थोड़ी देर के लिए भयानक कल्पना कर लेते हैं। आज मैंने मेरे कुछ साथियों से पूछा कि गूगल अमेरिका की निजी कंपनी की बजाय भारत सरकार के अधीन होता या किसी भी राज्य सरकार के तहत काम करता तो कैसा होता? सभी का जवाब था कि फिर यह अपनी गुणवत्ता खो देता। इसकी रफ्तार बिल्कुल खत्म हो जाती और इसकी सर्च क्षमता 10 फीसदी भी नहीं रहती। फिर एक दिन इसका भी वही हश्र होता जो ‘तार’ का हुआ है। गूगल इतिहास नहीं बनाता, बल्कि खुद इतिहास बन जाता। संभव है कि इसकी हालत दूरदर्शन चैनल जैसी हो जाती जो आज तक, इंडिया टीवी, जी न्यूज और दूसरे तमाम निजी चैनलों के आने के बाद हो चुकी है। मेरा मानना है कि अगर गूगल सरकारी कंपनी होता तो इसकी हालत भले ही कैसी भी होती, लेकिन इसके नियम कुछ इस प्रकार के होते –
– गूगल की दुनिया में आपका स्वागत है। अगर आप इस पर अपना ईमेल खाता खोलना चाहते हैं तो अपना जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, अंक तालिका, राशन कार्ड की कॉपी लेकर हमारे दफ्तर में आएं। यहां आपको एक लंबी लाइन में धक्के खाने होंगे। यहां आपकी मदद करने वाला, विनम्रता से सहयोग करने-समझाने वाला कोई नहीं मिलेगा। कृपया अपनी जोखिम पर ही यह यात्रा करें।
– ध्यान दें कि मृत्यु प्रमाण पत्र शब्द बड़े बाबू की गलती से टाइप हो गया है। उस वक्त वे दारू के नशे में थे। असुविधा के लिए खेद है। बाकी आप खुद समझदार हैं।
– एक परिवार को सिर्फ एक ही ईमेल आईडी देय होगी। सभी दस्तावेज जमा कराने के बाद हम आपका ईमेल खाता बनाएंगे और पासवर्ड भी हम ही तय करेंगे। खाते की सूचना आपको दो साल बाद डाक से भेज दी जाएगी। इसके लिए आप डाकिए से संपर्क में रहिए। होली-दिवाली उसे बख्शीश, भेंट देते रहिए। इस संबंध में कोई पत्राचार नहीं किया जाएगा। अगर किसी ने कोई चिट्ठी भेजी तो बड़े बाबू उसे कूड़ेदान में फेंक देंगे। वैसे भी हम जनता के सभी पत्र बिना पढ़े ही कूड़ेदान में फेंकते हैं। इसका हमें लंबा अनुभव है।
– ईमेल खाते के लिए शुल्क देना होगा। हालांकि शुल्क के साथ-साथ बड़े बाबू को घूस भी देनी होगी। सामान्य श्रेणी के नागरिक अपने ईमेल खाते से एक दिन में अधिकतम 10 ईमेल भेज सकेंगे। अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिक 12 ईमेल प्रतिदिन भेज सकते हैंं, लेकिन अगर आप अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से हैं तो आपके लिए कोई बंदिश नहीं है। आप एक ही दिन में कितने भी ईमेल भेज सकते हैं। आपसे खाता बनवाने का कोई शुल्क भी नहीं लिया जाएगा। हालांकि बड़े बाबू घूस आपसे भी लेंगे।
– अगर आप अपना पासवर्ड बदलना चाहते हैं तो खुद ही अपने खाते के कारीगर न बनें। ऐसा किया तो हम उसे बंद कर देंगे और उसे दोबारा शुरू कराने के लिए लाइन में धक्के खाने से लेकर बाबू को घूस देने की पूरी रस्म फिर से अदा करनी पड़ेगी। इसके लिए आप हमारे पास आएं। इस दौरान आपकी ऊपर वाली जेब में एक हजार रुपए का गांधी छाप नोट होना जरूरी है। जब आप हमारे दफ्तर में जाएंगे तो यह नोट उस पनवाड़ी को देते जाइए जिसकी बड़े बाबू से जान-पहचान है। वो क्या है कि कुछ ही दिनों पहले हमारे ही दफ्तर का एक चपरासी सौ रुपए की घूस लेता पकड़ा गया। उसके बाद से बड़े बाबू सिर्फ पहचान के लोगों से ही घूस लेते हैं। अनजान लोगों से पैसा वह पनवाड़ी ही वसूलता है जिसके लिए बड़े बाबू उसे कमीशन देते हैं। आखिर हमारी भी तो कोई इज्जत-आबरू है। सबके सामने घूस लेते शर्म आती है ना!
