छुट्टियों में मिड डे मील का सच, सरकार से मास्टर साहब तक की अपनी अपनी मजबूरियां

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Editorहर वर्ष उत्तर प्रदेश में गर्मियों की छुट्टियों में सरकारी स्कूलों में बाटने वाले मुफ्त के मिड डे मील के जारी रखने का फरमान होता है| ज्यादातर सूखा पद जाने के कारण| हालाँकि इस बार सूखा नहीं पड़ा बल्कि मौसम की खराबी से रबी की फसल (खासकर गेंहू और दलहन) जरूर ख़राब हो गयी| मक्का का उत्पादन अच्छा होने के आसार लगने लगे है| मगर बच्चो को मुफ्त मिड डे मील छुट्टियों में जरूर मिलेगा| इसके लिए 44 डिग्री पारे की आग उगलते तापमान में उन्हें स्कूल जाना पड़ेगा| हाँ पढ़ाई नहीं होगी| आखिर इस छुट्टियों वाले मिड डे मील के मायने क्या है, मंशा क्या है और परिणाम क्या होंगे ये जानना जरुरी है|

मास्टरों के लाभ हानि-
प्रदेश और केंद्र में अलग अलग राजनैतिक दलों की सरकार है| इसलिए केंद्र सरकार की हर योजना में लकूना लगाना प्रदेश सरकार की राजनैतिक मजबूरी है भले ही इसके लिए जनता की ऐसी तैसी हो जाये| दर्जनो केंद्र सरकार की योजनाये जिनसे आम जनता को लाभ हो सकता है उनका उत्तर प्रदेश में अनुपालन सिर्फ इसलिए बहुत अच्छा नहीं होता क्योंकि प्रदेश में भिन्न दल की सरकार है और उस योजना के नाम के आगे समाजवादी या बहुजन नहीं लिखा गया था या फिर है| परिषदीय सरकारी प्राथमिक शिक्षा के लिए खुले स्कूल जो केंद्र और राज्यांश के भरोसे चलते है उनमे मिड डे गर्मियों की छुट्टियों में मिड डे मील बनेगा और जरूर बनेगा ऐसा आदेश लागू करने के लिए प्रदेश मुख्यालय से लेकर जिला मुख्यालय तक बहुत जोर शोर चल रहा है| कुछ मास्टर (सभी नहीं) इसका विरोध कर अखबारों में छप रहे है| इनमे से विरोध करने वाले ज्यादातर मास्टर वे है जो स्कूल में बच्चो को किताब खोलकर पढ़ाने नहीं जाते| और जो विरोध नहीं कर रहे है उनमे से कई मिड डे मील के खाद्यान को बाजार में बेच कर बैंक में मासिक बचत जमा कर (आरडी) चलाते है| गर्मियों में मिड डे मील के फरमान से उनके चेहरे पर ख़ुशी का भाव है| हालाँकि स्कूलों में मिड डे मील की मॉनीटरिंग के कारण अब हिस्सा नोडल कर्मचारियों और अधिकारियो को भी देना पड़ेगा| मगर बिलकुल नहीं से कुछ नहीं तो अच्छा| बच्चे तो स्कूल में आने से रहे और मिड डे मील बनने से रहा|

सरकारी हिसाब में जोड़ सही बैठाने को होता है आदेश?
प्रदेश मुख्यालय के वातानुकूलित सरकारी राजसी स्टाइल वाले भवन में बैठ कर फरमान जारी करने से पहले न तो जिलों के जिलाधिकारी या बेसिक शिक्षा अधिकारियो से जरुरत पूछी गयी और न ही केंद्र सरकार से पूछा गया| असली खेल शिक्षा विभाग की जगह खाद्य एवं आपूर्ति विभाग का है| खाद्यान का उपभोग जो देना है| अगर इस वर्ष उपभोग कम हो गया तो अगले वर्ष का केंद्र का कोटा कम हो जायेगा| इसमें जनता के धन की बर्बादी से कोई सरोकार किसी को नहीं| बात सिर्फ निजी नुक्सान और नफे की है| चूँकि मिड डे मील की मॉनिटरिंग ऑनलाइन होने लगी है और इस वर्ष इस स्कूलों में बनने वाले मिड डे मील के ऑनलाइन रिकॉर्ड के हिसाब से बहुत कम बच्चे स्कूल पहुंचे| लिहाजा मिड डे मील के खाद्यान का उपभोग भी कम हुआ| लखनऊ में बैठे अफसरों के माथे पर चिंता के भाव इसलिए है क्योंकि इस वर्ष मिड डे मील के उपभोग में खाद्यान का समायोजन कम हुआ है| छुट्टियों में स्कूलों में मिड डे मील बाट देने के पीछे की मंशा भी आम जनता को लाभ पहुचाने की कम उपभोग दिखाने की ज्यादा है| वर्ना ये प्रदेश के सभी जिलो के जिलाधिकारी जानते है गर्मियों की छुट्टियों में मास्टर बीएलओ, और जनसंख्या गणनक की ड्यूटी करेंगे| शिमला और नैनीताल घूमेंगे न की दूर दर्ज गाव में जाकर मिड डे मील बनाएंगे और बच्चो की प्लेट में सजाकर उनके घर घर जाकर उनका पेट भरेंगे| इतने संवेदनशील कब से हो गए उत्तर प्रदेश के मास्टर|

इससे पहले के वर्ष में भी इस प्रकार के आदेश होते रहे है| मगर जहाँ तक याद है प्रदेश के कई जिलाधिकारी पत्र भेज कर सरकार को सूचित करते भी रहे है कि गर्मियों की छुट्टियों में मिड डे मील बाटना संभव नहीं और गड़बड़ी की आशंका बहुत है| लिहाजा कुछ दिनों के बाद बंद कर दिया जाता रहा है| लगभग हर बार होता रहा फिर भी हर बार “वो” कौन है जो गर्मियों की छुट्टियों में बच्चो को स्कूलों में मिड डे मील खिलाने का अतार्किक जारी करता है? बच्चे पढ़ने नहीं आते तो खाना खाने कौन आएगा…? मास्टर पढ़ाने नहीं जाते तो खाना खिलाने कौन जाएगा? मोबाइल पर रिपोर्टिंग में स्कूल खुलेगा, मिड डे मील बनेगा और नोडल अधिकारी को गर्मियों की छुट्टियों में घूमने फिरने और शादी विवाह में बजट से अतिरिक्त हुआ खर्च भी मिड डे मील के घोटाले की हिस्सेदारी से मिल जायेगा|