फर्रुखाबाद:भगवान शिव के जीवन चरित्र में ज्ञान का सागर छिपा हुआ है। जब भगवान शिव की बारात गई, तब वे आमतौर पर घोड़ी पर सवार होने के बजाय बैल पर गए। इससे एक स्पष्ट ज्ञान मिलता है। दरअसल, घोड़ी सर्वाधिक कामुक जीव है। एक साधारण दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर जाता है तो उससे ज्ञान यह मिलता है कि दूल्हा काम वासना के वश में होने के लिए विवाह के लिए नहीं जा रहा है, बल्कि घोड़ी रूपी काम वासना को अपने वश में करने के लिए विवाह रूपी सुंदर बंधन में बंधने जा रहा है। भगवान शंकर ने काम का नाश किया था। काम उनके जीवन में महत्वहीन है। इसलिए वह घोड़ी के बजाय धर्म रूपी बैल पर सवार होकर गए। इससे यह शिक्षा मिलती है कि विवाह रूपी पवित्र बंधन नव दंपती को धर्म के मार्ग पर अग्रसर करता है। यह भी मान्यता है कि जिस परिवार में स्त्री और पुरुष भगवान शिव और पार्वती की तरह नेक व एक विचारों के होते हैं तो उनका घर स्वर्ग के समान अलौकिक हो जाता है। सावन में भगवान शंकर की पूजा अर्चना, व्रत और तप का विशेष महत्व इसलिए माना गया है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सावन में काम देव की सेना पूरी पृथ्वी पर वर्षा की बौछार, सुगंधित, मंद, शीतल, पवन, काम को जागृत करती है। इस माह में शिव की आराधना से काम का नाश होता है।
शिव पूजा और पंचामृत
गंगाजल, दूध, दही, शहद व घी को मिलाकर पंचामृत का निर्माण किया जाता है। शिव परिवार को पंचामृत अर्पण करने का भी विशेष महत्व है। पंचामृत में मौजूद सभी तत्वों का विशेष महत्व है।
दूध : अक्सर यह देखा जाता है कि गाय का बछड़ा अगर मर जाता है तो जब तक गाय के पास अगर बछड़े के प्रारूप को न खड़ा किया जाए तो वह दूध नहीं देती है। यह वाकिया मोह का प्रतीक है।
गंगा जल : अपने पिता की मुक्ति की कामना के लिए भगीरथ के पूर्वजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी तक मुक्ति प्राप्त करने के लिए गंगा जल को पृथ्वी पर लाने के लिए शिव से प्रार्थना की थी। गंगा जल मुक्ति दायिनी है और इसे मुक्ति के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है।
शहद : मधु मक्खियां कण-कण भरने के लिए शहद संग्रह करती हैं। इसे लोभ का प्रतीक माना गया है।
दही : दही की तासीर गर्म होती है, ये क्रोध का प्रतीक है।
घी : जिसके घर में घी की अधिकता होती है, उसको इस बात का अहंकार होता है कि उसके घर दूध और घी की नदियां बहती हैं। यह अहंकार का प्रतीक है।