– यह जरूरी नहीं कि आपका पासवर्ड उसी दिन बदल ही जाए। हो सकता है कि शर्मा जी अलमारी की चाबी घर भूल आए हों। यह भी हो सकता है कि वे कल अपने मुन्ने का मुंडन कराने सालासर बालाजी या खाटू श्यामजी चले जाएं। ऐसी स्थिति में काम करना हमारे लिए संभव नहीं। कृपया हमारी परेशानी समझिए, हमें और परेशान मत कीजिए। हम पहले से ही बहुत दुखी हैं।
– यह अच्छी बात है कि आप हमारी कंपनी द्वारा बनाए गए सर्च इंजन का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन ऐसा करके आप कोई अहसान नहीं कर रहे हैं। आप इस पर कुछ खोज रहे हैं तो इस भ्रम में मत रहिए कि इस जन्म में उसे ढूंढ ही लेंगे। हो सकता है कि ढूंढने से इस दुनिया में आपको भगवान भी मिल जाए लेकिन गूगल पर कुछ नहीं मिलेगा। यह सरकारी है भाई। यहां ऐसे ही काम होता है। संभवत: आपके पिछले जन्मों के कुछ खोटे कर्म भोगने बाकी रह गए जो आप हमारी सेवा ले रहे हैं। शायद आप हमें जानते नहीं। हमें सिर्फ आराम करना पसंद है। हमें सिर्फ वेतन-भत्तों से मतलब है। हम जब भी मुंह खोलते हैं तो और वेतन की बात करते हैं। इसलिए बेहतर है कि आप कोई दूसरा रास्ता खोज लें। इससे आप भी सुखी रहेंगे और हम भी सुखी रहेंगे। यहां बरामदे में भीड़ मत कीजिए, क्योंकि यहां दोपहर को बड़े बाबू खटिया डालकर थोड़ी नींद मार लेते हैं। यह जगह उन्हीं की है।
– आशा है आप हमारी सेवाओं से पूर्ण संतुष्ट हो गए हैं, क्योंकि मंत्री जी द्वारा शुरू की गई टेलीफोन लाइन पर हमें एक भी शिकायत नहीं मिली है। और भविष्य में कभी कोई शिकायत मिलेगी भी नहीं, क्योंकि हमने कोई टेलीफोन यहां लगवाया ही नहीं।
अब इस भयानक सपने से बाहर आ जाइए। यह पूरा हो चुका है। और ईश्वर से प्रार्थना कीजिए कि हे भगवान, आप टमाटर 500 रुपए किलो कर दीजिए, पेट्रोल की कीमतें और बढ़ा दीजिए, मेरे देश के भ्रष्ट नेताओं की पत्नियों को सदा सुहागन का वरदान दे दीजिए, लेकिन प्लीज, प्लीज, प्लीज यह भयानक सपना कभी सच मत करना। गूगल जैसा है, उसे वैसा ही रहने दो। इसे किसी सरकार और बड़े बाबू की काली नजर से बचाए रखना।