई नहीं हुई। वे आज भी मंत्री हैं। सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव सफाई दे रहे हैं कि ‘एफ़आईआर लिख देने भर से कोई दोषी नहीं हो जाता।’ उनकी बात अगर सही मान भी ली जाए तो फिर उनसे पूछा जाना चाहिए कि जगेंद्र के खिलाफ भी तो सिर्फ एफआईआर ही लिखी गई थी। फिर उन्हें पुलिस क्यों अपराधियों की तरह पकड़ने गई थी? क्या मंत्री के लिए कानून कोई और तथा जनता के लिए कोई और है? असली बात तो ये है कि यूपी में ताकतवर लोगों से सवाल पूछना आज एक जुर्म है। ये अघोषित नहीं बल्कि घोषित रूप से एलान कर दिया गया है।
उदाहरण है पत्रकार संतोष कुमार विश्वकर्मा का। 5 जून को प्रदेश के ताकतवर मंत्री और मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल यादव श्रावस्ती दौरे पर आए। वहां संतोष ने पत्रकार की हैसियत से उनसे सवाल पूछा। सवाल था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री की तस्वीर जा रही है ऐसा उचित है क्या? संतोष आईबीएन के स्ट्रिंगर हैं।सवाल पूछना पत्रकार का काम है और उसका जबाव देना या न देना मंत्री का अख्तियार है। मंत्री जी इस पर नाराज़ हो गए। मगर बात यहीं ख़त्म नहीं हुई। जिले के डीएम ने तुरंत एक चिट्ठी लिखी और ‘संबंधित रिपोर्टर के विरुद्ध अपने स्तर से यथोचित कार्रवाई करने का’ आग्रह किया। अब जिलाधिकारी महोदय कानून नहीं जानते हों ऐसा तो नहीं। पर ये पत्र उन्होंने खुद लिखा या किसी दबाव में ये तो खुद वे ही बता सकते हैं।
इससे पहले भी अलीगढ़ और झांसी में पत्रकारों को प्रताड़ित करने और उनके खिलाफ मुक़दमे कायम करने के मामले हुए हैं। बात साफ़ है कि प्रदेश में साफगोई से पत्रकारिता करना आज बड़ी टेढ़ी खीर है। राज्य के ताकतवर नेताओं के खिलाफ एक शब्द बोलने और लिखने का मतलब है आफत मोल लेना। ये कैसी सरकार है जिसके राज्य में पत्रकारों को ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं?
वैसे हमें हैरानी इन नेताओं पर कम और उन लोगों पर ज्यादा है जिन्होंने जीवन भर ‘आदर्श पत्रकारिता और कलम की आजादी’ के नाम पर चुपड़ी रोटी खाई है। घटना को हुए तकरीबन दो हफ्ते होने को आए मगर दिल्ली के मीडिया संगठनों और बात बात में कैंडल मार्च निकालने वाले ‘सभ्य समाज’ को जगेंद्र की मौत में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की हत्या क्यों नज़र नहीं आई? क्या संविधान में प्रदत्त अधिकार सिर्फ बड़े शहरों के बड़े पत्रकारों के लिए हैं? देश के छोटे शहरों में भ्रष्ट तंत्र और गुंडागर्दी के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाले भाषाई पत्रकारों की सुनवाई कैसे और कहां होगी?
सोचिए, यह कहते-कहते दुनिया से एक मीडियाकर्मी चला गया कि, ‘मंत्री जी को उससे बदला लेना ही था तो वो उसे पिटवा देते। उन्होंने मुझे जलाया क्यों?’ ये सवाल सिर्फ राममूर्ति वर्मा से नहीं बल्कि लेखक सहित उन सबसे है, जिनपर मीडिया की आजादी को कायम रखने की बड़ी ज़िम्मेदारी है।