लखनऊ: ‘मरने के लिए जीना होगा ‘ मरीज की जिंदगी की उम्मीद डॉक्टर छोड़ देते हैं। ऐसी मौतें मरीजों को अंतिम समय में कष्ट देती हैं। इसके लिए भारत में विवादास्पद इच्छा मृत्यु की मांग उठी है। ऐसे में इंडियन सोसायटी ऑफ क्रिटिकल केयर एवं इंडियन एसोसिएशन ऑफ पैलिएटिव केयर ने ‘एंड ऑफ लाइफ ‘ कानून का प्रस्ताव तैयार किया है। डॉक्टर इस कानून को वर्ष 2015 को पारित कराने के लिए प्रयासरत हैं।
आगरा में नयति हेल्थ केयर एंड रिसर्च के कार्यक्रम में इंडियन सोसायटी ऑफ क्रिटिकल केयर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आरके मणि के नेतृत्व में वर्ष 2005 में यूथनेशिया (इच्छा मृत्यु) की मांग पर लिमिटेशन ऑफ लाइफ सपोर्ट का प्रस्ताव तैयार किया गया था। इसमें वर्ष 2008 और सितंबर 2014 में संशोधन किया गया। अब इसे एंड ऑफ लाइफ का नाम दिया गया है। डॉ. आरके मणि ने बताया कि कई केस में मरीज के बचने की उम्मीद नहीं होती है। इसके बाद भी इलाज चलता रहता है। ऐसे केस में दवाओं से मरीज को शारीरिक कष्ट होता है। वह कुछ ज्यादा दिन जिंदा रहता है, तो उसकी पीड़ा भी बढ़ती जाती है। इसमें डॉक्टरों को परिजनों की सहमति से मरीज की एंड ऑफ लाइफ तय करने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके बाद बीमारी के इलाज के बजाय दर्द को कम करने का इलाज किया जाना चाहिए।
खुद तय कर सकें बेहोश होने पर इलाज
बेहोश होने के साथ कोमा में जाने पर मरीज का कई महीनों तक इलाज चलता रहता है। कई केस में मरीज के बचने की उम्मीद भी नहीं होती है। ऐसे में परिजन अपने मरीज का सामाजिक कारणों से अस्पताल का महंगा इलाज कराते हैं। डॉ. आरके मणि ने बताया कि कॉमन कॉज एनजीओ ने याचिका दायर की है। इसमें मांग की गई है कि हर व्यक्ति का अधिकार है कि वह भविष्य में कोमा और बेहोश होने पर अपने इलाज को खुद तय कर सके। वह जो भी लिखे, उसके बेहोश होने पर सरकार द्वारा वही इलाज कराया जाना चाहिए।