सीबीआई के गाजियाबाद स्थित इस विशेष न्यायालय के इस निर्णय को भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान में केंद्रीय जांच ब्यूरो की एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। इस मामले की जांच कर सीबीआई ने अपनी दलील को साबित करने के लिये उन दस्तावेजों अदालत में जमा किया जिनके आधार पर नीरा का बच निकलना मुश्किल था। सीबीआई अधिकारियों ने नीरा यादव द्वारा लिये गये निर्णयों की फाइलों की नोटिंग को भी अदालत में सबूत के तौर पर पेश किया था जिसमें नीरा यादव ने अपनी कलम से नियमों को तोड़ा था और उस पर मनमानी टिप्पणियां करके अपनी पसंद के लोगों को कौड़ियों के भाव जमीन का आवंटन कर दिया था।
नीरा यादव पर आरोप था कि 1994-96 में जब वह नोएडा प्राधिकरण की अध्यक्ष थीं तब तब उन्होंने प्लॉट आवंटन के मामले में नियमों का उल्लंघन कर अपने चहेते लोगों को उपकृत किया था। इनमें फ्लेक्स इंडस्ट्रीज़ के मालिक अशोक चतुर्वेदी के अलावा नोएडा के कैलाश हॉस्पिटल के मालिक महेश शर्मा का भी नाम है। 1997 में Noida Entrepreneurs Association की प्रार्थना पर सीबीआई ने 1997 में इस मामले की जांच का मामला दर्ज किया था। और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने 1998 में इस मामले में नीरा यादव के खिलाफ जांच शुरू की थी। सन 2002 में इस मामले में आरोप पत्र दाखिल किया गया था।
इस मामले में 1971 बैच की यूपी कैडर की इस सेवानिवृत्त अधिकारी के साथ फ्लेक्स कंपनी के सीईओ अशोक चतुर्वेदी को भी दोषी करार दिया गया है। नीरा यादव और अशोक चतुर्वेदी दोनों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। इस मामले में नोएडा के कैलाश अस्पताल के मुखिया महेश शर्मा भी आरोपों के घेरे में है।
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से हमेशा से चर्चा में रही हैं। नीरा यादव को मुलायम सिंह का भी करीबी माना जाता है। मुलायम सिंह ने अपने कार्यकाल में नीरा यादव को बचाने की काफी कोशिशें भी की थी। जब सीबीआई ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भण्डारी से नीरा यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी तब मुलायम सिंह ने ही रोमेश भण्डारी को ऐसा करने से रोक दिया था। मुलायम की सलाह के बाद रोमेश भण्डारी ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज करने की अनुमति देने के बजाय इस मामले की जांच के लिये अलग समिति ही बना दी थी।
नीरा यादव देश की पहली ऐसी आईएएस अफसर हैं जिन्हें भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मुख्य सचिव के पद से हटना पड़ा था।
यहां पर उल्लेखनीय बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार की प्रमुख सचिव रह चुकी इस भ्रष्ट महिला आईएएस अधिकारी को उसके अंजाम तक एक तेज तर्रार महिला आईपीएस अधिकारी ने ही पहुंचाया है। सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा की महिला आईपीएस अधिकारी तिलोत्तमा वर्मा ही इस मामले को देख रही थीं।
तिलोत्तमा वर्मा खुद भी यूपी कैडर से आती हैं और इस समय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली सीबीआई में हैं। सन 2000 में हाथरस का पुलिस अधीक्षक रहने के दौरान एक मुठभेड़ में दो बैंक लुटेरों को मार गिराने के लिये तिलोत्तमा वर्मा को राष्ट्रपति का शौर्य पदक भी मिल चुका है।