10 कारण : कैसे जीती AAP, क्यों हारी BJP, क्यों नहीं खुला कांग्रेस का खाता

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aap-bjp-congress_10_02_2015दिल्ली:वक्त पर संभाला मैदान : आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनावों में मिली पराजय के बाद ही मैदान संभाल लिया था। मतदाताओं से सीधा संपर्क साधना शुरू कर दिया गया था। वहीं भाजपा और कांग्रेस इस लिहाज से काफी पीछे रहीं।

पिछली गलतियों की माफी : केजरीवाल ने अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत पिछली गलतियों खासतौर पर बीच में ही मुख्यमंत्री पद छोड़ने को लेकर माफी मांगी। मतदाताओं को विश्वास दिलाया कि अबकी बार मौका दो, भागकर नहीं जाऊंगा।

मफलरमैन बनाम 10 लाख का सूट : अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ एक कार्यक्रम में मोदी ने कथिततौर पर दस लाख रुपए का सूट पहना था। आम आदमी पार्टी ने इस बात को खूब भूनाया। केजरीवाल के मफलरमैन की छवि को आगे किया। इसका बड़ा फायदा पार्टी को मिला।

मुस्लिमों का समर्थन आप के साथ : माना जाता है कि अधिकांश मुस्लिम कांग्रेस को वोट करते हैं। इस बार कांग्रेस की हालत पतली रही। मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से आप के खाते में चला गया। वहीं पिछले चुनावों में यही वोट बैंट आप और कांग्रेस के बीच बंटा हुआ था।

कांग्रेस की हार से आप को फायदा : पार्टियों का वोट शेयर देखने से साफ है कि भाजपा के वोट प्रतिशत में कोई फर्क नहीं आया है। वहीं कांग्रेस के खाते के सभी वोट आप के खाते में चले गए हैं।

भाजपा ने दिल्ली को हल्के में लिया : भाजपा ने लोकसभा चुनावों के बाद के विधानसभा चुनावों में आसान जीत दर्ज की। लोकसभा में उसकी जीत का स्कोर 7-0 रहा था। यही कारण है कि उसने दिल्ली को हल्के में लिया। वह आम आदमी पार्टी के प्रभाव और दिल्ली के मतदाताओं का मूड नहीं भांप सके।

नहीं चला किरण बेदी का जादू : भाजपा ने जब किरण बेदी को सीएम पद का प्रत्याशी बनाया तो लगा कि इस मास्टर स्ट्रोक के जरिए पार्टी ने बाजी मार ली है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। स्थानीय भाजपा नेताओं को किरण की एंट्री रास नहीं आई।

वोटों का ध्रुवीकऱण नहीं : इस बार वोटों का ध्रुवीकऱण नहीं हुआ। खास बात यह भी रही कि आम आदमी पार्टी ने ऐसा कोई हथकंड नहीं अपनाया। शामी इमाम समर्थन करने आगे गए तो कहा, हमें आपकी जरूरत नहीं।

मोदी का जादू नहीं चला : पीएम नरेंद्र मोदी ने सोचा था कि अन्य राज्यों की तरह यहां भी उनकी लहर चलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जहां मोदी ने रैलियां की, वहीं भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।

एंटी इंकम्बेंसी : दिल्ली में भाजपा को एंटी इंकम्बेंसी का कोई फायदा नहीं हुआ। अन्य राज्यों की तरह यहां पार्टी केंद्र सरकार में अपनी सरकार होने का फायदा नहीं उठा सकी।