डेस्क: बड़ी संख्या में शिक्षामित्रों के समायोजन को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। बीटीसी संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश एवं टेट मोर्चा उत्तर प्रदेश ने इस संबंध में याचिका दायर की है। आरोप है कि प्रदेश सरकार नियमों की अनदेखी करके शिक्षामित्रों को लाभ देने पर उतारू है। इसमें उच्चतम न्यायालय के फरमान एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देशों की अनदेखी हो रही है। प्रकरण की सुनवाई नौ जुलाई को होगी।
प्रदेश में 2001-02 में संविदा के आधार पर शिक्षामित्रों को नियुक्ति मिली थी। अधिकांश शिक्षामित्र हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट पास थे। इसमें आरक्षण प्रक्रिया लागू नहीं हुई थी। सरकार ने शिक्षामित्रों को स्नातक कराने के लिए अनुमति ली और दूरस्थ शिक्षा के तहत कई ने स्नातक किया, वहीं करीब आधे से अधिक शिक्षामित्रों ने नियमों को ताक पर रखकर कॉलेजों में रेगुलर स्नातक किया। सरकार ने शिक्षामित्रों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बीटीसी दूरस्थ शिक्षा के तहत करवाने का निर्णय लिया।
बीटीसी संघर्ष समिति के एहतेशाम ने बताया कि इन विसंगतियों को लेकर संतोष कुमार मिश्र ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। प्रकरण में निर्णय सुरक्षित रखा गया है। इसके बाद भी प्रदेश सरकार टीईटी के बिना समायोजन करने जा रही है। जबकि टीईटी पास होना सुप्रीम कोर्ट का आदेश और मानव संसाधन विकास मंत्रालय का निर्देश है। अधिवक्ता जीके सिंह, वीके सिंह ने याची नीलेश कुमार सिंह एवं चार अन्य ने स्टेट ऑफ यूपी और वकील अशोक खरे एवं सिद्धार्थ खरे ने आनंद कुमार यादव व दो अन्य की ओर से स्टेट ऑफ यूपी के तहत याचिका दाखिल की है।
एक और याचिका पर सुनवाई
इलाहाबाद : शिक्षामित्रों के समायोजन के खिलाफ बीटीसी वालों ने भी याचिका दायर की है। शिवम राजन व अन्य की याचिका पर सुनवाई चल रही है। हालांकि यह याचिका उस समय हुई थी जब शिक्षामित्रों के समायोजन का शासनादेश भी जारी नहीं हुआ था।
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