फर्रुखाबाद:हिंदू पौराणिक शास्त्रों के अनुसार राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण यानी बिहारी जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए सुख-समृद्धि के सभी द्वार खुल जाते हैं। श्रीकृष्ण और राधा अपने अटूट निस्वार्थ प्रेम के कारण ही सच्चे प्रेम के प्रतीक माने गए हैं।
इस संबंध में एक बहुत ही रोचक प्रसंग है। देवर्षि नारद राधा की महिमा और ख्याति देखकर उनसे ईर्ष्या करने लगे। इसी ईर्ष्या वश वे श्रीकृष्ण से राधा को दिए गए महत्व को जानने के लिए उनके पास पहुंचे। जब वे श्रीकृष्ण के पास पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने नारदजी से कहा कि मेरे सिर में दर्द है।
तब देवर्षि ने कहा प्रभु आप बताएं मैं क्या कर सकता हूं? जिससे आपका सिर दर्द शांत हो। श्रीकृष्ण ने कहा आप मेरे किसी भक्त का चरणामृत लाकर मुझे पिला दें। उसी चरणामृत से मुझे शांति मिलेगी। नारदजी से सोच में पड़ गए कि भगवान का भक्त तो मैं भी हूं, परंतु मेरे चरणों का जल श्रीकृष्ण को कैसे पिला सकता हूं?
ऐसा करना तो घोर पाप है और इससे निश्चित ही मुझे नर्क जाना पड़ेगा। यह सोचते हुए वे देवी रुकमणी के पास पहुंचे और श्रीकृष्ण की वेदना कह सुनाई। रुकमणी ने भी देवर्षि नारद की बात का समर्थन किया और कहा कि प्रभु को अपने चरणों का जल पिलाना घोर पाप है।
तब नारदजी ने सोचा राधा भी श्रीकृष्ण की भक्त है उसी से प्रभु का कष्ट दूर करने की बात करनी चाहिए। वे राधा के पास पहुंच गए और श्रीकृष्ण के सिर दर्द और उसके निवारण के लिए उनके भक्त के चरणामृत की बात कही।
राधा ने तुरंत ही एक पात्र में जल भरा और उसमें अपने पैर डालकर वह पात्र नारदजी देते हुए कहा कि मैं जानती हूं ऐसा जल श्रीकृष्ण को पिलाना बहुत बड़ा पाप है और मुझे अवश्य ही नर्क भोगना पड़ेगा परंतु मेरे प्रियतम के कष्ट को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, नरक भी भोगना पड़ेगा तब भी मुझे खुशी ही प्राप्त होगी।
यह सुनकर देवर्षि नारद की आंखे खुल गई कि देवी राधा परम पूजनीय है। वे प्रभु श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त हैं। इसी वजह से भगवन श्रीकृष्ण राधे-राधे के जप से तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। तो फिर नारदजी भी राधे-राधे का जप करने लगे।