फर्रुखाबाद: सहज धारा के प्रेरता महात्मा रामचन्द्र जी महाराज आज ही के दिन अंतर्ध्यान हुए थे| दरअसल महात्मा जी का जन्म फरवरी 1873 को बसंत पंचमी के दिन जनपद में ही हुआ था| उसके पिता हरबक्स राय शहर के घुमना बाजार के पास नितगंजा में रहते थे| घर छोटा होने के कारण महात्मा रामचद्र पास में ही बने मुफ़्ती साहब की पाठशाला के एक कमरे में रहने लगे थे| पडोस के कमरे में जनपद के माने हुए मुसलमान संत भी रहते थे| वह उसी पाठशाला में पढाते है| उन्ही दिनों गंगा तट पर स्वामी ब्रह्मानन्द जी अपने प्रवास पर ए थे| जो गंगा तट पर ही सत्संग करते थे| महात्मा रामचंद्र अपने साथियों के साथ जाकर उनका सत्संग सुना करते थे|
स्वामी ब्रह्मानन्द उन मुस्लिम संत के साथ भी सत्संग करते थे| स्वामी जी उन मुसलमान सन्त को फर्रुखाबाद का कुतुव(सर्वोपरी संत) बताते थे| उन्हें जब भी समय मिलता था तो वह संत कुतुवे-वक्त हजरत मौलाना फजल अहमद खां साहब कुददुस के साथ सत्संग जरुर करते थे| यह सत्संग तकरीवन पांच वर्ष तक चला| उन्होंने इस संत की बहुत सेबा की और उनसे अनेको अनुभव लिए| 23 जनवरी 1866 को सांय पांच बजे मुसलमान संत ने रामचन्द्र को लौकिक रूप से अपना लिया| इसके दस माह बाद ही 11 अक्तूबर 1866 को महराज सन्त क़ुतुब ने रामचन्द्र को अपने पुरे अधिकार दे दिये| उन्होंने महात्मा रामचंद्र से गुरु दक्षिणा में के रूप में वचन लिया की दिन दुखियो की मदद करना और मखदूम(स्वामी) बनने का चेष्ठा भी ना करना|
रामचन्द्र महराज ने परिवारिक जीवन में रहते हुए भी जिगासुओ और पंसारियो का ज्ञान बांटा| उनके दो पुत्र व आठ पुत्रीयाँ थी| जिसमे से एक पुत्र व तीन पुत्री असमय ही काल के गाल में चली गयी| उनके पुत्र जगमोहन नारायण जी भी सहज भाव के साधक व महात्मा हुए| उनकी भी समाधि महात्मा की समाधि के निकट ही बनी है| 1923 में जगमोहन नारायण ने अपना विवाह किया और बाद में भण्डारा भी किया| अभी से प्रति वर्ष ईस्टर के मौके पर समाधि पर भण्डारा किया जाता है| 1928 ई0 में महराज एक समाचार पत्रिका फर्रुखसियर शुरू की|
1931 को भण्डारे के समय महात्मा जी का स्वास्थ्य असमय ही खराब हो गया| 14 अगस्त 1931 को महात्मा राम चन्द्र जी अंतर्ध्यान हो गये| महात्मा जी की समाधि फतेहगढ़ नवदिया के पास बनाई गयी जंहा प्रतिवर्ष मेला लगता है| [bannergarden id=”8″] [bannergarden id=”11″]