फर्रुखाबाद: 90 साल बाद आज भी गांव के लोग जब उस खून से लाल जमीन को याद करते है तो उनके रोगटे खड़े हो जाते है| गांव में जब भी ब्रिटिश हुकूमत की बात शुरू होती है तो लोग 1936 में गांव में हुए पुलिस अधीक्षक फतेहगढ़ की हत्या की घटना को याद कर बैठते है| आखिर क्या हुआ था उस दिन मोहम्दाबाद क्षेत्र के ग्राम पिपरगांव में की अंग्रेज पुलिस अधीक्षक फतेहगढ़ सहित चार की लाशें गिरा दी गयी| वही पुरे गांव को बम से उड़ाने का फरमान सुनाया गया| शायद चंद लोग ही इस घटना से परिचित होंगे| 15 अगस्त के चलते जेएन आई की टीम ने आप के जहन में इतिहास के पन्नो को छान कर जो जानकारी निकाली है वह बहुत दिलचस्प है| कई सबाल आप के मन में उठ रहे होंगे की पिपरगांव में किस ने एसपी व दरोगा की हत्या की थी?
बात उन दिनों की है जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था| पुरे देश में आजादी के लिए आलख जगायी जा रही थी| वही उसी दौरान मोहम्दाबाद क्षेत्र के ग्राम पीपरगांव में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक अलग ही चिंगारी भडक रही थी| इस चिंगारी का नाम था चिरौजीलाल पाल| चिरौजीउन दिनों सेना के जवान थे और सरहद पर तैनात थे| लेकिन लड़ाई के दौरान चिरौजी लाल के हाथ में दुश्मन की गोली लग गयी जिससे उन्हें सेना छोडनी पड़ी| सेना छोड़ कर वह अपने पीपरगांव में घर पर आ गये| चिरौजी लाल के चाचा रतिराम पाल उन दिनों हांकी के राष्ट्रीय टीम में कप्तान थे| वह भी गांव आयेहुए थे|
4 मार्च 1936 का दिन था गांव का प्रतिएक व्यक्ति अपने अपने काम में लगा हुआ था| चिरौजी लाल पाल के खेत से अनाज कट रहा था| अनाज उनके चाचा का नौकर रामसिंह काट रहा था| कटे हुए अनाज को वह चिरौजी के घर ना ले जाकर उनके चाचा रतिराम के घर पर ले जाने लगा जिसका उन्होंने विरोध किया| विरोध की स्थित में चाचा और भतीजे में विवाद हो गया तो चिरौजी ने गुस्से में नौकर के गोली मार दी जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी| अब तो आग में घी का काम करने वाली बात हो गयी रतिराम ने जब चिरौजी लाल को ललकारा तो बीच में गोली चलने के दौरान उनकी माँ आ गयी जिसे रतिराम की माँ को गोली लग गयी और रतिराम भी गम्भीर घायल हो गये|
घायल अवस्था में रतिराम तत्कालीन पुलिस अधीक्षक जीएस कोली के पास पंहुचे और मामले की जानकारी दी| शिकायत सुनते ही पुलिस अधीक्षक कोली खुद घटना पर पंहुचने के लिए निकला उसके साथ में दरोगा जयंतीप्रसाद भी था| पुलिस अधीक्षक लगभग शाम तकरीवन 6 बजे पीपरगांव पंहुचा और उसने चिरौजीलाल को जिंदा पकड़ने की योजना बनायी| तब तक अँधेरा हो चुका था| एसपी कोली ने चिरौजी को देखने के लिए टार्च जलायी तो रोशनी को देख कर चिरौजी ने पुलिस अधीक्षक कोली पर गोली चला दी| गोली चलाते समय चिरौजी लाल अपने मकान की छत पर खड़े थे फायरिंग की घटना में दरोगा जयंती प्रसाद को भी गोली से उड़ाया गया था| कुल मिलकर चार लाशे गिर चुकी थी और गांव की गली में खून की नदिया वह रही थी| वही चिरौजी ने उसी दिन सुबह अपनी ही लाइसेंसी बंदूक से गोली मार कर मौत को गले लगा लिया वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थे|
घटना की जानकारी जब पुलिस अधीक्षक की पत्नियों को हुई कोली दो पत्नियाँ रखता था| तो एक पत्नी ने गांव को बम से उड़ा देने की के आदेश जारी कर दिये लेकिन दूसरी पत्नी ने इस बात के लिए मना कर दिया की गलती पुरे गांव की नही है जिसने गलती की है वह मर चूका है जिसके बाद उस फरमान को खत्म कराया|
अंग्रेजी हुकूमत ने पुलिस अधीक्षक कोली व दरोगा जयंती प्रसाद की याद में एक कब्र गाँव में ही बना दी| तो वही दूसरी कब्र फतेहगढ़ सीओ के कार्यालय में पडोस में बने कब्रिस्तान में बनायी गयी| चिरौजी का परिवार अभी भी गांव में ही रह रहा है| कुछ लोगो ने अन्य जनपदों में नौकरी कर ली| लेकिन चिरौजी की यादे व गोलियों की गडगडाहट आज भी उनके मकान की कच्ची दीवारों में दफ्न है|
समाचार सहयोगी …….अबनीश यादव मदनापुर