फर्रुखाबाद:39 वर्ष पूर्व आज ही के दिन 25 जून की आधी रात को भारत में आपातकाल लगाया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस कदम को भारतीय राजनीति के इतिहास का सबसे मैला पन्ना बताया जाता है।
12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के लोक सभा चुनाव को रद्द घोषित कर दिया। उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप साबित हुए थे। उन्हें कुर्सी छोड़ने और छह साल तक चुनाव ना लड़ने का निर्देश मिला। लेकिन इंदिरा गांधी ने अपनी ताकतवर छवि और गर्म मिजाज दिमाग से आपातकाल का रास्ता निकाला।
25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने संविधान की धारा-352 के अनुसार आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दी। यह एक ऐसा समय था जब हर तरफ सिर्फ इंदिरा गांधी ही नजर आ रही थीं। उनकी ऐतिहासिक कामयाबियों के चलते देश में ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ का नारा जोर शोर से गूंजने लगा।
लेकिन हाई कोर्ट के फैसले से इंदिरा गांधी की उस छवि को गंभीर धक्का पहुंचा जिसकी वजह से वह गरीबों की मसीहा थीं और हरित क्रांति और श्वेत क्रांति की अगुआ मानी जाती थीं। बाद में 21 महीनों की इमरजेंसी को हटा इंदिरा गांधी ने सत्ता जनता के हाथों में दे दी।
आपातकाल : क्या-क्या हुआ था तब—–
विधिमंत्री सिद्धार्थशंकर रे ने आपातकाल का प्रस्ताव बनाया और राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को रात में ही जगाकर हस्ताक्षर करा लिये। मंत्रिमंडल को भी इसका पता अगले दिन ही लगा। इस प्रकार 26 जून को देश में आपातकाल लग गया।
विरोधी दल के अधिकांश नेताओं तथा संघ के प्रमुख कार्यकर्ताओं को बंदी बना लिया गया। तब चन्द्रशेखर, रामधन, कृष्णकांत और मोहन धारिया भी कांग्रेस में थे। ये इंदिरा जी के इस रवैये के विरोधी थे। इन्हें ‘युवा तुर्क’ कहा जाता था। इन्हें भी बंद कर दिया गया।
मीडिया पर सेंसर लगा दिया गया। देश एक ऐसे अंधकार-युग में प्रवेश कर गया, जहां से निकलना कठिन था।इस तानाशाही के विरोध में ‘लोक संघर्ष समिति’ बनायी गयी। इसके बैनर तले सत्याग्रह हुआ, जिसमें देश भर में डेढ़ लाख लोगों ने गिरफ्तारी दीं। इनमें 95 प्रतिशत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वाले थे। इंदिरा ने सबको बंदकर सोचा कि अब आंदोलन दब गया है। उन्होंने लोकसभा के चुनाव घोषित कर दिए, पर संघ अंदरखाने पूरी तरह सक्रिय था |जेल में बंद नेताओं से तुंरत सम्पर्क कर ‘जनता पार्टी’ के बैनर पर चुनाव लड़ने का आग्रह किया गया। अधिकांश बड़े नेता तो हिम्मत हार चुके थे, पर जब उन्होंने जनता का उत्साह देखा, तो वे राजी हो गये।इंदिरा गांधी की भारी पराजय हुई।